
भास्कर समाचार सेवा
नई दिल्ली। 90 डिग्री नॉर्थ पर जहाँ हर दिशा साउथ होती है और जमी हुई आर्कटिक महासागर ज़मीन का रूप ले लेती है, वहाँ भारतीय तिरंगा लहराया गया, किसी खंभे पर नहीं, बल्कि एक ऐसे धावक के हाथों में जो इतिहास लिख रहा था। 13 जुलाई 2025 को कोलकाता में जन्मे उद्यमी और साहसी यात्री राम गोपाल कोठारी पहले भारतीय बने जिन्होंने भौगोलिक उत्तरी ध्रुव पर पूर्ण मैराथन पूरा किया। यह उपलब्धि उन्हें उन चुनिंदा सहनशक्ति वाले एथलीट की श्रेणी में रखती है, जिन्होंने धरती के सबसे कठिन रेसकार्स में से एक को पार किया है। उत्तरी ध्रुव मैराथन, जो 3 मीटर गहरी बर्फ़ीली परतों पर दौड़ा जाता है और जिसके नीचे समुद्र होता है, साल में केवल एक बार आयोजित किया जाता है। –8°C तापमान, तीखी हवाएँ जो थर्मल लेयर्स को भेद जाती हैं, और कभी-कभी रास्ते पर नज़र आने वाले ध्रुवीय भालू यह सब इसे दुनिया की सबसे कठिन धैर्य में से एक बनाते हैं। इस दौड़ की रसद में एक आइसब्रेकर जहाज़, ध्रुवीय भालू गश्त टीम और पूरी तरह सुसज्जित मेडिकल यूनिट शामिल होते हैं। 2025 में इन्हीं परिस्थितियों के बीच श्री कोठारी ने अपने पहले फुल मैराथन में दुनिया भर से आए खिलाड़ियों के साथ इस दुर्लभ आयोजन में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा, “यह दुनिया का सबसे महँगा मैराथन भी है। इस ग्रीष्मकालीन संस्करण की न्यूनतम पंजीरण शुल्क 44,900 यूरो थी, जो दिखाता है कि यहाँ पहुँचना ही कितना दुर्लभ और कठिन है, पूरा करना तो और भी बड़ी चुनौती है।” अभियान की शुरुआत लॉन्गइयरब्येन, स्वालबार्ड (नॉर्वे) से हुई, जहाँ प्रतिभागियों ने फ्रेंच आइसब्रेकर ले कमांडेंट चारकोट पर सवार होकर यात्रा शुरू की। 78°N से 90°N तक ठोस समुद्री बर्फ़ को पार करना अपने आप में धैर्य की परीक्षा थी। इस दौरान ध्रुवीय भालू, वालरस, सील और नीली व्हेल दिखे। श्री कोठारी ने याद करते हुए कहा, “हमने यात्रा के दौरान 15 ध्रुवीय भालू देखे और 3 नीली व्हेल भी, जो दुनिया के सबसे बड़े स्तनधारियों में हैं। इन पलों ने यह एहसास कराया कि यह सिर्फ़ एक दौड़ नहीं, बल्कि प्रकृति से जुड़ने का जीवन में एक बार मिलने वाला अनुभव था।” श्री कोठारी ने मैराथन का पहला आधा हिस्सा 2 घंटे 45 मिनट में पूरा किया। लेकिन 28वें किलोमीटर से आगे बर्फ़ पिघलने लगी, जिससे उनके पैर बर्फ़ में धँसते रहे, जूते भीग गए और तेज़ ऐंठन शुरू हो गए। “मेरे पास रुकने के हर कारण थे,” उन्होंने कहा, नौ बार आई ऐंठन और पैर की चोट को याद करते हुए। “लेकिन मैं सिर्फ़ बर्फ़ पर नहीं दौड़ रहा था, मैं एक वादे पर दौड़ रहा था, इस विश्वास पर कि भारत हर जगह का हिस्सा है, यहाँ तक कि दुनिया की चोटी पर भी।” अंततः उन्होंने मैराथन को आठ घंटे से कुछ अधिक समय में पूरा किया। श्री कोठारी की यह उपलब्धि उनके निजी संघर्षों से और भी बड़ी लगती है। कोलकाता के बड़ाबाज़ार में एस्बेस्टस की छत वाले दो कमरों में रहता था और संयुक्त परिवार की कठिनाइयों में गुज़रा। अपनी पढ़ाई में औसत रहे श्री कोठारी ने स्वीकार किया कि उनके जीवन को माता-पिता की संघर्षशीलता और सहनशीलता ने आकार दिया। 2012 में, एक बड़े व्यक्तिगत और पेशेवर संकट ने उन्हें हताश कर दिया। आर्थिक तंगी और मानसिक थकान से टूटकर उन्होंने जीवन समाप्त करने तक का विचार कर लिया था। उसी समय उनकी पत्नी शिप्रा का फोन आया, जिन्होंने दो बच्चों के लिए उन्हें वापस आने को कहा। वह क्षण उनके जीवन का मोड़ बन गया। शून्य से शुरुआत करते हुए उन्होंने बीमा क्षेत्र में अपने करियर को दोबारा खड़ा किया और कड़ी मेहनत से पहचान और अंतर्राष्ट्रीय यात्रा के अवसर हासिल कीं। धीरे-धीरे यात्रा उनका जुनून और निजी मिशन बन गया। नवंबर 2022 तक, श्री कोठारी सातों महाद्वीपों पर कदम रख चुके थे, जिसमें खतरनाक ड्रेक पैसेज पार कर अंटार्कटिका पहुँचना भी शामिल था। उनकी यात्राएँ ग्रीनलैंड के बर्फीले फिओर्ड, स्वालबार्ड की ध्रुवीय रात और अफ्रीका के माउंट किलिमंजारो तक फैलीं। यूरोप के माउंट एल्ब्रस पर चढ़ाई के दौरान 100 मीटर की गिरावट से भी वे नहीं डरे। उत्तरी ध्रुव मैराथन पूरा करने के बाद अब उनका लक्ष्य है सात महाद्वीपों पर सात दिनों में सात मैराथन, दुनिया की सात सबसे ऊँची चोटियों पर चढ़ाई, और वर्ष 2027 तक 100 देशों की यात्रा करना, जिसमें से 71 वे पहले ही पूरी कर चुके हैं। उन्होंने कहा, “मैं बुर्राबाजार से आता हूँ, किसी ओलंपिक शिविर या पर्वतारोहरण आधार से नहीं। अगर मैं दुनिया की सबसे कठिन ज़मीन पर अपना पहला फुल मैराथन पूरा कर सकता हूँ, तो कोई भी अपने सपने की तरफ़ पहला कदम उठा सकता है।” राम गोपाल कोठारी के लिए, इतिहास आराम से नहीं, बल्कि दृढ़ निश्चय से बनता है — और कभी-कभी यह बर्फ़ की एक चादर पर, दुनिया की चोटी से शुरू होता है।