दैनिक भास्कर ब्यूरो ,
बीसलपुर-पीलीभीत। नगर का रामलीला मेला जिले भर में अनोखा है, यहां पर रावण वध के बाद भी रावण मंदिर में मौजूद रहता है और खास बात यह है कि परिवार के लोग मूर्ति की पूजा अर्चना भी करते हैं। बीसलपुर का रामलीला मेला अपने आप में खास है।
बीसलपुर में वर्ष 1941 में गंगा विष्णु रस्तोगी उर्फ कल्लूमल ने राम लीलाओं का मंचन प्रारंभ किया था। 3 अक्टूबर 1987 को रावण लीला का मंचन करते समय राम का तीन लगने पर मेला मैदान में ही प्राण त्याग दिए थे। उस समय दशहरा महोत्सव में राम-रावण युद्ध का मंचन चल रहा था। रावण का संवाद गूंजा- हे राम मैने जीते जी तुम्हें लंका में प्रवेश नहीं करने दिया, अब मैं तुम्हारे धाम जा रहा हूं रोक सकते हो तो रोक लो, शंकर भगवान की जय! यह कहकर उन्होंने प्राण छोड़ दिये।
घटना के साक्षी के रूप में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक बृजलाल भी मौजूद रहे। बताते हैं कि गंगा विष्णु भगवान शिव के बचपन से ही अनन्य भक्त थे। पिता की मृत्यु के बाद दिनेश रस्तोगी ने 1988 से रावण की भूमिका अदा करना प्रारंभ की थी। वह वर्ष 1966 से रावण दल में सैनिक बना करते थे। युवा होने पर रावण सेना में कालनेमी नारांतक की भूमिका अदा करने लगे। 25 वर्षों से लगातार रावण की भूमिका अदा करते चले आ रहे हैं।
सर्राफा व बर्तन बिक्री का है व्यापार –
मेले के समय दिनेश रस्तोगी की दिनचर्या बदल जाती है। वह सुबह 9ः00 बजे से 3ः00 बजे तक अपनी बर्तन व सराफे की दुकान पर बैठते हैं। करीब 4ः00 बजे मेले में पहुंचते हैं। सबसे पहले प्राचीन बाबा गुलेश्वर नाथ मंदिर में भगवान शिव के प्राचीन शिवलिंग के दर्शन करते है, उसके बाद लंका भवन में पहुंचकर रावण की वेशभूषा में तैयार होते हैं।
शाम 5ः00 बजे मेले में उनका रावण दरबार लग जाता। बाद में लीलाओं का मंचन रावण दल सेना के साथ शुरू कर देते हैं। लीला के मंचन में रावण द्वारा बोले जाने वाले सभी संवाद उन्हें कंटस्थ याद है। रामचरितमानस व अन्य धार्मिक ग्रंथो का उन्हें अच्छा ज्ञान है। वह भगवान शिव की पूजा अर्चना के साथ पिता की रावण रूप में स्थापित मूर्ति की पूजा करते है।
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