
सर्जरी का नाम सुन कर अंदर सेचिंतितहो जाते हैं लोग। आज भी अधिकतर भारतीय परिवारों में इसको लेकर एक डर और इससे बचने की मनोदशा देखी गई है। लोग बिल्कुल लाचार होने पर ही सर्जरी के लिए हामी भरते हैं। मानो यह किसी लंबी किताब के आखिरी पन्ने की तरह हो। इससे पहले वे हर एक मुमकिन उपाय करते हैं, मसलन हर्बल टी, स्ट्रिक्ट डाइट, जिम आदि। दरअसल सर्जरी तब तक टाली जाती है जब तक कि बीमारी से बचने का कोई उपाय नहीं बचता है।
लेकिन बिला वजह इंतजार करना और किसी चमत्कार की उम्मीद लगाए रखने का नफा कम नुकसान ज्यादा हो सकता है। दरअसल मोटापा सिर्फ़ बुरा दिखने की समस्या नहीं है। यह धीरे-धीरे बढ़ता है और ब्लड शुगर, ब्लड प्रेसर, रिप्रोडक्टिव हार्माेन पर नियंत्रण रखने की आपकी शारीरक क्षमता को अंदर से खोखला कर देता है। आपके लिए चैन की नींद लेना मुहाल हो जाता है। जोड़ों का दर्द बढ़ जाता है। यह लीवर और दिल पर बोझ की तरह है। अब इतनी समस्याएं होंगी तो दवाइयों की संख्या और मात्रा भी बढ़ेगी। इतना ही नहीं एक बार ये तमाम समस्याएं घेर लें, फिर सर्जरी का जोखिम भी बढ़ जाता है और आपके ठीक होने में ज्यादा समय लगता है।
सर्जरी के पीछे ठोस तर्क हैं
मोटापे की सर्जरी वही कराते हैं जो कड़ी मेहनत से बचते हैं। यदि आप भी ऐसा सोच रहे हैं तो वक्त आ गया है कि इस गलत धारणा को दूर लें। सच तो यह है कि क्लिनिकल परिवेश में सर्जरी कराने पर विचार करने वाले अधिकतर मरीज़ वर्षों से वज़न कम करने की कोशिश कर चुके होते हैं। बहुत-से ऐसे लोग आते हैं जो बार-बार डाइटिंग में नाकाम हो जाते हैं और बार-बार उनका वज़न बढ़ जाता है। यह घोर निराशा की बात होती है क्योंकि उनका शरीर इस समस्या से उबरने में अक्षम साबित होता है।
बैरिएट्रिक सर्जरी वजन कम करने के आपके प्रयास का विकल्प नहीं है। यह इसे संरचनात्मक मजबूती देती है। इस सर्जरी से पेट के भोजन ग्रहण करने की प्रक्रिया बदलती है और इंसुलिन व घ्रेलिन जैसे हार्माेन के काम करने का तरीका भी बदलता है। इस तरह एक नई स्थिति बनती है जिसमें एक बार फिर आपकी स्वस्थ दिनचर्या बन जाती है। थोड़ा खाना पर्याप्त लगता है, भूख नियंत्रण में रहती है और कुछ खाने के लिए जी मचलना भी कम हो जाता है। इस तरह यह मनोवैज्ञानिक चाल नहीं, बल्कि जीववैज्ञानिक बदलाव है।
ऐसा नहीं है कि सर्जरी के बाद आपकी ज़िम्मेदारी खत्म! आहार पर नियमित ध्यान देने की ज़रूरत है। सप्लीमेंट भी नियमित लेना है। फॉलो-अप के लिए आना ज़रूरी है। व्यायाम करने की सलाह दी जाती है। देखभाल में मरीज़ों को भी पूरी तरह से भाग लेने की ज़रूरत है।
अत्याधुनिक सर्जरी, बहुत कम चीरे
