केंद्र सरकार के तीनों कृषि सुधार कानूनों का विरोध उचित नहीं


देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा व राज्यसभा में विपक्ष के नेताओं से पूछा था, इन कानूनों में काला क्या है यह तो बताओ। उन्होंने यह भी कहा था कि हम यह बात सभी किसान नेताओं से भी पूछ रहे हैं लेकिन उन्होंने भी नहीं बताया। प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को इंगित करते हुए भी कहा कि कृषि सुधार आप करना चाहते थे लेकिन किन्ही परिस्थितियों की वजह से आप नहीं कर पाए।

मेरी सरकार आपके उस काम को पूरा कर रही है तथा हमेशा जब भी सरकारों ने सुधार के काम किए हमेशा उनका विरोध किया गया है। पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री का भी उन्होंने इस अवसर पर उल्लेख किया प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि ए पी एम सी मंडी के भीतर राज्य सरकार का टैक्स है और ए पी एम सी के बाहर सरकार का टैक्स नहीं है केंद्र सरकार का कानून एक टैक्स को खत्म करता है मंडिया सरकार की हो या प्राइवेट मंडिया हो उनको लाइसेंस देने का अधिकार तो सिर्फ प्रदेश सरकारों को है। टैक्स लगाने का या नहीं लगाने का अधिकार भी प्रदेश सरकारों का है तो केंद्र सरकार का विरोध क्यों किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि ए पी एम सी मंडी के भीतर राज्य सरकार का टैक्स होता है और ए पी एम सी के बाहर सरकार का टैक्स नहीं है। केंद्र सरकार का कानून एक टैक्स को खत्म करता है। राज्य सरकारों का कानून टैक्स देने के लिए बाध्य करता है तो जो टैक्स ले रहा है और लगा रहा है और बढ़ा रहा है आंदोलन उसके खिलाफ होना चाहिए था या जो टैक्सों से मुक्त कर रहा है उसके खिलाफ होना चाहिए।
कृषि मंत्री ने आरोप लगाया कि नए कानूनों को बिना समझे किसानों को बरगलाया जा रहा है देश की राजधानी के तीनों बॉर्डर पर पिछले पिछले 3 महीने से ज्यादा बैठे किसान संगठनों और विपक्षी दलों द्वारा लगातार कृषि सुधारों के लिए बनाए गए कानूनों को काले कानून की संज्ञा दी जा रही है किंतु अभी तक किसी ने यह नहीं बताया कि आखिर इन कानूनों में काला क्या है।

कांग्रेस पार्टी, वामपंथी ताकतें और सभी विरोधी पार्टियां और खालिस्तान के गठजोड़ के द्वारा यह राष्ट्र विरोधी आंदोलन किसानों के नाम पर पर्दे के पीछे से चलाया गया था, अब तो सारे विपक्षी दलों के नेता खुलकर समर्थन में आ गए है । देश के 86% गरीब किसानों का इस आंदोलन से कोई वास्ता नहीं है क्योंकि गरीब किसानों का शोषण करने वाले मंडी के दलालों के इस आंदोलन को कांग्रेस पार्टी ने पंजाब व हरियाणा से शुरू करवाया था। देश में किसानों के आंदोलनों में कभी इस प्रकार की सुविधाएं या संसाधन नहीं देखे गए इस तथाकथित किसान आंदोलन में बहुत भारी विदेशी धनराशि के बल पर संसाधन झोंके गए अरबों रुपए उड़ाए गए यह कहां से आए इसकी भी जांच जरूरी है। किसानों के नाम पर देश में हिंसा करवाने की साजिशें करने वालों को कभी माफ नहीं किया जा सकता। दुनिया में भारत को बदनाम करने की साजिश करने वालों के खिलाफ जांच करके कार्यवाही की जानी चाहिए। देश में किसान आंदोलन के नाम पर 26 जनवरी को जो अराजकता दिल्ली में की गई। लाल किले के प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया गया, यह सब देश विरोधी अंतरराष्ट्रीय ताकतों ने देशद्रोह का काम करवाया है।

