एक दूसरे से सीखने का बड़ा माध्यम बन सकेगी एसएयू: प्रो केके अग्रवाल

सार्क (SAARC) की सामूहिक समस्याओं का हल खोजेगी साउथ एशियन यूनिवर्सिटी

“आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, लैंड स्लाइड्स, सुनामी और साइक्लोन जैसी साझा समस्याओं पर किया जा सकेगा प्रभावी शोध”

“आठ देशों की साझी भागीदारी से चलने वाली विश्व की पहली और यूनिक यूनिवर्सिटी है SAU”

भास्कर समाचार सेवा

नई दिल्ली। दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन सार्क के सभी देशों के बीच और अधिक गर्मजोशी लाने तथा उनके आपसी रिश्तों को बुनियादी मजबूती देने के लिए साऊथ एशियन यूनिवर्सिटी (SAU) एक बड़े और पुख्ता सेतु का कार्य कर सकती है। अपने शोध और अनुसंधानों से जहां इन देशों की समान व जटिल समस्याओं के समाधान खोजने में मदद मिलेगी वहीं इन देशों के छात्रों के साथ अध्ययन करने से पारस्परिक संस्कृति और क्षेत्रीय भाषाओं के आदान-प्रदान में सहायता मिलेगी। यह दुनियां का पहला और अद्वितीय विश्वविद्यालय है जिसकी स्थापना और संचालन में आठ देश अपनी सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मैदानगढ़ी में अरावली पहाड़ियों के बीच इस विश्वविद्यालय की भव्य इमारत सार्क समूह की मित्रता का प्रतीक चिन्ह बनने की कगार पर है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना, उद्देश्यों, कार्य संचालन और छात्रों के अध्ययन व शोधों को लेकर एसएयू के चेयरमैन व जाने माने प्रख्यात शिक्षाविद् डॉ केके अग्रवाल ने दैनिक भास्कर ब्यूरो प्रमुख संजय शर्मा से विशेष और विस्तृत बातचीत की। पेश है इस बातचीत के प्रमुख अंश:

प्रश्न: प्रोफेसर साहब, दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन सार्क देशों के सहयोग से तैयार साउथ एशियन यूनिवर्सिटी की कमान आपके इस क्षेत्र में शानदार ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए केन्द्र की मोदी सरकार ने अब आपके हाथों में सौंपी है। तो सबसे पहले इसकी स्थापना और उद्देश्यों को लेकर पाठकों के लिए प्रकाश डालिए?

उत्तर: देखिए, दक्षिण एशियाई देशों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्तों और आपसी सहयोग के लिए वर्ष 1985 में सार्क (SAARC) का गठन हुआ जिसमें भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव इसके सदस्य देश हैं। जब भारत अपने कर्मानुसार वर्ष 2010-11 में इसका अध्यक्ष बना तो इस विश्वविद्यालय की स्थापना की शुरुआत हुई। जिसका उद्देश्य एक ऐसे विश्वविद्यालय की परिकल्पना था जिसमें सभी सार्क देशों के छात्र शोध एवं अनुसंधान कर सकें और क्षेत्रीय समस्याओं एवं चुनौतियों का मिलकर समाधान खोज सकें। भारत ने अग्रणी भूमिका निभाते हुए इस विश्वविद्यालय परिसर के लिए दिल्ली में करीब 100 एकड़ जमीन मुहैया कराई। शेष अन्य देशों ने भी इसमें अपनी आर्थिक भागीदारी निभाई। जिसकी बदौलत करीब एक हजार करोड़ रुपए की लागत से इसकी भव्य इमारत का निर्माण हो सका। लेकिन कुछ कारणों के चलते पारस्परिक सहयोग में कुछ रुकावटें आईं लेकिन अब पुनः सभी सदस्य देश इसमें अपनी सक्रिय भागीदारी निभाने को रजामंद हुए हैं। और जैसा कि आपने कहा कि करीब 4 महीने पहले मुझे इसके संचालन की जिम्मेदारी मिली है। जिसके बाद अब हम इस विश्वविद्यालय की परिकल्पना और उद्देश्यों को लेकर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।

प्रश्न: यह यूनिवर्सिटी अन्य विश्वविद्यालयों से किस प्रकार अलग है और इसमें किस प्रकार के शोधों को प्राथमिकता दी जाएगी?

उत्तर: सभी सार्क देशों की कुछ समान और जटिल समस्याएं हैं। जिनमें आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, लैंड स्लाइड्स, सुनामी, साइक्लोन और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं प्रमुख हैं। आप देखेंगे कि सभी सार्क देशों की सीमाएं समुद्र से लगी हैं, लिहाजा समुद्र में आने वाली सुनामी सभी देशों में खूब जान-माल का नुकसान करती है। इससे निपटने के लिए आपदा प्रबंधन में होने वाली दिक्कतें भी सभी देशों के सामने एक चुनौती हैं। लिहाजा इसका समाधान खोजने के लिए एक विशेष प्रकार के अनुसंधान की आवश्यकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में लगातार सभी देशों में भूस्खलन होते रहते हैं जिनमें न केवल आर्थिक क्षति होती है बल्कि इंसानी जान का भी नुकसान होता है और अनेकों प्रकार की रुकावटें आने से यातायात भी प्रभावित होता है। इसी प्रकार यदि स्वास्थ्य के क्षेत्र में देखें तो हमने बीमारी हो जाने के बाद तो कई प्रकार के अनुसंधान करके दवाइयां ईजाद की हैं लेकिन बीमारी पूर्व सावधानी बरतने के संबंध में हमारा ज्ञान बहुत ही कम है। ऐसे में यह साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के छात्रों एवं प्राध्यापकों के पास करने के लिए बहुत सारा काम है। दूसरी बात, यह यूनिवर्सिटी इसलिए भी अनोखी है कि यह संसार की इकलौती यूनिवर्सिटी है जिसे इतने सारे देश मिलकर चला रहे हैं। सभी के अपने अनुभव हैं और सभी का अपना सहयोग।

प्रश्न: दैनिक भास्कर जानना चाहेगा कि विश्वविद्यालय के विकास के लिए और इसे विश्वस्तरीय बनाने के लिए आपके पास क्या योजनाएँ हैं?