आजकल ज्यादातर सर्जरी छोटे उपकरणों से छोटे छिद्रों के ज़रिए की जाती हैं। कुछ दशक पहले तक लंबे चीरे लगना और लंबे समय तक अस्पताल में ठहरना आम बात थी। अब रोबोटिक और लेप्रोस्कोपिक तकनीकों का दौर है। इसमें जोखिम कम होता है और ठीक होने में समय भी कम लगता है। तकलीफ भी कम होती है।
आमतौर पर लोग सर्जरी के दिन ही चलना शुरू कर देते हैं और दो-तीन दिन में तो घर लौट जाते हैं। एक सप्ताह के अंदर पहले की तरह सारा काम-काज कर सकते हैं। मरीज को ज्यादा से ज्यादा चलने-फिरने के लिए प्रेरित किया जाता है। लंबे समय तक आराम करने की जरूरत ही नहीं पड़ती है।
क्लिनिकल परीक्षणों से भी सर्जरी के बहुत लाभदायक होने की पुष्टि होती है। इनमें सबसे विश्वसनीय अध्ययनों में से एक स्टैम्पीड ट्रायल है जिसमें ऐसे लोग लिए गए जिन्हें मोटापा और टाइप 2 डायबीटीज़ दोनों था। यह देखा गया कि सिर्फ़ दवा पर निर्भर लोगों की तुलना में सर्जरी समूह के लोगों में ब्लड शुगर लेवेल अधिक स्थिर रहा और वज़न भी लंबे समय तक कम रहा। इस समूह के किसी भी व्यक्ति में कोई बड़ी परेशानी नहीं देखी गई।
शरीर के अंदर वास्तव में क्या बदलाव आते हैं
सर्जरी के बाद भोजन को लेकर शरीर की प्रतिक्रिया बदल जाती है। बेशक पेट छोटा हो जाता है, लेकिन बड़ी बात यह है कि हार्माेन के संकेतों में बदलाव आ जाता है। मस्तिष्क को जल्द पेट भरे होने के संदेश मिलते हैं। इंसुलिन बेहतर काम करता है। आदतन खाने की इच्छा या तनाव की वजह से खाने की इच्छा अक्सर कम हो जाती है। ये आपके व्यक्तित्व में बदलाव नहीं हैं। ये तो शारीरिक प्रतिक्रियाएं हैं।
सबसे बड़े बदलावों में से एक ब्लड शुगर कंट्रोल है। सर्जरी के चंद दिनों के अंदर टाइप 2 डायबीटीज के कुछ मरीज इंसुलिन लेना कम कर देते हैं। इसलिए नहीं कि उन्होंने कुछ नया सीख लिया है, बल्कि इसलिए कि उनके शरीर का इंसुलिन लगभग तुरंत पहले से बेहतर कार्य करने लगा है। भोजन के अवशोषण में सुधार होता है और अब पहले की तरह एकदम से ग्लूकोज लेवेल नहीं बढ़ता है।
वर्षो शोध का नतीजा, आनन-फानन में बड़े-बड़े दावे नहीं
एआरएमएमएस-टी2डी स्टडी के तहत सर्जरी के बाद 12 वर्षों तक 250 से अधिक लोगों पर निगरानी रखी गई। उनमें आधे से अधिक के ब्लड शुगर लेवेल सही पाए गए। वज़न भी कम रहा। दवाइयां कम लेनी पड़ी। सेहत से हाथ धो बैठे बहुत-से लोग दुबारा स्वस्थ हो गए।
इस स्टडी में कुछ ऐसे लोग भी थे जिनका बीएमआई 27 से 30 के बीच था। आम तौर पर उन्हें सर्जरी के लिए योग्य नहीं माना जाता है। परंतु उनमें भी डायबीटीज पर नियंत्रण और वज़न घटने में उल्लेखनीय सुधार देखा गया। यह बात बहुत मायने रखती है। इसका अर्थ यह है कि ऑपरेशन का फ़ैसला सिर्फ़ आंकड़ों के आधार पर लेना उचित नहीं। यह देखना भी जरूरी है कि शरीर के अंदर क्या बदलाव हो रहे हैं।
