रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन आज 70 साल के हो गए हैं। वे 2012 से लगातार राष्ट्रपति हैं और रूस में उन्हें कोई चुनौती देने वाला नहीं है। टाइम मैगजीन की तरफ से चार बार दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति घोषित किए गए पुतिन की ताकत को इस समय पूरी दुनिया महसूस कर रही है।
सेंट पीटर्सबर्ग (लेनिनग्राद) स्टेट यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई करने वाले पुतिन ने 1991 में राजनीति में एंट्री की। इससे पहले वे 16 साल तक रूस की खुफिया एजेंसी KGB के एजेंट थे। 6 साल ईस्ट जर्मनी (ड्रेस्डेन) में जासूस के तौर पर काम किया। सोवियत संघ जब अपने आखिरी वक्त में था, तब उन्हें वापस मॉस्को बुला लिया गया।
गैंग कल्चर में रहकर बड़े हुए, ताकत के लिए मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ली
7 अक्टूबर 1952 को जब पुतिन पैदा हुए, तब उनके शहर का नाम लेनिनग्राद था। सोवियत संघ के पश्चिमी छोर पर बसे इस शहर पर दूसरे विश्व युद्ध के गहरे निशान दिखते थे। इस जंग की सबसे भीषण लड़ाइयों में से एक यहीं लड़ी गई थी। इसके निशानों ने आगे चलकर पुतिन की शख्सियत पर भी छाप छोड़ी।
पुतिन जब बड़े हो रहे थे, तभी उनका शहर लेनिनग्राद गैंग कल्चर से घिरा था। ताकत हासिल करने की कसक उनमें बचपन में पैदा हो गई। यही उन्हें रूस की सेना के मार्शल आर्ट सेम्बो की तरफ खींच ले गई। इसके बाद उन्होंने जूडो सीखा और 18 साल की उम्र में ब्लैक बेल्ट हासिल कर ली।
कहा जा सकता है कि पुतिन ने जिंदगी का सबसे अहम सबक युवा होते ही हासिल कर लिया था। उनके शब्दों में कहें तो- ‘पहली चोट तुम खुद करो और ऐसी तगड़ी चोट करो कि विरोधी चित हो जाए और फिर उठ ना पाए।’
2014 में क्रीमिया छीनने और फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले से पहले भी शायद पुतिन ने यही सोचा होगा। ये अलग बात है कि इस बार उनका दांव खुद उनके लिए भारी पड़ रहा है।
सीक्रेट एजेंट रहे पुतिन की ज्यादातर जानकारियां भी सीक्रेट
सीक्रेट एजेंट रहे पुतिन की जिंदगी की सामान्य बातों को छोड़कर ज्यादातर जानकारियां भी सीक्रेट हैं। हां, कुछ किस्से-कहानियां जरूर हैं, लेकिन ये कहां से आईं कोई नहीं जानता। हालांकि, लोग इन पर यकीन जरूर करते हैं।
ऐसी ही एक कहानी ये है कि पुतिन जब सिर्फ 16 साल के थे, तब वे लेनिनग्राद में KGB की इमारत में एजेंट की नौकरी मांगने पहुंच गए थे। रेड कार्पेट बिछे रिसेप्शन पर बैठे अधिकारी से उन्होंने कहा कि वह एजेंट बनना चाहते हैं। अधिकारी ने उन्हें डिग्री हासिल करने की सलाह दी। पुतिन ने पूछा कौन सी डिग्री तो जवाब मिला कानून की।
पुतिन ने इसके बाद सीधे लेनिनग्राद स्टेट यूनिवर्सिटी में कानून की डिग्री के लिए दाखिला लिया और 1975 में डिग्री मिलते ही KGB के खुफिया एजेंट बन गए।
जर्मन भाषा सीखने के बाद 1985 में पुतिन को पूर्वी जर्मनी (तब सोवियत संघ का हिस्सा) के ड्रेस्डेन के KGB ऑफिस में तैनाती मिल गई। पुतिन यहां दुनिया में सोवियत संघ के कम होते प्रभाव को करीब से देख रहे थे।
पुतिन के बारे में एक और किस्सा ये मशहूर है कि जब 5 दिसंबर 1989 को KGB के दफ्तर को सोवियत विरोधी भीड़ ने घेर लिया था, तब पुतिन मदद के लिए बार-बार सबसे नजदीकी रेड आर्मी यूनिट को फोन लगा रहे थे। उन तक कोई मदद नहीं पहुंची। जवाब मिला, ‘मॉस्को के आदेश के बिना हम कुछ नहीं कर सकते हैं और मास्को अभी खामोश है।’
कानून के टीचर से राजनीति सीखी
