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प्रयागराज : महाकुंभ के दौरान संगम स्नान के बाद गंगा जल की शुद्धता पर बड़ा विवाद छिड़ चुका है। गंगा जल के अल्कलाइन जैसा होने का दावा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बड़ा मुद्दा है। इस मामले में अब डॉ. अजय सोनकर ने भी गंगा जल का परीक्षण कर इस विवाद में एंट्री ले ली है।
गंगा नदी का जल शुद्ध रहने की बात में एक गहरी सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दोनों तरह की ताकत है। कई शोधों के अनुसार, गंगा जल में कुछ ऐसे प्राकृतिक गुण होते हैं, जो इसे स्वच्छ और जीवाणुरहित बनाए रखते हैं। इसमें उच्च आक्सीजन स्तर, अल्कलाइन पH, और कई मिनरल्स होते हैं जो इसे सामान्य जल से अलग बनाते हैं।
अजय सोनकर ने कहा – हजारों स्नान के बाद भी शुद्ध है गंगा जल
इस साल आयोजित महाकुंभ मेला दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक माना जा रहा है। महाकुंभ के 40वें दिन 57 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई। इस पवित्र आयोजन के दौरान, गंगा के पानी की शुद्धता और स्वास्थ्य पर सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर लोग नदी में स्नान किया। इसके बाद क्या गंगा जल की शुद्धा बनी हुई है? इस सवाल के जवाब में देश के जाने-माने वैज्ञानिक और पद्मश्री सम्मान से सम्मानित डॉ. अजय सोनकर ने गंगा जल की शुद्धता का परीक्षण किया, और उनका दावा है कि गंगा का जल न केवल स्नान योग्य है, बल्कि यह अल्कलाइन जल जैसा शुद्ध है।
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डॉ. अजय सोनकर ने अपनी प्रयोगशाला में गंगा जल का गहन परीक्षण किया और यह पाया कि गंगा का पानी प्राकृतिक रूप से अल्कलाइन है। इसका pH स्तर सामान्य पानी से अधिक होता है, जो इसे स्वच्छ और बैक्टीरिया रहित बनाता है। अल्कलाइन जल के कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं, जैसे शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना, पाचन तंत्र को बेहतर बनाना और शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाना। डॉ. सोनकर का कहना है कि गंगा जल में ऐसे तत्व होते हैं जो इसे केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी विशेष बनाते हैं।
डॉ. अजय सोनकर के परीक्षण ने साबित किया कि गंगा जल अपनी शुद्धता बनाए रखता है। उन्होंने गंगा जल के खनिज, सूक्ष्मजीव, और बैक्टीरिया की कमी की जांच की और पाया कि गंगा का जल अभी भी अपनी अल्कलाइन विशेषताओं और स्वच्छता को बनाए रखता है।
वैज्ञानिकों ने बताया क्यों शुद्ध है गंगा जल
गंगा नदी के पानी की शुद्धता के पीछे कई वैज्ञानिक कारण हो सकते हैं। गंगा जल में उच्च आक्सीजन स्तर और कुछ विशिष्ट खनिजों की उपस्थिति इसे अन्य नदियों के पानी से अलग बनाती है। इसके अलावा, गंगा में स्वच्छता बनाए रखने के लिए प्राकृतिक प्रक्रियाएं भी जिम्मेदार हो सकती हैं, जैसे नदी की धारा का तीव्र प्रवाह, जो प्रदूषण को नदी में टिकने नहीं देता।
इसके अलावा, गंगा के पानी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया और वायरस भी अक्सर इसकी शुद्धता को बनाए रखने में मदद करते हैं। कई शोधों के अनुसार, गंगा जल में एक प्रकार के जीवाणु होते हैं, जो पानी को स्वच्छ रखने में सहायक होते हैं। इन जीवाणुओं का प्रभाव इतना सकारात्मक होता है कि वे पानी में अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देते हैं।
गंगा जल का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बहुत गहरा है। भारतीय संस्कृति में गंगा नदी को देवी माना गया है और उसे जीवनदायिनी के रूप में पूजा जाता है। महाकुंभ मेला जैसे आयोजनों में गंगा जल में डुबकी लगाना एक पवित्र कृत्य माना जाता है। श्रद्धालु इसे अपने पापों से मुक्ति का एक साधन मानते हैं, और यह विश्वास किया जाता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के जीवन में शांति और समृद्धि आती है।
गंगा जल की शुद्धता के वैज्ञानिक परीक्षण ने न केवल गंगा की धार्मिक महिमा को सिद्ध किया, बल्कि यह भी प्रमाणित किया कि यह पानी स्वास्थ्य के लिए भी अत्यधिक लाभकारी हो सकता है। डॉ. अजय सोनकर द्वारा किए गए परीक्षणों ने गंगा जल के महत्व को और भी अधिक स्पष्ट कर दिया है। आज के समय में जब पर्यावरणीय संकट और जल प्रदूषण की समस्याएं बढ़ रही हैं, गंगा जल की इस स्वच्छता और शुद्धता का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
गंगा की शुद्धता और उसका संरक्षण केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। अगर हम गंगा के संरक्षण की दिशा में सही कदम उठाते हैं, तो यह न केवल धार्मिक महत्व को बढ़ाएगा, बल्कि समग्र मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर साबित हो सकता है।