
PM नरेंद्र मोदी राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ धाम के दौरे पर हैं। उन्होंने मानगढ़ पहुंचकर शहीद स्मारक का दौरा कर 109 साल पहले यहां शहीद हुए 1500 आदिवासियों को श्रृद्धांजलि दी। इसके बाद वे जनसभा के लिए मंच पर पहुंच गए हैं। कुछ ही देर में वे एक बड़ी जनसभा को संबोधित करेंगे। जनसभा में करीब 1 लाख लोग मौजूद हैं।
मानगढ़ धाम और आदिवासी समाज का मोदी के लिए क्या महत्व है, यह उन्होंने हाल ही रविवार को रेडियो पर मन की बात कार्यक्रम में भी जाहिर कर दिया था। मोदी ने कहा था- आदिवासी समाज प्रकृति का रक्षक है और धरती मां का सेवक समुदाय है। सभी को उनसे पर्यावरण संरक्षण का काम सीखना चाहिए। उन्होंने 1913 में मानगढ़ में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा 1500 आदिवासियों की हत्या करने की घटना का उल्लेख भी किया।
मंगलवार को वे मानगढ़ धाम में हजारों लोगों के सामने इस धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर सकते हैं। मोदी के साथ मानगढ़ धाम के कार्यक्रम में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान भी उपस्थित हैं।
भाजपा के राजस्थान प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया, गुजरात प्रदेशाध्यक्ष सीआर पाटील व मध्यप्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा भी कार्यक्रम में मौजूद हैं।
तेलंगाना से लेकर जयपुर, सूरत से लेकर छत्तीसगढ़ तक मैसेज देने की तैयारी
यह कार्यक्रम इन तीनों राज्यों की 99 विधानसभा सीटों (आदिवासी बहुल) तक सिमटा हुआ रहने वाला है। मानगढ़ एक ऐसा स्थान है, जहां गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमाएं आकर मिलती हैं। इन राज्यों के आदिवासियों की यहां बहुत श्रद्धा है।
इससे भी बढ़कर महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में बहुत बड़ी संख्या में रहने वाली आदिवासी समाज की आबादी करीब 8-10 करोड़ है।
विधानसभा की 200 और लोकसभा की 50 सीटों पर सीधा प्रभाव
गुजरात में महीने भर बाद चुनाव है। एक-दो साल में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ कर्नाटक, तेलंगाना के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव होने हैं। इन राज्यों में विधानसभा की 200 और लोकसभा की लगभग 50 सीटें ऐसी हैं जो प्रत्यक्ष रूप से आदिवासी बहुलता वाली हैं। इनके अलावा इन सभी राज्यों में 50-60 प्रतिशत सीटें ऐसी हैं, जहां अप्रत्यक्ष रूप से आदिवासी मतदाताओं की अच्छी-खासी उपस्थिति है।
मुख्यमंत्री गहलोत लिख चुके हैं दो बार पत्र
मोदी हाल ही सिरोही क्षेत्र में भी गुजरात-राजस्थान के सरहदी क्षेत्र में आए थे, लेकिन वह वहां भाषण नहीं दे पाए थे। तब उन्होंने दोबारा जल्द ही राजस्थान आने का वादा किया था। मोदी का मानगढ़ आना और तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बुलाने का सियासी मकसद गहलोत भांप गए थे।
इस क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भी लंबे अर्से से विशेष गतिविधियां चल रही हैं। ऐसे में गहलोत ने मानगढ़ को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की बात चला दी। उन्होंने इसके लिए हाल ही दो बार प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख चुके हैं कि मानगढ़ को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाए।
इससे पहले मुख्यमंत्री गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल (2008-13) में बांसवाड़ा में गोविंद गुरु के नाम से आदिवासी विश्वविद्यालय भी शुरू किया था।
क्या है मानगढ़ का इतिहास?
