अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन US और सऊदी अरब के रिलेशन पर दोबारा विचार कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि क्रूड ऑयल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक (OPEC) ने 5 अक्टूबर को तेल उत्पादन में कटौती करने का फैसला किया था। इससे अमेरिका बेहद खफा है। सऊदी अरब इस समूह का प्रमुख सदस्य है।
CNN को दिए गए एक इंटरव्यू में व्हाइट हाउस नेशनल सिक्योरिटी स्पोक्सपर्सन जॉन किर्बी ने कहा- प्रेसिडेंट बाइडेन सऊदी अरब के साथ अमेरिकी संबंधों पर दोबारा विचार कर रहे हैं। रूस-यूक्रेन जंग के चलते कच्चे तेल के दाम बढ़ गए हैं, जिससे दुनियाभर तेल महंगा हो गया है। अमेरिका चाहता है कि सऊदी अरब तेल का उत्पादन बढ़ाए, ताकि वैश्विक तेल कीमतों को काबू में किया जा सके।
साऊदी अरब पर रूस का साथ देने के आरोप लगे
अमेरिका के कई अधिकारियों ने सऊदी पर यूक्रेन जंग में रूस की मदद करने का आरोप लगाया है। अधिकारियों का कहना है कि साऊदी अरब ऑयल प्रोडक्शन में कटौती करके रूस का साथ दे रहा है। यह मुद्दा न सिर्फ यूक्रेन जंग के लिए चिंताजनक है, बल्कि यह अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा हितों का भी मामला है। प्रोडक्शन कम करने के ओपेक के फैसले से ग्लोबल मार्केट में तेल के दाम और बढ़ जाएंगे। बाइडेन ने ओपेक के इस फैसले को निराशाजनक बताया।
अमेरिका ओपेक से 14% क्रूड ऑयल का आयात करता है
अमेरिका करीब 18 % क्रूड ऑयल का उत्पादन करता है। वहीं, वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ओपेक और खाड़ी देशों से ऑयल इम्पोर्ट करता है। 1977 में अमेरिका ओपेक पर ज्यादा निर्भर था। ओपेक अमेरिका को उसके पेट्रोलियम आयात का 70% और क्रूड ऑयल के आयात का 85% हिस्सा एक्सपोर्ट करता था।
घटते-घटते 2020 में अमेरिका के कुल पेट्रोलियम आयात में ओपेक की हिस्सेदारी 11% के करीब थी और अमेरिकी क्रूड ऑयल के आयात में इसकी हिस्सेदारी 14% रह गई।
सबसे बड़ा ओपेक निर्यातक सऊदी अरब, अमेरिका के कुल पेट्रोलियम आयात का 7% और अमेरिकी क्रूड ऑयल के आयात का 8% का साझेदार था। सऊदी अरब खाड़ी देशों से अमेरिकी पेट्रोलियम आयात का सबसे बड़ा निर्यातक भी है।
2020 में अमेरिका के कुल पेट्रोलियम आयात का करीब 10% और अमेरिकी क्रूड ऑयल का 12% आयात खाड़ी देशों से हुआ।
ओपेक ने जब अमेरिका की इकोनॉमी को कर दिया था तबाह
1960 में ओपेक देशों के संगठन बनने के बाद 1973 में सऊदी अरब, ईरान और इराक के नेतृत्व वाले कुछ देशों ने अमेरिका जैसे ताकतवर देशों की इकोनॉमी को पूरी तरह से ठप कर दिया था। दरअसल, 1973 में होने वाले योम किपुर की लड़ाई में अमेरिका ने इजराइल का समर्थन किया था। दूसरी तरफ मिस्र और सीरिया के नेतृत्व वाले अरब देश शामिल थे।
इन देशों ने जब अमेरिका को तेल देना बंद किया तो अमेरिका की इकोनॉमी अपने सबसे बुरे दौर में जा चुकी थी। इसी समय ओपेक दुनिया के ताकतवर तेल संगठन के रूप में दुनिया के सामने उभर कर आया। तभी से यह माना गया कि ओपेक वर्ल्ड इकोनॉमी को सीधा प्रभावित करता है।
भारत पर भी पड़ सकता है ओपेक के फैसले का असर
सऊदी अरब का कहना है कि तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों को स्थिर रखने के लिए इसके प्रोडक्शन में कटौती की गई है। यह फैसला किसी देश के समर्थन या विरोध से नहीं जुड़ा है, लेकिन इसका असर भारत पर हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए 80% क्रूड ऑयल का आयात करता है।
ओपेक देश भारत की जरूरत का 60% क्रूड ऑयल सप्लाई करते हैं। इनमें सऊदी अरब, इराक, ईरान वेनेज़ुएला शामिल हैं। ये सभी देश ओपेक के संस्थापक सदस्य हैं। जाहिर है भारत की तेल जरूरतों का अधिकांश हिस्सा इन्हीं देशों से पूरा होता है।