उत्तर: जैसा कि मैंने पहले कहा, हमारा मुख्य प्रयास यह होगा कि हम जो भी करें, वह सभी सात देशों के लिए उपयोगी हो। हम नए क्षेत्रों में कार्य करेंगे, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, स्थिरता, स्वास्थ्य सेवाओं में कृत्रिम बुद्धिमत्ता आदि। हमें इस बात का अध्ययन भी करना पड़ेगा कि हमारे देशों के बीच के अंतर से हम क्या सीख सकते हैं। इसके अलावा, हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी ध्यान केंद्रित करेंगे।

प्रश्न: विश्वविद्यालय का मुख्य फोकस शोध पर है, लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा पर भी ध्यान देना चाहिए?

उत्तर: बिल्कुल। वर्तमान में, हमारे विश्वविद्यालय में लगभग छह सौ छात्र हैं, जिनमें से तीन सौ शोध छात्र और तीन सौ स्नातकोत्तर छात्र हैं। हमने अब कुछ स्नातक पाठ्यक्रम भी शुरू किए हैं और अगले साल इसे और बढ़ाएंगे। किसी भी विभाग की पूर्णता के लिए स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध तीनों का होना जरूरी है। हम पारंपरिक विषयों के बजाय अनूठे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जैसे कि जलवायु परिवर्तन में बीटेक, स्थिरता में एमटेक आदि।

प्रश्न: आपने बहुत अच्छी बातें बताई। एक और सवाल है कि कुछ छात्र होते हैं जिनके अंक तो कम होते हैं, लेकिन उनमें गहरी समझ होती है। क्या आप ऐसे छात्रों के लिए कोई फ्लेक्सिबिलिटी रखेंगे?

उत्तर: यह बहुत महत्वपूर्ण है। हम यह मानते हैं कि अंकों के आधार पर मूल्यांकन हमेशा सही नहीं होता। इसलिए हमने पीएचडी में कुछ एडमिशन बिना प्रवेश परीक्षा के भी शुरू किए हैं। इसमें विभाग की फैकल्टी शामिल होकर छात्रों का चयन करेगी।

प्रश्न: वर्तमान में विश्वविद्यालय में कितने भारतीय और गैर-भारतीय छात्र हैं?

उत्तर: आदर्श रूप से, भारतीय छात्रों की संख्या 50 प्रतिशत होनी चाहिए थी, लेकिन कुछ देशों के छात्रों को वीजा नहीं मिल पाता है। इसलिए अभी लगभग 70-72 प्रतिशत भारतीय छात्र हैं और बाकी अन्य देशों के। हम सभी देशों के छात्रों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न उपाय कर रहे हैं, जैसे कि कोर्स को लोकप्रिय बनाना और वीजा प्रक्रियाओं में सहायता के लिए सरकार से संपर्क करना।

प्रश्न: यह विश्वविद्यालय एक नया और अनोखा विचार है, और इसका एक मुख्य उद्देश्य सात देशों के छात्रों को एक साथ लाना है। क्या आपको लगता है कि यह सामंजस्य पैदा करने में सफल होगा?

उत्तर: हाँ, बिल्कुल। हमारे छात्रों के बीच कोई वैमनस्य नहीं है, बल्कि वे एक दूसरे के साथ सामंजस्यपूर्ण तरीके से रहते हैं। विभिन्न देशों के छात्र मिलकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेल और अध्ययन में भाग लेते हैं, जिससे उनकी आपसी समझ बढ़ती है और मित्रता के बंधन मजबूत होते हैं।

प्रश्न: आपके पास कौन-कौन सी मुख्य चुनौतियाँ हैं और उनके समाधान के लिए क्या योजनाएँ हैं?

उत्तर: सबसे बड़ी चुनौती वित्तीय है। कुछ देशों ने अपनी हिस्सेदारी देना बंद कर दिया था, लेकिन अब सभी देश फिर से सहयोग करने के लिए तैयार हैं। दूसरा, हमारे खर्चों को नियंत्रित करना भी महत्वपूर्ण है। हम एक स्थायी मॉडल बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि विश्वविद्यालय अपने उद्देश्यों को पूरा कर सके।

प्रश्न: आखिरी सवाल, क्या विश्वविद्यालय में वित्तीय सहायता और छात्रवृत्ति की व्यवस्था है?

उत्तर:हाँ, पीएचडी छात्रों के लिए ट्यूशन और हॉस्टल मुफ्त है और उन्हें प्रति माह 25,000 रुपये की छात्रवृत्ति मिलती है। स्नातकोत्तर छात्रों में से लगभग एक तिहाई को ट्यूशन और हॉस्टल शुल्क में छूट मिलती है। हम अपने शुल्क को धीरे-धीरे बढ़ाने की योजना बना रहे हैं ताकि विश्वविद्यालय एक स्थायी मॉडल बन सके।

प्रश्न: आपने दैनिक भास्कर के साथ बातचीत की, इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपके विचार बहुत प्रेरणादायक हैं और हमें उम्मीद है कि दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय आने वाले वर्षों में नई ऊँचाइयों को छूएगा।

उत्तर: धन्यवाद। मुझे भी

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