जिस तरह से हिंसा की गई और पुलिस पर सुनियोजित तरीके से हमले किए गए ट्रैक्टरों से जवानों को कुचलने के प्रयास किए गए हमारे 500 से ज्यादा जवान घायल हुए फिर भी दिल्ली पुलिस के हमारे सभी जवानों ने बहुत संयम बरतते हुए एक भी गोली नहीं चलाई। अब देश के सामने सब कुछ खुल गया है कि किस तरह देश के खिलाफ बहुत पहले से साजिशें रची गई और पूरा एजेंडा किसानों के नाम पर विदेशों से भारी पैसा लेकर देश के खिलाफ चलाया गया है। सबसे शर्मनाक बात यह है की देश के विरोधी दलों के द्वारा अपने राजनीतिक हितों के लिए समर्थन किया जा रहा है। जिन नेताओं ने विकास के काम नहीं किए सिर्फ परिवार के नाम पर राजनीति की है। आज आज वह नेता किस मुंह से उन जनप्रतिनिधियों के बहिष्कार की अपील कर रहे हैं जो अपने अपने क्षेत्रों में बहुत ज्यादा विकास के काम करवा रहे हैं। अपनी नेतागिरी चलाने के लिए ट्रैक्टर जलाने का ढोंग किया जाता है। किसानों के नाम पर विरोधी दलों के द्वारा किसान पंचायतों का आयोजन किया जा रहा है। किसानों को फसल जलाने की बात कहना किसी भी तरह से उचित नहीं है। हिंसा करवाना और आग लगवाना तो देश में वामपंथी ताकतों का काम रहा है और अब उसमें कांग्रेस भी आग में घी डालने का काम कर रही है सत्ता पाने के लिए देश में किसानों के नाम पर किसान नेताओं के द्वारा हिंसा करवाना जनता कतई बर्दाश्त नहीं करेगी।

पहला कानून “कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम 2020” के सेक्शन 3 में देश के किसानों को उसके खेत में या कहीं भी जहां उसे बेहतर मूल्य मिले अर्थात कृषि उत्पादन एवं विपणन समिति मंडी समिति के अलावा बेचने का एक विकल्प दिया है। इस कानून के सेक्शन 6 में कृषि उपज बेचने पर कोई मंडी टैक्स या कमीशन नहीं देना पड़ेगा। जबकि मंडी जो राज्यों के आधीन है वहां बेचने पर किसानों को मंडी टैक्स व दलालों को कमीशन देना होता है। बाजार के नए विकल्प होने से मंडी के व्यापारियों द्वारा एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने से किसानों को ही लाभ होगा।

दूसरा कानून “किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) अनुबंध मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम 2020” अर्थात “कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कानून 2020” के सेक्शन 5 के माध्यम से देश का किसान अनुबंध कृषि के द्वारा बोई जाने वाली कृषि उपज का सर्वोत्तम मूल्य ले सकते हैं। इस कानून के सेक्शन 6 (2) स्पष्ट है की किसान की कृषि उपज को खेत में देखने के बाद व्यापारी लेने से मना नहीं कर सकता। इस कानून के सेक्शन 7 में स्पष्ट है कि किसान को कोई मंडी टैक्स या कमीशन नहीं देना पड़ेगा। इस कानून के सेक्शन 8 में स्पष्ट है कि किसान की केवल फसल का ही अनुबंध होगा जमीन का नहीं व सेक्शन 9 में स्पष्ट है कि फसल खराब होने का जोखिम व्यापारी द्वारा किए गए फसल बीमा आदि से भी कवर होगा और किसान को उसकी उपज का मूल्य मिलेगा। सेक्शन 15 में स्पष्ट है कि किसान पर यदि कोई देनदारी निकलती है तो उसकी जमीन से वसूली नहीं होगी। जबकि व्यापारी पर कोई देनदारी निकलती है तो उसकी जमीन से वसूली होगी।

तीसरा कानून “आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955” में संशोधन किया है इस कानून के सेक्शन 2 (क) के द्वारा अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तु की सूची से हटा दिया गया है। इन वस्तुओं के स्टॉक की सीमा को भी हटा दिया गया है। इस कानून के सेक्शन 2 (ख) के द्वारा इन पांचों वस्तुओं का अत्यधिक मूल्य बढ़ने पर उन्हें आवश्यक वस्तुओं की सूची में शामिल कर लिया जाएगा और इन वस्तुओं के स्टाक की सीमा को बांध दिया जाएगा। इस बदलाव से निजी निवेश बढ़ेगा, फल, फूल व सब्जियों की सप्लाई चैन बेहतर होगी और फूड प्रोसेसिंग के होने से सब्जी व फलों की बर्बादी बंद होगी और किसान किसी प्रकार के शोषण के बिना खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, बड़े खुदरा विक्रेताओं व निर्यात को आदि से समान स्तर पर जुड़ने के लिए सशक्त होंगे।

