अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कुछ नवजात चूहों में इंसान के ब्रेन सेल्स (दिमाग की कोशिकाएं) ट्रांसप्लांट किए हैं। इसका मकसद सिजोफ्रेनिया और ऑटिज्म जैसे गंभीर मानसिक विकारों को समझना और इनका इलाज ढूंढना है। अब तक रिसर्चर्स इन विकारों की जटिलताओं को सही तरीके से नहीं समझ पाए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जानवर इन्हें अलग तरह से अनुभव करते हैं और इंसानों पर रिसर्च करना काफी कठिन है।
चूहों में विकसित हुआ न्यूरो सर्किट
नेचर जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च के मुताबिक, चूहों में इंप्लांट होने के बाद यह ब्रेन सेल्स विकसित हुए हैं। चूहों के दिमाग में इनका न्यूरो सर्किट भी डेवलप होने लगा है। इसी सर्किट की मदद से जीव जानकारी प्रोसेस करता है, मूवमेंट करता है, सीखता है और चीजें याद करता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि रिसर्च से उन्हें पता चलेगा कि कैसे ब्रेन सेल्स की कनेक्टिविटी, एक्टिविटी और आकार की वजह से लोगों में मानसिक बीमारियां ईजाद होती हैं।
रिसर्च की अपनी सीमाएं
वैज्ञानिकों के अनुसार इस रिसर्च की अपनी सीमाएं हैं। दरअसल, चूहों में विकसित हुआ न्यूरल सर्किट हाइब्रिड है। इसका मतलब कि चूहों के दिमाग में इंसान और चूहे दोनों के ही सेल्स हैं। इसलिए इन पर जो भी रिसर्च होगी, उससे पूरी तरह इंसानों की समस्याओं का आकलन नहीं किया जा सकता। चूहों का दिमाग एक इंसानी दिमाग को पूरी तरह कॉपी नहीं कर सकता।
जानवर के प्रति निर्दयता पर उठ रहे सवाल
रिसर्च को लेकर नैतिक बहस भी जारी है। कुछ लोगों का कहना है कि यह चूहों के प्रति निर्दयता है। उनके दिमाग में इस तरह के बदलाव किए जा रहे हैं, जिनसे आगे चलकर शायद उन्हें तकलीफ हो या उनके साथ अन्याय हो। इंसान के ब्रेन सेल्स को चूहों के दिमाग में ट्रांसप्लांट करने से उनकी सोचने-समझने की क्षमता पर प्रभाव पड़ सकता है।
हालांकि, रिसर्च में शामिल शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें एक्सपेरिमेंट के दौरान चूहों की याददाश्त पर कोई असर नहीं दिखा। साथ ही उनमें दौरे या एंग्जाइटी जैसी कोई समस्या भी नहीं नजर आई।