दवाइयां मदद कर सकती हैं, लेकिन एक सीमा के बाद नहीं
भूख कम करने की सुई लेने का रुझान बढ़ रहा है। सेमाग्लूटाइड और टिरज़ेपेटाइड जैसी दवाइयां सुर्खियों में हैं। शुरू में ये कुछ लोगों पर कारगर दिखते हैं। भूख कम लगती है और वज़न भी अक्सर कम होता है।
लेकिन यह दवा लगातार लेनी पड़ती है। एक बार दवा लेना बंद किया तो वज़न दुबारा लौट आएगा। इस बीच कई साइड इफैक्ट भी होंगे जैसे मतली, पेट फूलना और थकान रहना। यह दवा बहुत-से लोगों के लिए महंगी है, इसलिए लंबे समय तक नहीं ले सकते हैं।
सर्जरी किसी गोली या इंजेक्शन पर निर्भर नहीं करती। यह हार्माेन का पैटर्न इस तरह बनाती है कि लंबे समय तक असरदार रहे। इससे बहुतों मरीज़ों की जिन्दगी बदल रही है। स्वास्थ्य का ध्यान रखना आसान हो जाता है। हर दिन की समस्या मानो एक झटके से खत्म हो जाती है।
फिर भी सही दिनचर्या बहुत मायने रखती है
सर्जरी तो बस एक शुरुआत है। यह आखरी मंजिल नहीं है। डाइट, हाइड्रेशन और शारीरिक व्यायाम हर दिन ज़रूरी है। इनकी अनदेखी कतई नहीं कर सकते।
अच्छी बात यह है कि शरीर खुद इन आदतों को अपना लेती है। चलने-फिरने में कम तकलीफ होती है। ऊर्जा बढ़ जाती है। आप खुल कर साँस लेते हैं। अच्छी नींद आती है। जैसे-जैसे वज़न कम होता है, जोड़ों का दर्द, थकान और साँस फूलने जैसी समस्याएं कम होने लगती हैं।
पुरानी आदतें लौट आएं तो थोड़ा वजन बढ़ सकता है। इसका मतलब यह नहीं है कि सर्जरी कामयाब नहीं हुई। इसका मतलब है कि दिनचर्या पर फिर से जोर देने की ज़रूरत है। डॉक्टर का सहयोग लेंगे तो सब सही हो सकता है।
सिर्फ वज़न नहीं कम होता है…
सर्जरी किस तरह से शरीर की मदद करती है लोग इसकी उम्मीद नहीं कर सकते हैं। पहले रोज इंसुलिन लेने वालों की यह लाचारी सर्जरी से खत्म हो सकती है। हाई ब्लड प्रेसर की दवाइयाँ कम हो सकती हैं। जोड़ों का दर्द कम सताता है। यदि किसी महिला में पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम है तो उसके मां बनने की क्षमता बढ़ जाती है। कुछ लोगों में स्लीप एपनिया की समस्या इतनी कम हो जाता है कि मशीनों की ज़रूरत नहीं रह जाती।
अब तो इसके कई प्रमाण सामने आ रहे हैं कि वज़न कम करने की सर्जरी के बाद कोलन और स्तन कैंसर जैसी जानलेवा समस्याओं का खतरा कम हो जाता है। लीवर बेहतर काम करता है। कोलेस्ट्रॉल सही रहता है। ध्यान दीजिए, ये सभी क्लिनिकल परिणाम हैं। ये चंद निजी मामलों में सुधार वाली बात नहीं है।
व्यक्तिगत बदलाव भी होते हैं। चलना आसान हो जाता है। सफर करना संभव होता है। स्टैमिना बढ़ जाती है। इस तरह के सुधारों से मानो एक नया जीवन मिलता है।
अफसोस, आज भी कुछ गलत धारणाएं आड़े आती हैं
