
मैनपुरी – सर्वप्रथम विद्यालय के वरिष्ठ प्रधानाचार्य डा0 राम मोहन, प्रशासनिक प्रधानाचार्य डा0 कुसुम मोहन एवं उपप्रधानाचार्य जय शंकर तिवारी ने प्रार्थना स्थल पर संत रविदास जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन कर इस महान विभूति का विधिवत पूजन किया। ज्ञात हो कि संत रविदास जयंती हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा पर मनाई जाती है। इस वर्ष उनका 642 वां जन्मदिवस मनाया जा रहा है।
संत रविदास जी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए वरिष्ठ प्रधानाचार्य डा. राम मोहन ने कहा कि उनका जन्म किसी विशेष उच्च परिवार में नहीं हुआ था लेकिन वह अपने तप और निरन्तर परिश्रम के द्वारा एक विशेष उच्चतम स्थान को प्राप्त हुए और महान संत होने का गौरव प्राप्त किया।
बचपन से ही उनकी रुचि प्रभु-भक्ति और साधु-संतों की ओर हो गई थी। बड़ा होने पर उन्होंने चर्मकार का अपना पैतृक काम अपना लिया। जूता गाँठते हुए वे प्रभु भजन में लीन हो जाते। जो कुछ कमाते, उसे साधु-संतों पर खर्च कर देते। रविदास ने उस समय के प्रसिद्ध भक्तई गुरु रामानंद से दीक्षा ली। उन्होंने ऊँच-नीच के मत का खंडन किया। वे अत्यंत विनीत और उदार विचारों के थे। एक कथा के अनुसार रविदास जी अपने साथी के साथ खेल रहे थे। एक दिन खेलने के बाद अगले दिन वो साथी नहीं आता है तो रविदास जी उसे ढूंढ़ने चले जाते हैं, लेकिन उन्हंे पता चलता है कि उसकी मृत्यु हो गई। ये देखकर रविदास जी बहुत दुःखी होते हैं और अपने मित्र को बोलते हैं कि उठो ये समय सोने का नहीं है, मेरे साथ खेलो।
इतना सुनकर उनका मृत साथी खड़ा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि संत रविदास जी को बचपन से ही आलौकिक शक्तियां प्राप्त थी। लेकिन जैसे-जैसे समय निकलता गया। उन्होंने अपनी शक्ति भगवान राम और कृष्ण की भक्ति में लगाई। इस तरह धीरे-धीरे लोगों का भला करते हुए वो संत बन गए। संत रविदास जयंती पर उनके अनुयायी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। उसके बाद अपने गुरु के जीवन से जुड़ी महान घटनाओं को याद कर उनसे प्रेरणा लेते हैं। संत रविदास के जीवन के कई ऐसे प्रेरक प्रसंग है जिनसे हम सुखी जीवन के सूत्र सीख सकते हैं। समारोह में विद्यालय की कैम्पस कोआॅर्डीनेटर अल्का दुबे सहित समस्त अध्यापक-अध्यापिकाएँ भी उपस्थित रहे।