1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद लेनिनग्राद फिर से सेंट पीटर्सबर्ग बन गया। पुतिन 1991 में यहां पहुंचे और यूनिवर्सिटी के वाइस रेक्टर के डिप्टी बन गए। बाद में वे यूनिवर्सिटी में अपने प्रोफेसर रहे एनातोली सोबचाक के असिस्टेंट बन गए, जो यूनिवर्सिटी छोड़कर लेनिनग्राद सिटी काउंसिल के चेयरमैन बन गए थे।
पुतिन ने उनके चुनावी अभियान को संभाला और कामयाबी हासिल की। कानून के अपने टीचर से उन्होंने राजनीति के गुर भी सीखे।
जून 1991 में पुतिन सेंट पीटर्सबर्ग के डिप्टी मेयर चुन लिए गए। इसी साल अगस्त में वे ऑफिशियली KGB से अलग हो गए। 1996 में जब सोबचाक मेयर का चुनाव हार गए तो पुतिन ने मॉस्को का रुख किया। यहां वे क्रेमलिन में राष्ट्रपति की संपत्तियों की देखभाल करने वाले विभाग में काम करने लगे।
जुलाई 1998 में सोवियत KGB की जगह लेने वाली रूसी एजेंसी FSB (फेडरल सिक्योरिटी सर्विस) के प्रमुख बनने से पहले उन्होंने क्रेमलिन में अलग-अलग जिम्मेदारियां संभालीं।
राजनीति में तेजी से उभरे, 2000 में पहली बार राष्ट्रपति बने
राजनीति की सीढ़ियां पुतिन ने बहुत तेजी से चढ़ीं। तब राष्ट्रपति रहे बोरिस येल्तसिन ने उन्हें अगस्त 1999 डिप्टी PM बनाया। इसी साल वे रूस के प्राइम मिनिस्टर भी बने।
येल्तसिन ने 31 दिसंबर 1999 को इस्तीफा दिया तो पुतिन को उनका स्वभाविक उत्तराधिकरी माना गया और वे कार्यवाहक राष्ट्रपति बन गए। मार्च 2000 में पुतिन को रूस का राष्ट्रपति चुन लिया गया। तब से वे रूस की सत्ता का केंद्र हैं।
पुतिन 2004 में फिर राष्ट्रपति बने, लेकिन 2008 में उन्हें पद छोड़ना पड़ा, क्योंकि रूस के संविधान के तहत कोई व्यक्ति लगातार तीन बार राष्ट्रपति नहीं रह सकता था।
2008 से 2012 तक प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद वे फिर से राष्ट्रपति बने और अब तक इस पद पर हैं। 2008 में राष्ट्रपति रहे दिमित्री मेदवेदेव ने रूस के संविधान में बदलाव कर राष्ट्रपति पद का कार्यकाल 4 साल से बढ़ाकर 6 साल कर दिया था। इससे तय हो गया कि पुतिन ज्यादा वक्त तक देश पर राज कर पाएंगे।
करप्शन की जांच दबा दी गई, परिवार सुर्खियों से दूर
पुतिन ने 1983 में ल्यूडमिला से शादी की और 2014 में तलाक ले लिया। उनकी दो बेटियां मारिया और येकाटेरीना 1985 और 1986 में पैदा हुईं। पुतिन का परिवार सुर्खियों से दूर ही रहा है। 1990 के दशक में पुतिन सेंट पीटर्सबर्ग में फूड स्कैंडल में फंसे थे। अब इसके बारे में सभी जानकारियां गायब हैं।
कहा जाता है कि 1992 में जब रूस की अर्थव्यवस्था गिर रही थी, तब पुतिन को सेंट पीटर्सबर्ग के लोगों को भोजन मुहैया कराने के कार्यक्रम की कमान दी गई थी। इसके लिए शहर ने 10 करोड़ डॉलर का प्रावधान किया गया था।
जांच में पता चला था कि खाने का कोई सामान आया ही नहीं। इस पैसे को पुतिन और उनके दोस्त हजम कर गए। इस बारे में जांच को जल्द ही खारिज कर दिया गया और जानकारी दबा दी गई।
ये एक रहस्य ही है कि सेंट पीटर्सबर्ग में मामूली राजनीतिक हैसियत रखने वाला एक KGB एजेंट सिर्फ ढाई साल में क्रेमलिन पहुंचकर देश के सबसे शक्तिशाली लोगों में कैसे शामिल हो गया। उन्होंने ऐसा क्या किया कि येल्तसिन ने उन्हें पहले डिप्टी PM और फिर कुछ महीनों में ही प्रधानमंत्री बना लिया। आखिर में उनके लिए राष्ट्रपति का पद भी छोड़ दिया।
जासूसी के गुर राजनीति में अमल में लाए