मानगढ़ धाम बांसवाड़ा जिले में स्थित है। यह एक पहाड़ी पर बना हुआ है। पहाड़ी का एक हिस्सा गुजरात में और एक हिस्सा राजस्थान में शामिल है। इस पहाड़ी क्षेत्र में गोविंद गुरु नामक आदिवासी नेता ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता का आंदोलन चला रहे थे।
तब 1913 में इसी धाम पर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें व उनके आदिवासी साथियों को घेर लिया था। यहां अंग्रेजों ने 1500 आदिवासियों का सामूहिक नरसंहार किया था। उन्हीं की याद में मानगढ़ धाम बना हुआ है।
मोदी, भाजपा, गहलोत और कांग्रेस की राजनीति
मोदी जब 10 साल पहले गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब वह मानगढ़ आए थे। उन्होंने तब गुजरात के हिस्से में मानगढ़ तक पहुंचने की सड़कों को शानदार करवाया था, ताकि पर्यटक आसानी से यहां तक पहुंच सके। इस धाम तक पहुंचने की पहली पक्की सड़क मोदी ने ही बनवाई थी।
उसके बाद गुजरात वाले हिस्से में वे लगातार विकास करवाते रहे। अब भाजपा इसके इतिहास पर एक किताब भी छपवा रही है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा के साहित्य में भी इसे बहुत महत्व दिया जाता है। आदिवासी समाज परम्परागत रूप से गुजरात में भाजपा का वोट बैंक माना जाता है।
इधर राजस्थान वाले हिस्से की सड़कें तो खस्ताहाल हैं, हालांकि मुख्यमंत्री गहलोत ने यहां 2009 में एक स्तम्भ बनवाया था, जो आज इस धाम का मुख्य हिस्सा है। राजस्थान में आदिवासी समाज कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है। 2004-05 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस धाम परिसर में एक धूणी हॉल भी बनवाया था।
मोदी, भाजपा, पद्म पुरस्कार और राष्ट्रपति मुर्म का चयन
भाजपा ने हाल ही अगस्त-2022 में जब राष्ट्रपति के पद के लिए चुनावों में द्रोपदी मुर्मू को अपना अधिकृत उम्मीदवार बनाया था। तब आदिवासी समाज में इस भगवा पार्टी के प्रति एक अलग संदेश गया। वे मूलत: उड़ीसा से हैं। ऐसे में उड़ीसा की सबसे बड़ी राजनीतिक सत्तासीन पार्टी बीजद ने भी भाजपा का चुनावों में साथ दिया। वे चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बनीं।
ऐसे ही मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद 2014 से अब तक जितने भी नागरिकों को पद्म पुरस्कार (श्री, भूषण, विभूषण) दिए हैं, उनमें तेलंगाना, उड़ीसा, कर्नाटक, झारखंड, तमिलनाडू के कोई ना कोई आदिवासी को जरूर शामिल किया है। यह देश आजाद होने के बाद पहली बार हुआ जब आदिवासी समाज के लोगों को बड़ी संख्या में पद्म पुरस्कार मिले।
जलियांवाला बाग…
ये दो शब्द सुनते ही दिमाग में आता है
हर तरह से गोलियां बरसाती बंदूकें, जान बचाने के लिए भागते लोग
खून से लाल हुई धरती और वहां पड़ी 1 हजार से ज्यादा लाशें
…लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते कि राजस्थान में भी 109 साल पहले एक नरसंहार हुआ था, जो जलियांवाला बाग से भी ज्यादा खौफनाक था…।
मानगढ़ नरसंहार।
17 नवंबर 1913 को अंग्रेजों ने अचानक निहत्थे आदिवासियों पर फायरिंग शुरू कर दी। 1500 से ज्यादा आदिवासी मारे गए। मानगढ़ की पहाड़ी खून से लाल हो गई। इतिहासकारों और स्थानीय लोगों का कहना है कि ये जलियांवाला हत्याकांड से भी बड़ा नरसंहार था। लेकिन, इसके बावजूद लोगों को मानगढ़ नरसंहार के बारे में जितनी जानकारी होनी चाहिए, उतनी है नहीं। इतिहास ने कभी इस नरसंहार को जगह नहीं दी।