नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में फ्रीबीज मुद्दों (चुनाव से पहले की जाने वाली घोषणाओं) पर दायर याचिकाओं पर आज सुनवाई होगी। इससे पहले कोर्ट ने 6 अक्टूबर को केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, राजस्थान और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अदालत ने इनसे 4 हफ्ते में जवाब मांगा था। कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह नोटिस जारी किया है। फ्रीबीज मुद्दे पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है।
याचिकाकर्ता की मांग- मुफ्त उपहार के वादों पर रोक लगे
सुप्रीम कोर्ट ने नई जनहित याचिका को पहले से चल रही अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है। सभी मामलों की सुनवाई एकसाथ हो रही। नई याचिका अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। कोर्ट में उनकी तरफ से वरिंदर कुमार शर्मा पेश हुए। उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले सरकार का लोगों को पैसे बांटना प्रताड़ित करने जैसा है। यह हर बार होता है और भार टैक्स चुकाने वाली जनता पर पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी याचिका में भट्टूलाल जैन की याचिका को भी शामिल करने को कहा है।
जनवरी 2022 में BJP नेता अश्विनी उपाध्याय फ्रीबीज के खिलाफ एक जनहित याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। अपनी याचिका में उपाध्याय ने चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियों के वोटर्स से फ्रीबीज या मुफ्त उपहार के वादों पर रोक लगाने की अपील की। इसमें मांग की गई है कि चुनाव आयोग को ऐसी पार्टियां की मान्यता रद्द करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट में अब तक क्या-क्या हुआ?
फ्रीबीज मामले की सुनवाई पूर्व चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुआई में तीन सदस्यीय बेंच ने अगस्त 2022 में शुरू की थी। इस बेंच में जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस हिमा कोहली भी थे। बाद में चीफ जस्टिस यूयू ललित ने सुनवाई की और अब CJI डीवाई चंद्रचूड़ मामले की सुनवाई कर रहे हैं।
3 अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्रीबीज मुद्दे पर फैसले के लिए एक समिति गठित की जानी चाहिए। इसमें केंद्र, राज्य सरकारें, नीति आयोग, फाइनेंस कमीशन, चुनाव आयोग, RBI, CAG और राजनीतिक पार्टियां शामिल हों। 11 अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘गरीबों का पेट भरने की जरूरत है, लेकिन लोगों की भलाई के कामों को संतुलित रखने की जरूरत है, क्योंकि फ्रीबीज की वजह से इकोनॉमी पैसे गंवा रही है। हम इस बात से सहमत हैं कि फ्रीबीज और वेलफेयर के बीच अंतर है।’
17 अगस्त 2022: कोर्ट ने कहा, ‘कुछ लोगों का कहना है कि राजनीतिक पार्टियों को वोटर्स से वादे करने से नहीं रोका जा सकता…अब ये तय करना होगा कि फ्रीबीज क्या है। क्या सबके लिए हेल्थकेयर, पीने के पानी की सुविधा…मनरेगा जैसी योजनाएं, जो जीवन को बेहतर बनाती हैं, क्या उन्हें फ्रीबीज माना जा सकता है?’ कोर्ट ने इस मामले के सभी पक्षों से अपनी राय देने को कहा।
23 अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि आप सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुलाते? राजनीतिक दलों को ही इस पर सबकुछ तय करना है।
26 अगस्त 2022: पूर्व सीजेआई एनवी रमना ने मामले को नई बेंच में रैफर कर दिया। सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि कमेटी बनाई जा सकती है, लेकिन क्या कमेटी इसकी परिभाषा सही से तय कर पाएगी। रमना ने ये भी कहा था कि इस केस में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है और इसे गंभीरता से लेना चाहिए।
1 नवंबर 2022: याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने दलील दी कि, इस मामले को तीन जजों की बेंच के पास नहीं भेजा जाना चाहिए। हालांकि तत्कालीन CJI यूयू ललित ने उनकी मांग को ठुकरा दिया था।
6 अक्टूबर 2023: CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र, इलेक्शन कमीशन और राज्य को नोटिस जारी करते हुए 4 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि हाईकोर्ट में याचिका क्यों नहीं लगाई?
चुनाव आयोग ने कहा था- फ्री स्कीम्स की परिभाषा आप ही तय करें
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान 11 अगस्त को चुनाव आयोग ने कहा था कि फ्रीबीज पर पार्टियां क्या पॉलिसी अपनाती हैं, उसे रेगुलेट करना चुनाव आयोग के अधिकार में नहीं है। चुनावों से पहले फ्रीबीज का वादा करना या चुनाव के बाद उसे देना राजनीतिक पार्टियों का नीतिगत फैसला होता है। इस बारे में नियम बनाए बिना कोई कार्रवाई करना चुनाव आयोग की शक्तियों का दुरुपयोग करना होगा। कोर्ट ही तय करे कि फ्री स्कीम्स क्या हैं और क्या नहीं। इसके बाद हम इसे लागू करेंगे।
MP-राजस्थान टैक्स कमाई का 35% हिस्सा फ्रीबीज पर खर्च करते हैं
RBI की 31 मार्च 2023 तक की रिपोर्ट में सामने आया है कि मप्र, राजस्थान, पंजाब, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य टैक्स की कुल कमाई का 35% तक हिस्सा फ्री की योजनाओं पर खर्च कर देते हैं। पंजाब 35.4% के साथ सूची में टॉप पर है। मप्र में यह हिस्सेदारी 28.8%, राजस्थान में 8.6% है। आंध्र अपनी आय का 30.3%, झारखंड 26.7% और बंगाल 23.8% तक फ्रीबीज के नाम कर देता है। केरल 0.1% हिस्सा फ्रीबीज को देता है।
किस तरह पड़ता है बजट घाटा बढ़ने का असर
जब बजट घाटा बढ़ता है, तो राज्य ज्यादा कर्ज लेने को मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में आय का बड़ा हिस्सा ब्याज अदायगी में जाता है। पंजाब, तमिलनाडु और बंगाल अपनी कमाई का 20% से ज्यादा इसमें देते हैं। मप्र 10% और हरियाणा 20% देता है।
राजस्थान, पंजाब, बंगाल में 35% हिस्सा लुभावनी योजनाओं में दे रहे
पंजाब पर अपनी GDP का 48%, राजस्थान पर 40% और मप्र पर 29% तक कर्ज है, जबकि यह 20% से ज्यादा नहीं होना चाहिए। मप्र, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, कर्नाटक, राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने 7 साल में करीब 1.39 लाख करोड़ की फ्रीबीज दीं या घोषणाएं कीं। पंजाब का घाटा 46% बढ़ेगा। बिजली सब्सिडी 1 साल में 50% बढ़कर 20,200 करोड़ हुई। कर्नाटक चालू वित्त वर्ष में का घाटा 8.2% बढ़ा। यह और बढ़ेगा क्योंकि 5 गारंटी पूरी करने में सालाना 52,000 करोड़ खर्च होंगे।