मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से जूझ रहे लोगों के लिए कारगर है रिहैबिलिटेशन थेरेपी

डॉक्टर श्रद्धा मलिक,संस्थापक एथेना बिहेविअरल हेल्थ

भास्कर समाचार सेवा

नई दिल्ली। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए रिहैबिलिटेशन थेरेपी में कई तरह की जरूरतों, चुनौतियों और लक्ष्यों के अनुरूप उपचार शामिल होते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं की प्रवृत्ति की पहचान कर मनोवैज्ञानिक संबंधित व्यक्ति में रिकवरी को कारगर बनाने और स्वास्थ्य संबंधित फायदे बढ़ाने के लिए विभिन्न साक्ष्य-आधारित तकनीकों का उपयोग करते हैं। आइए, इनमें से कुछ उपचारों की प्रभावशीलता को जानने एवं समझने के लिए संबंधित उदाहरणों के साथ उनके बारे में विस्तार से जानते हैंः

  1. कॉग्नीटिव-बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी): जरा सोचिए कि अगर किसी को सार्वजनिक रूप से बोलने के डर के कारण चिंता हो रही है। सीबीटी के जरिये वे ‘मैं खुद को शर्मिंदा महसूस करूंगा’ जैसे तर्कहीन विचारों की पहचान करने के लिए एक चिकित्सक के साथ काम करते हैं और उन्हें ‘मैं घबराहट का सामना कर सकता हूं’ जैसे विश्वास से बदलने में सक्षम बनाते हैं। नकारात्मक विचारों को चुनौती देते हुए धीरे-धीरे वे खुद को बोलने की स्थितियों में मजबूत बनाते हैं, वे आत्मविश्वास बढ़ाते हैं और समय के साथ चिंता को कम करने में सफल रहते हैं।
  2. डायलेक्टिकल बिहेवियर थेरेपी (डीबीटी): व्यक्तित्व विकार की जद में आ चुके ऐसे व्यक्ति पर विचार करें जो तीव्र मनोदशा से जुड़े परिवर्तन और रिश्ते के टकराव से जूझ रहा है।। डीबीटी में, वे ऐसे हालात में खुद को संभालने के लिए माइंडफुलनेस तकनीक सीखते हैं, प्रभावशाली भावनाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करते हैं। बिना किसी आवेग के भावनाओं पर काबू करने का कौशल सीख कर वे दूसरों के साथ अधिक भावनात्मक स्थिरता और स्वस्थ बातचीत को बढ़ावा देते हैं।
  3. एसेप्टेंस एंड कमिटमेंट थेरेपी (एसीटी): पुराने दर्द से जूझ रहे किसी व्यक्ति की कल्पना करें जो लगातार निराश और हारा हुआ महसूस करता है। एसीटी के माध्यम से, ऐसे मरीज अपने मूल्यों के अनुरूप सार्थक गतिविधियों के लिए प्रतिबद्ध होते हुए अपने दर्द को अपने अनुभव के रूप में स्वीकार करना सीखते हैं, जैसे प्रियजनों के साथ अच्छा समय बिताना या शौक पूरा करना। जिस पर वे नियंत्रण कर सकते हैं, उस पर ध्यान केंद्रित करके और अपने दर्द के बावजूद उद्देश्य ढूंढकर, वे लचीलापन विकसित करते हैं और जीवन में खुशी फिर से ला सकते हैं।
  4. इंटरपर्सनल थेरेपी (आईपीटी): सोचिए कि कोई व्यक्ति किसी चहेते की मौते जैसे बड़े सदमे के बाद अवसाद महसूस कर रहा हो। आईपीटी में, वे पता लगाते हैं कि उनका दुख उनके संबंधों और संवाद पैटर्न को किस तरह से प्रभावित करता है। अनियंत्रित भावनाओं को काबू कर और पारस्परिक कौशल में सुधार लाकर, वे दूसरों के साथ संबंध मजबूत करते हैं और साझा समर्थन में सुकून पाते हैं जिससे धीरे धीरे अवसाद के लक्षण कम होते जाते हैं।
  5. एक्सपोजर थेरेपी: ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचिए जो यात्रा करने का सपना तो देखता है, लेकिन डर से अचंभित महसूस करता है। एक्सपोज़र थेरेपी के माध्यम से, वे उड़ान के अनुभवों की कल्पना करना शुरू करते हैं और धीरे-धीरे हवाई अड्डों पर जाने और थेरेपिस्ट की सहायता से छोटी उड़ानें लेने की हिम्मत जुटाते हैं। नियंत्रित तरीके से अपने डर का सामना करने और मुकाबला करने की रणनीतियां सीखने से, वे आत्मविश्वास हासिल करते हैं और अपना दायरा बढ़ाने में सफल रहते हैं।
  6. ग्रुप थेरेपी: सामाजिक चिंता से जूझ रहे ऐसे व्यक्तियों के बारे में विचार करें जो एक अनुकूल परिवेश में अपने अनुभव साझा करने और सामाजिक कौशल का अभ्यास करने के लिए एकत्रित होते हैं। ग्रुप थेरेपी के जरिये, वे एक-दूसरे की चुनौतियों और सफलताओं से सीखते हैं तथा सहानुभूति, प्रोत्साहन और व्यावहारिक सलाह भी देते हैं। वे जैसे जैसे अपने अनुभवों को साझा करते हैं, उनमें आत्मविश्वास बढ़ने लगता है और आखिरकार अलग-थलग रहने की भावना से काबू पाने में सफल रहते हैं।
  7. आर्ट थेेरेपी: सदमे से जूझे रहे किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचें जो अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां करने में हिचकिचाता है। आर्ट थेरेपी के माध्यम से, वे पेंटिंग, ड्राइंग या मूर्तिकला के जरियेे अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं, जिससे उन्हें अपने अंदर होने वाली आंतरिक उथल-पुथल को गैर-मौखिक तरीके से बाहर निकालने में मदद मिलती है। वे जैसे-जैसे अपनी रचनात्मकता की ओर बढ़ते हैं, उन्हें अपनी भावनाओं और अनुभवों में अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है। इससे उन्हें स्वस्थ होने और अपने अंदर की कला बाहर लाने में मदद मिलती है।

ये उदाहरण इस पर प्रकाश डालते हैं कि किस तरह से रिहैबिलिटेशन चिकित्साएं मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने वाले व्यक्तियों को व्यक्तिगत समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान करती हैं और उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने और रिकवरी की राह पर बढ़ने में सक्षम बनाती हैं।

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