इस उपचार में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है लोक लज्जा। लोग सोचते हैं कि सर्जरी चुनने का अर्थ हार मान लेना है। यह विचार सरासर गलत है। मोटापा से छुटकारा सिर्फ इच्छाशक्ति पर निर्भर नहीं करता है। कई अन्य फैक्टर हैं जैसे हार्माेन, इंसुलिन रेसिस्टेंस, जेनेटिक और इन्फे्लेमेशन की क्रॉनिक समस्या। इस लिहाज से सर्जरी से इलाज कोई दिलाशा देने वाली बात नहीं है। यह तो एक ऐसी समस्या का नैदानिक उपचार है जो शरीर के लगभग हर अंग को प्रभावित करती है।
सर्जरी के बाद की परेशानियों को लेकर भी मन में चिंता रहती है। लेकिन सही जगह योग्य सर्जनों से सर्जरी कराने से जोखिम कम से कम होता है। दरअसल मोटापे का इलाज नहीं कराने का जोखिम सर्जरी के जोखिम से कहीं ज्यादा है।
कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि जब तक एक खास स्तर तक वजन नहीं बढ़ता सर्जरी टालना ही बेहतर है। लेकिन चिकित्सा के फ़ैसले सिर्फ़ वज़न देख कर नहीं लिए जाते हैं। अगर ब्लड शुगर, ब्लड प्रेसर या फिर प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रही है, तो वजन के ऐसे किसी आंकड़े का इंतज़ार करने से बहुत देर हो सकती है।
यह एक जरूरी चिकित्सा है, कोई भावनात्मक निर्णय नहीं
सर्जरी कराने के पीछे आत्मसम्मान वापस पाने या कमज़ोर पड़ने जैसी कोई बात नहीं है। यह तय करने की बात है कि क्या कारगर होगा। इस सर्जरी के पीछे वर्षों के चिकित्सा अध्ययन, साथी चिकित्सकों द्वारा समीक्षित आँकड़े और क्लीनिकों एवं अस्पतालों के दैनिक अनुभव हैं।
वजन कम करने की सर्जरी को लेकर नया नजरिया चाहिए। यह सभी के लिए नहीं है। लेकिन यदि आप इस वजह से रोजमर्रा के काम में भी खुद को परेशान पाते हैं तो आपके लिए यही है सबसे सही उपाय।
इसके लिए पूरी जानकारी देने, तैयार करने और हौसला बढ़ाने से पीड़ित जल्दी ठीक हो जाते हैं। फिर भी यह उनकी मेहनत ही है, जिस पर सारा दारोमदार होगा। बेशक इसमें सर्जरी का बड़ा योगदान होगा।
मोटापा ऐसी समस्या नहीं है, कि आप हल्के में लें। इससे छुटकारा पाने में जितना विलंब करेंगे शरीर पर उतना बुरा असर पड़ेगा। दवाइयाँ बढ़ेंगी। जख्म भरने में ज्यादा समय लगेगा। बीमारियाँ जल्द दस्तक देंगी। जीवन प्रत्याशा भी कम हो सकती है।
इस तरह के दुष्परिणामों से बच सकते हैं बशर्ते शुरू में ही सही मार्गदर्शन और सही अस्पताल चुनें। सही समय पर बैरिएट्रिक सर्जरी कराने से न सिर्फ वज़न कम होगा बल्कि कई अन्य लाभ मिलेंगे। आप आने वाले वर्षों तक सुरक्षित रहेंगे।
इसलिए इस विकल्प पर परिवार जन, चिकित्सक और मरीज़ बेहिचक बात करें। जब यह बात भय से हट कर तथ्यों पर होगी तो बेहतर स्वास्थ्य का आनंद अधिक सुलभ होगा।