साबो : वाराणसी में सावित्री देवी डालमिया की भावना और पारिवारिक मूल्यों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि

  • सावित्री देवी डालमिया की स्मृति में बन रहा “साबो” होटल: पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों का जीवंत प्रतीक
  • सावित्री देवी डालमिया के जीवन की प्रेरणा से प्रेरित “साबो” होटल, वाराणसी में पारिवारिक धरोहर का प्रतीक

सावित्री देवी डालमिया, जिन्हें प्यार से “साबो” कहा जाता है, की जीवन यात्रा अब एक ऐतिहासिक परिवर्तन के रूप में जीवित है। उनकी बहुमूल्य विरासत और परिवारिक मूल्यों को सम्मानित करते हुए, उनके छोटे बेटे कुणाल डालमिया द्वारा वाराणसी के भेलूपुर स्थित ऐतिहासिक डालमिया भवन को एक आलीशान हेरिटेज होटल में बदलने की योजना बनाई गई है, जिसका नाम उनकी मां की याद में “साबो” रखा गया है। यह परिवर्तन न केवल एक होटल के रूप में, बल्कि सावित्री देवी डालमिया के जीवन की गहरी भावना और उनके योगदान का जीवंत स्मारक बनेगा।

सावित्री देवी डालमिया का जन्म वाराणसी की कचौड़ी गली में एक प्रतिष्ठित और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध परिवार में हुआ था। उनके दादा, शिवदत राय व पिता पन्नालाल जी समुदाय में एक सम्मानित व्यक्ति थे, जो अपनी बुद्धिमत्ता और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध थे। पन्नालाल जी की छह संताने थीं, और सावित्री देवी उनमें सबसे छोटी थीं।

अपने समय से बहुत आगे सोचते हुए, सावित्री देवी ने लड़कियों की शिक्षा को महत्व दिया, एक ऐसी शिक्षा जो उस समय एक दुर्लभ अवसर थी। वह ब्रिटिश और ईसाई मिशनरी द्वारा चलाए गए एक अंग्रेजी-माध्यम स्कूल में पढ़ाई करती थीं, जहाँ उन्होंने पढ़ने और लिखने में अपने कौशल को निखारा और साहित्य और शिक्षा के प्रति जीवन भर का लगाव विकसित किया।

अपने जीवन की शुरुआत से ही, सावित्री देवी ने पारंपरिक और आधुनिक मूल्यों के बीच संतुलन बनाए रखा। राजस्थान के ममराज रामभगत डालमिया परिवार में शादी होने के बाद, वह अपने नए घर में भी गरिमामई संस्कार की यही शक्ति को लेकर आईं। उन्होंने अपने जीवनसाथी लक्ष्मी निवास डालमिया के साथ मिलकर छह बच्चों का पालन-पोषण किया, जिनमें से प्रत्येक को उनकी शालीनता, सांस्कृतिक मूल्य और जड़ों से जुड़ाव की भावना मिली।

सावित्री देवी जी को बागवानी और सब्ज़ियाँ उगाने का भी बहुत शौक था। उन्होंने यह काम अपने मडवाडी गार्डन हाउस में किया, जो अब स्वर्गीय नंद प्रकाश कनोडिया के परिवार के पास है। अपनी शादी के बाद उन्होंने डालमिया भवन के बगीचे की देखभाल की और घर के बाड़े में सब्ज़ियाँ उगायीं।

आज, उनके छोटे बेटे कुणाल डालमिया, जिन्होंने अपने माता-पिता से जीवन के गहरे मूल्य सीखे, अपने परिवार की विरासत को सहेजते हुए इस ऐतिहासिक पैतृक डालमिया भवन को एक आलीशान हेरिटेज होटल में बदल रहे हैं। कुणाल जी की योजना है कि साबो होटल में छत पर सब्ज़ियाँ उगाने की व्यवस्था कर अपनी माता के शौक को भव्य रूप दें।

“साबो” नाम से स्थापित होने वाला यह होटल ना केवल एक होटल होगा, बल्कि एक ऐसी जगह होगी जहाँ सावित्री देवी के विचार, उनके पारिवारिक मूल्य और बनारस की शाश्वत आत्मा की भावना जीवित रहेगी। यह होटल न सिर्फ़ विलासिता और आराम का प्रतीक होगा, बल्कि वहां आने वाले यात्रियों को बनारस की संस्कृति, इतिहास और एक अडिग पारिवारिक संरचना से जुड़े होने का अनुभव मिलेगा।

सावित्री देवी डालमिया का जीवन सिखाता है कि असली शक्ति किसी बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि हमारे संस्कारों, शिक्षा और परिवार के प्रति प्रेम में छिपी होती है। “साबो” के इस नए रूप में, उनके जीवन का यह अनमोल संदेश आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचेगा।

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