KGB के एजेंट रहे पुतिन भ्रम फैलाने वाली जानकारियों के असर को समझते रहे हैं। अपने फायदे के लिए इसका इस्तेमाल करते रहे हैं। यही वजह है कि उन्होंने अपने इर्द-गिर्द रहस्य का ऐसा जाल बनाया है कि लोग उनके बारे में कितना भी जान लें, कम ही जानते हैं। इससे उनकी ऐसी छवि बनी, जो जिद और इरादों का पक्का है और इसे पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।
माना जाता है कि पुतिन के व्यक्तित्व पर कमजोर होते सोवियत संघ की छाप है। वे रूस की पुरानी ताकत हासिल करने के लिए दीवानगी की हद तक प्रतिबद्ध हैं। पुतिन ताकत के केंद्रीयकरण में यकीन रखते हैं और यही वजह है कि रूस की सत्ता का केंद्र वे खुद बन गए हैं। करीब साढ़े 14 करोड़ की आबादी वाला रूस उनके व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द ही घूमता है। यहां के लोगों के जीवन के हर पहलू पर उनके फैसलों की छाप है।
पुतिन को जब-जब मौका मिला, उन्होंने रूस की सैन्य ताकत दिखाई है। 2008 में जॉर्जिया पर हमला हो या फिर पश्चिमी देशों की धमकियों को दरकिनार कर 2014 में यूक्रेन के क्रीमिया को मिलाकर ‘ऐतिहासिक गलतियों को ठीक’ करना।
कोई नहीं जानता पुतिन के दिमाग में क्या है
पश्चिमी देशों, नाटो और अमेरिका की तमाम चेतावनियों को दरकिनार कर पुतिन ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमला कर दिया। ऐसे हालात पैदा कर दिए, जिनका असर यूरोप की पूरी आबादी पर पड़ना तय है।
जैसे-जैसे सर्दी आएगी, यूक्रेन रूस की सैन्य ताकत की गर्मी को महसूस करेगा। उधर रूस की गैस के अभाव में यूरोप ठंड में कांपेगा। कई लोगों को भले लग रहा हो कि यूक्रेन पर हमला करके पुतिन ने अपने सारे पत्ते खेल लिए हैं, लेकिन उन्हें समझने वाले मानते हैं कि बहुत मुमकिन है कि अभी तुरुप का पत्ता उनके हाथ में ही हो।
पुतिन के बारे में एक बात सभी जानते हैं कि कोई नहीं जान पाता उनके दिमाग में क्या चल रहा है। पुतिन के बारे में एक बात और पुख्ता तौर पर कही जा सकती है कि उन्होंने अपनी किस्मत को खुद लिखा है। वो जहां है अपने दम से हैं, दुनिया के बाकी कामयाब लोगों की तरह उन्होंने भी वक्त-वक्त पर लोगों का इस्तेमाल किया और उनकी ताकत से अपनी ताकत को बढ़ाया।
पुतिन को ब्लैक सी में बने 16 मंजिला महल का मालिक बताया जाता है। उनके सबसे बड़े विरोधी एलेक्सेई नवेलनी की टीम ने इसकी तस्वीरें ऑनलाइन शेयर की थीं। महल की कीमत एक अरब डॉलर या 8 हजार करोड़ रुपए है। इसकी ज्यादातर मंजिलें अंडरग्राउंड है। 170 एकड़ में फैला महल परिसर 40 बाग-बगीचों से घिरा है।
10 बच्चे पैदा करने पर अवॉर्ड का ऐलान
रूस की जनसंख्या कम होने से परेशान व्लादिमिर पुतिन ने महिलाओं को 10 बच्चे पैदा करने के लिए कह दिया। ऐसा करने पर महिलाओं को 1 अरब रूबल यानी 13 लाख रुपए मिलेंगे। 10 बच्चे पैदा करने वाली महिलाओं को ‘मदर हीरोइन’ अवॉर्ड दिया जाएगा। यह अवॉर्ड सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान भी दिया जाता था। रूस ने 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद इसे बंद कर दिया था।
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में बीते जुमे के दिन यानी शुक्रवार (30 सितंबर) को एजुकेशन सेंटर में बम ब्लास्ट हुआ। हमलावरों के निशाने पर हजारा समुदाय के बच्चे थे, जो यहां एग्जाम दे रहे थे। यूनाइटेड नेशंस के मुताबिक, धमाके में 53 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 46 लड़कियां थीं। 110 घायल भी हुए हैं। पहले भी अल्पसंख्यक हजारा समुदाय पर हमले होते रहे हैं। अफगानिस्तान की 4 करोड़ आबादी में 40 लाख, यानी 10% हजारा हैं। इन्हें चंगेज खान का वंशज माना जाता है।