
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने न सिर्फ कश्मीर, बल्कि पूरे देश को बुरी तरह हिला दिया। इस हमले ने कश्मीर के लोगों और देशभर के नागरिकों के दिलों में गहरी आक्रोश और डर पैदा कर दिया।
कश्मीर विधानसभा में सोमवार को आयोजित एक दिवसीय विशेष सत्र के दौरान, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपनी बात रखी। वह भावुक हो गए और कहा कि यह हमला केवल कश्मीर ही नहीं, बल्कि पूरे मुल्क को प्रभावित कर गया है।
उमर अब्दुल्ला ने कहा – “यह हमला हमें अंदर से खोखला कर गया है। लेकिन, हमें इस मुश्किल समय में रौशनी की किरण ढूंढनी होगी। कश्मीर में 26 साल में पहली बार, मैंने किसी हमले के बाद लोगों को अपने घरों से बाहर निकलते देखा है।”
उमर अब्दुल्ला ने बताया कि कश्मीर के हर कोने से, कठुआ से लेकर कुपवाड़ा तक, लोगों ने इस हमले की निंदा की और आतंकवाद के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। उन्होंने कहा, “कश्मीरियों ने कहा कि यह हमला हमारे नाम पर नहीं हुआ, यह किसी और के लिए था, हमारे लिए नहीं।”
मस्जिदों में जुमे की नमाज से पहले दो मिनट की खामोशी रखी गई। यह कश्मीरियों का शांतिपूर्ण विरोध था, जो इस हमले के खिलाफ अपनी नफरत और शांति की कामना कर रहे थे।
उमर अब्दुल्ला ने कहा – “यह खामोशी बहुत महत्वपूर्ण थी। कश्मीर में इस तरह की खामोशी को देखना किसी हमले के बाद बहुत बड़ी बात है।”

उमर अब्दुल्ला ने 2001 के श्रीनगर असेंबली हमले का जिक्र करते हुए कहा कि उस हमले ने भी कश्मीरियों को गहरे दुख में डुबो दिया था। लेकिन 21 साल बाद पहलगाम में इस तरह के हमले ने पुरानी यादों को ताजा कर दिया।
उमर अब्दुल्ला ने कहा – “हमने सोचा था कि ये हमले हमारे अतीत का हिस्सा बन चुके हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, एक बार फिर हमें वही हालात देखने को मिले।”
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जब उन्होंने उन 26 लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की, तो उनके पास शब्दों की कमी थी। वह खुद को मेज़बान के रूप में दोषी महसूस कर रहे थे, क्योंकि वह उन पर्यटकों को सही सलामत वापस नहीं भेज पाए थे।
उमर अब्दुल्ला ने कहा – “मेरे पास शब्द नहीं थे, मैं क्या कहता। मुझे माफी मांगने के लिए कोई शब्द नहीं थे।”
कुछ पर्यटकों ने उनसे सवाल किया, “हमारा क्या दोष था? हम तो पहली बार कश्मीर घूमने आए थे, और अब हमें जीवन भर इसके खामियाजे का सामना करना होगा।”
उमर अब्दुल्ला ने कहा –“हमने कभी नहीं चाहा कि इस तरह का हमला हमारे साथ हो। हम इस हमले के साथ नहीं हैं।”
कठुआ से कुपवाड़ा तक, कश्मीर के हर कोने में लोग इस हमले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। जलूस निकालकर, नारे लगाकर, बैनर बनाकर, और मोमबत्तियाँ जलाकर उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ अपनी नफरत और शांति की कामना की।
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि आतंकवाद का सफाया तभी होगा जब कश्मीर के लोग इसके खिलाफ खड़े होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए जो जनता को और दूर करे।
उमर अब्दुल्ला ने कहा – “यह आतंकवाद तभी खत्म होगा, जब लोग हमारे साथ होंगे। और अब ऐसा लगता है कि लोग हमारे साथ हैं।”
उमर अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि जुमा नमाज से पहले दो मिनट का मौन रखना, कश्मीरियों के लिए इस हमले के खिलाफ गहरी संवेदना और शांति का प्रतीक था।
उमर अब्दुल्ला ने कहा – “हमारी कोशिश यह होगी कि इस एकजुटता को बढ़ाया जाए और इसे कभी कम नहीं होने दिया जाए।”
कश्मीर में आज एक नई उम्मीद की किरण दिख रही है। उमर अब्दुल्ला की यह कोशिश है कि कश्मीर के लोग आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर शांतिपूर्वक अपना विरोध दर्ज कराएं और एक बेहतर भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाएं।