पीलीभीत। जनपद में नियम विरुद्ध तरीके से प्रशासनिक और कृषि अधिकारी फार्मरों को चैनी धान लगाने की मौन सहमति दे रहे हैं। इस दौरान जिले के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने चैनी धान लगाने वालों को हिदायत देते हुए दूरगामी परिणाम के लिए तैयार रहने की बात कही है।
जिले में चैनी धान के उत्पादन पर जनपद के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एसएस ढाका ने दूरगामी परिणाम के लिए चेताया है। प्रशासनिक और कृषि अधिकारियों की अनदेखी के चलते जिले भर में हजारों एकड़ कृषि भूमि में प्रतिबंध चैनी धान की पौध रोपाई का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। वहीं दूसरी ओर अधिकारी फार्मरों को मौन सहमति प्रदान कर चुके हैं। इसका फायदा उठाकर चैनी धान की पौध का व्यवसाय करने वाले भूजल संरक्षण नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। जनपद की पांचो तहसीलों में बड़े पैमाने पर चीनी धान की रोपाई शुरू हो गई है। वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एसएस ढाका बताते हैं कि चैनी धान की फसल लेने से सबसे पहले भूजल का दोहन होता है, यह फसल अप्रैल और मई में तैयार की जाती है जिस समय बरसात ना होने से भूजल की बर्बादी होती है। दूसरी बात चैनी धान लगाने के बाद सामान्य प्रजाति के धान को खेतों में रोप दिया जाता है और जमीन से मिलने वाले पोषक तत्वों में भारी कमी आती है। कृषि भूमि की उर्वरक शक्ति भी प्रभावित होती है। तीसरे बिंदु पर कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि चैनी धान लगाने के साथ ही खेती-बाड़ी में कीड़े अधिक लगते हैं और उसके बाद कीटनाशक का स्प्रे करना पड़ता है।
चौथे नंबर पर किसानों को आर्थिक नुकसान का कारण भी चैनी धान को बताया गया है। एसएस ढाका ने बताया कि चैनी धान की कटाई के समय बारिश होने से धान में नमी अधिक रहती है और खरीददार 1000 व1200 प्रति कुंटल धान खरीद करते हैं। चैनी धान के चलते ही सामान्य प्रजाति के धान का समर्थन मूल्य मिलने में किसानों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। चैनी धान की आवक से राइस मिलर्स का कोटा पहले ही पूरा हो जाता है। उसके बाद सामान्य धान के मूल्य काफी गिर जाते हैं। इसमें सबसे अधिक नुकसान भूजल का होता है जिसकी पूर्ति नहीं की जा सकती है और उन्होंने इसके लिए दूरगामी परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है।