शाहजहांपुर : गौवंश संरक्षण में जेवां कोठी की रही है अहम भूमिका

शाहजहांपुर जनपद की पुवायां तहसील और नगर पालिका से पूर्व में स्थित जेवां कोठी के इतिहास पर कुंवर अनुराग सिंह से परिचर्चा की है । राष्ट्रवादी कवि और साहित्यकार प्रदीप वैरागी ने कहा कि जेवां कोठी कभी रुहेलखंड की सबसे बड़ी रियासत नाहिल का एक अभिन्न अंग रही है।

अब प्रकाश डालते हैं कठेरिया राजवंश पर!

इतिहास में जाएं तो कठेरिया राजवंश को रणबांकुरे क्षत्रिय के नाम से जाना जाता है।
रूहेलखंड की सबसे बड़ी रियासत नाहिल का एक अंग है जेवाँ कोठी।
इस परिवार के पूर्वजों में राजा भानु शाह और खानु शाह का नाम क्षेत्र के बच्चे बच्चे की जुबान पर है,दोनों ही रुहेलाओं से युद्ध करते हुए शहीद हुए।

जेवाँ में मठ का बाग स्थित राजा भानु शाह का स्मारक हर धर्म और जाति के क्षेत्रवासियों द्वारा पूजा जाता है।
इसी युद्ध के समय पूज्य तारा देवी ने जौहर कर लिया था, उनकी स्मृति में तारा तुर्की के नाम से आज भी एक तालाब है।
इसी प्रकार कुँवर बल्देव सिंह, कुँवर दुर्गा बख्श सिंह, कुँवर गंगा सिंह कुछ प्रमुख नाम हैं।
एक रोचक और गौरवशाली तथ्य यह कि 1857 की स्वाधीनता क्रांति के महानायक राजा बलभद्र सिंह (चहलारी) की एकमात्र पुत्री का विवाह 5 पीढ़ी पूर्व इसी परिवार में कुँवर गजराज सिंह से हुआ था।
जनसंघ के संस्थापक सदस्य रहे स्वर्गीय कुँवर रामेश्वर सिंह के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर बलवीर सिंह वर्तमान में परिवार के मुखिया हैं।
जेवाँ कोठी के सभी सदस्यों ने अपनी विरासत को संभालते हुए जनकल्याण का भाव तथा परिवार की प्रतिष्ठा को संरक्षित किया है।

यह परिवार जनपद की राजनीति में भी प्रमुख स्थान रखता है।
यह घटना आज़ादी से लगभग एक दशक पहले पुवायाँ, खुटार और गोला के मध्य स्थित चठिया/औरंगाबाद क्षेत्र की है, जहाँ के शेखों ने एक गाय को पकड़कर उसकी हत्या करने के लिये जन्माष्टमी का दिन मुक़र्रर किया था। उस वक़्त यह सीधी चुनौती थी आसपास बसने वाली हिंदू आबादी को और ज़मींदारों/शासकों को भी।
घटना इतनी बड़ी थी कि तीन जिलों की पुलिस उस दिन घटनास्थल पर मौजूद थी और दशकों तक लोकगायकी में कविता के माध्यम से जन-जन में सुनी और सुनाई जाती रही।

बात सन 1940 के आसपास की है।उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जनपद की पुवायां तहसील के अन्तर्गत छोटी सी रियासत जेवाँ के पास गोमती तट स्थित औरंगाबाद व चठिया गाँव के मुस्लिम परिवारों ने चुनौती दी कि जन्माष्टमी के दिन गौकशी (गौहत्या) होगी, किसी मे हिम्मत हो तो रोक ले।
गोमती तट पर स्थित शिव मंदिर के पुजारी द्वारिका ये सूचना लेकर इलाके के कुछ प्रतिष्ठित शासकों एवं ज़मींदारों से सहायता

हेतु गुहार लगाने पहुँचे, किंतु कोई वज़नदार आश्वासन उन्हें प्राप्त नहीं हुआ।
अंत में पुजारी जी जेवाँ के तत्कालीन शासक कुँवर दुर्गा बख्श सिंह के पास पंहुचे।कुँवर जी ने पूरे परिवार सहित इलाके के लोगों की सहायता से औरंगाबाद/चठिया पर हमला बोल दिया, बुजुर्ग बताते हैं कि बड़ा खून खराबा न हो जाय इस आशंका से तीन जिलों शाहजहाँपुर, लखीमपुर और पीलीभीत के पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट फोर्स सहित मौके पर पंहुच गए। वहाँ पर कुँवर जी के साथ हजारों की संख्या में मौजूद लड़ाकों को देख पुलिस ठिठक गई।

अपनी रणनीति और साहस से कुँवर जी ने उन गाँवों चारों तरफ़ से घेरकर शेख़ परिवार के युवक को पकड़ लिया और ऐलान कर दिया कि जैसे ही गौ माता के प्राण लेने का प्रयास होगा उसी क्षण शेख़ पुत्र की बलि ले लूँगा। शेख़ परिवारों में कोहराम मच गया और वे सब गौमाता को लेकर कुँवर जी के सम्मुख उपस्थित हुए और क्षमा-याचना करने लगे।इस प्रकार कुँवर जी गौ माता को सकुशल बचा कर ले आये। लोक कवि श्री मूलचंद उर्फ़ मूले (ग्राम अगौना, तहसील पुवायाँ) ने इस घटना का वर्णन लोकभाषा में किया था। जिसे दशकों तक पुराने लोग गाया करते थे।

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