रुद्राभिषेक या जलाभिषेक एवं कावड़ से जुड़ीं धार्मिक अवधारणाएं l

“वास्तव में कांवड़ यात्रा और शिव जलाभिषेक शक्ति संतुलन, हठ योग, तपस्या और स्वाध्याय का परियाय है: बोधराज सीकरी”

भास्कर समाचार सेवा

गुरुग्राम। प्रतिवर्ष श्रावण मांस में कांवड़ यात्रा और शिव जलाभिषेक हिंदू सनातन पुरातन परंपरा में सदियों से चला आ रहा है। जिसे लेकर अलग-अलग मान्यताएं और अलग-अलग धार्मिक अवधारणाएं प्रचलित हैं। आखिर कावड़ यात्रा कब से प्रारंभ हुई  ? इसका धार्मिक महत्व क्या है ? और इससे मनुष्य को क्या लाभ होता है इन तमाम पहलुओं को लेकर दैनिक भास्कर ने जाने-माने समाजसेवी परम विद्वान,   वेदांत एवं धार्मिक ग्रंथों के जानकार बोधराज सीकरी से विशेष बातचीत की –

*क्या हैं कांवड़ से जुड़ी धार्मिक अवधारणाएं ?* 

कावड़ प्रथा को लेकर लोगों के मन में अलग-अलग धारणाएं एवं मान्यताएं हैं l 

(बोधराज सीकरी)

जाने माने समाजसेवी एवं वेदशास्त्रों एवं धर्म ग्रंथों के जानकार 

पहली मान्यता यह है कि सर्वप्रथम कावड़ भगवान परशुराम जी ने उठाई थी जो गढ़मुक्तेश्वर से लेकर उन्होंने बागपत के पास शिव मंदिर में जलाभिषेक किया था। दूसरी मान्यता यह है कि सबसे पहले कावड़ उठाने वाले भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हैं। उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज जहां गंगा बहती है वहां से लेकर ज्योतिर्लिंग जहां भगवान बैजनाथ है वहां पर उन्होंने शिवजी को जल चढ़ाया था। तीसरी मान्यता है कि सबसे पहले श्रवण कुमार ने कावड़ अपने अंधे माता पिता को लेकर हरिद्वार में उन्हें तीर्थ कराया था चौथी धारणा है कि पहले कावड़ रावण ने उठाई थी क्योंकि रावण  महान शिव भक्त था और शिव को शक्ति का केंद्र  माना जाता है और जहां भी शिवलिंग होता है वहां पर ऊर्जा का वास होता है क्योकि वहाँ रेडिएशन सर्वाधिक होता है l लिहाजा आप देखेंगे कि जहां भी हमारे ज्योतिर्लिंग है उनको शक्तिपुंज भी कहा जाता है।  यही वजह है कि यहां पर उज्जैन का महाकाल मंदिर है और जहां महाकाल विराजमान है उसे पूरे ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है इसलिए यहां पर ज्ञान भी है विज्ञान भी है तथा अध्यात्म भी है l शिव की आराधना कर उनका जलाभिषेक का श्रावण मास में एक विशेष धार्मिक महत्व है।  आज की युवा पीढ़ी को इसके बारे में और गहराई से समझने की आवश्यकता है क्योंकि समुद्र मंथन के दौरान शिव ने नकारात्मक ऊर्जा के प्रति विष का पान किया था इसलिए नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए भी शिव आराधना की जाती है और जलाभिषेक किया जाता है। आज का युवा इस तथ्य से अनभिज्ञ है और उसमें कहीं ना कहीं काबड़ यात्रा के दौरान अश्लील गाने, शराब, भांग और दूसरे नशे का सेवन इत्यादि काफ़ी प्रचलित हो गया है जो आपत्तिजनक है।

*शक्ति संतुलन का नाम है कांवड़ यात्रा* 

लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर से नंगे पैर चलते हैं l कोई गोमुख से कोई गंगोत्री से कोई हरिद्वार से जल लाता है तो कोई ऋषिकेश से लाता है l यह भगवान शिव को अर्पित किया जाने वाला परिश्रम तपस्या की श्रेणी में आता है। आपने देखा होगा कि जल लाने वाले लोगों की कावड़ में आगे पीछे कल का समान वजन होता है लिहाजा काबड़ शक्ति संतुलन का भी नाम है l कोई जल से अभिषेक करता है कोई दूध से करता है तो कोई शहद से या गन्ने के रस से करता है। अपने अपने भाव है अपनी श्रद्धा है और अपना तरीका है  प्रभु को रिझाने का। 

प्रश्न यह नहीं है की कावड़ किसने पहले उठाई प्रश्न यह है कि हमारी धार्मिक मान्यताएं और हमारा शिव के प्रति अराध्य भाव कैसा है l कहा भी गया है  “ नही तव आदि मध्य अवसाना – अमित प्रभाव वेद नहीं जाना “ इसका मतलब है इसका अर्थ है ना तो इनका प्रारंभ का  है और ना ही मध्य है और ना ही अंत है l शिव का मतलब सत्य सनातन है l आप देखेंगे कि शिवलिंग का कोई प्रारंभ और अंत या मध्य नहीं है  l किसी के लिए शिवलिंग अनंत है किसी के लिए सनातन है और अनश्वर है और किसी के लिए निराकार है। 

*अद्भुत और विलक्षण हैं हिन्दू धर्म की मान्यताएं*

आज आवश्यकता इस बात की है कि हिंदू धर्म में छिपी सत्य सनातन मान्यताओं प्रथाओं और इसके धार्मिक महत्व को गहराई से समझ कर युवा पीढ़ी तक पहुंचाने की। यह काम देश का ऋषि मुनि साधु संत या बुद्धिजीवी वर्ग, या ब्राह्मण वर्ग इस कार्य को आगे बढ़ा सकता है। सीकरी के कथानुसार आज से पौने दो सो वर्ष पहले कोई हिंदुओ में दूसरा धर्म या मत इस धरती पर मौजूद नहीं था हिंदू धर्म के अतिरिक्त। इसलिए इसकी जड़ें बहुत गहराई में हैं जिन को समझ कर आज न सिर्फ समाज को सशक्त, और अधिक वैज्ञानिक सौहार्दपूर्ण और आध्यात्मिक किया जा सकता है बल्कि इसकी बुनियाद पर भारतवर्ष को भी विश्व गुरु की उपाधि तक पहुंचाने का सपना साकार किया जा सकता है। 

 शिव तत्व को समझना आवश्यक है। शिव कल्याणकारी है। ध्यान की गहरी डुबकी लगाकर भी साधक शिव तत्व के रहस्य को जान सकता है।

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