बाजार में कालाबाजारी और जमाखोरी तब होती है जब किसी चीज की कमी (शॉर्टेज) हो अब जमाखोरी क्यों होगी? इससे निजी निवेश बढ़ेगा। निवेश होगा तो गांव में रोजगार होगा रिफॉर्म होने से निवेश गांव के नजदीक पहुंच जाएगा, जिसका किसानों को लाभ मिलेगा। आंदोलनरत किसान नेताओं से सवाल है कि जिस कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कानून का आंदोलनकारी विरोध कर रहे हैं वह एक्ट तो पंजाब में 2013 से लागू है। उसका विरोध क्यों नहीं किया गया पंजाब सरकार के कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कानून 2013 में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का उल्लंघन करने वाले किसानों को जेल भेजने तथा ₹500000 तक जुर्माने का प्रावधान है जबकि केंद्र के कानून में यह प्रावधान नहीं है, लेकिन फिर भी आंदोलनरत किसान नेता केंद्र के कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कानून 2020 का विरोध कर रहे हैं, क्या इन मुद्दों को समझने की जरूरत नहीं महसूस की जा रही है। देश के 15 से ज्यादा प्रदेशों में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की जा रही है, इस कानून से नियमानुसार खेती की जाएगी। किसानों के हितों को सुरक्षित करते हुए यह कानून बनाया गया है।
कृषि कानूनों के नाम पर लोगों को भड़काया जा रहा है और कुछ किसान नेताओं द्वारा झूठ बोलकर कहा जा रहा है कि किसानों की जमीन चली जाएगी जबकि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कानून 2020 का कोई भी प्रावधान यह नहीं कहता। इन कानूनों से किसानों को महंगी फसलें उगाने का अवसर मिलेगा। खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए किसान अब वह फसलें उगाना चाहते हैं, जिससे उनको ज्यादा मुनाफा मिले।
सरकार ने देश के किसानों के सभी भ्रम दूर करने के लिए तथा सभी मुद्दों पर बात करने और उनका समाधान करने के लिए एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव भी रखा था लेकिन अभी तक किसान नेताओं ने कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया। सरकार ने तो इन कानूनों को डेढ़ वर्ष तक रोक लगाकर रखने की बात कही है और कमेटी में सब बातों पर चर्चा करके और समाधान करने के लिए सरकार ने प्रस्तावित कर रखा है। सरकार द्वारा बाजार खोलकर नए विकल्प देने का विरोध करने वाले आंदोलनकारी नेताओं से सवाल है कि पुरानी नीतियां अगर इतनी अच्छी थी तो देश के 86% गरीब किसानों की आर्थिक दुर्गति अभी तक क्यों हुई किसान कर्ज में ही दबा रहा। चार लाख से ज्यादा किसानों ने देश में आत्महत्या की है, सोच कर भी दुख होता है कि किसानों का शोषण करने वाले बिचौलियों के साथ क्यों? जिनका विरोध भारतीय किसान यूनियन के नेता स्वर्गीय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत अपने जीवन भर करते रहे। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह ने हमेशा कहा कि जब तक किसानों को बाजार में नहीं खड़ा किया जाएगा उनका शोषण होता रहेगा। आज आंदोलन करने वाले देश के गरीब 86% किसानों का शोषण करने वालों के साथ क्यों खड़े हैं?

हम आंदोलनरत सभी किसान नेताओं से अपील करते हैं कि वे केंद्र सरकार द्वारा कृषि सुधार के लिए बनाए गए दो कानूनों व संशोधित किए गए एक कानून को पढ़ें और फिर उनके किसी प्रावधान में कोई कमी लगती हो तो उसके संशोधन पर सरकार से वार्ता करें क्योंकि यह कानून किसानों को बेहतर विकल्प देने वाले कानून है और इन्हें वापस लेने की मांग का मतलब किसानों की उन्नति को रोकना है.

कृष्ण वीर चौधरी
-राष्ट्रीय अध्यक्ष,भारतीय कृषक समाज-

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