
भास्कर समाचार सेवा सहरानपुर। संप्रभु भारत के गणतंत्र दिवस 74वा राष्ट्रीय पर्व देशभर में धूमधाम और हर्षोल्लास सहित सम्पन्न हुआ लेकिन सहारनपुर के राजनीतिक गलियारे में शाज़िया नामक सूर्योदय का प्रभाव देखने को मिला है, जिसका आभास तो पहले से था लेकिन अहसास सहारनपुर नगर की सियासी ऐतिहासिक ज़मीन कम्बोह के पुल पर हुआ, जहां पूर्व केंद्रीय मंत्री मरहूम काज़ी रशीद मसूद की बिटिया शाज़िया मसूद को तकरीर करते हुए लोगो ने सुना और उनकी भूमीका की जमकर सराहना हो रही है। अगर वहां हुए घटनाक्रम पर तपसरा किया जाए तो शाज़िया मसूद के भतीजे शायान मसूद ने भी चंद कदम की दूरी पर ही ध्वजारोहण किया और राष्ट्रीय गान शुरू होने पर शाज़िया मसूद ने अपने भाषण को रोक कर उसके सम्मान का प्रदर्शन किया जबकि अपनी बुआ को सलाम करना भी मुनासिब नही समझा जिसका जिक्र शाज़िया ने आगे की अपनी तकरीर में भी किया। इस घटनाक्रम के दौरान जब काज़ी रशीद मसूद के समर्थन में नारे लग रहे थे तब काज़ी रशीद मसूद अमर रहे के नारों को शायान मसूद ने भी दोहराया और उनके सियासी उत्तराधिकारी होने की हुंकार भरी जिस पर शाज़िया मसूद ने अपनी तकरीर में भी साफ किया कि वह अपने वालिद और महबूब नेता के नाम को अपने जीते जी डूबते हुए नही देख सकती हैं। उनकी पूरी तकरीर ने मरहूम और महबूब नेता काज़ी रशीद मसूद के अंदाज़ और अपने संबोधन में रहने वाले खुलूस का भी सुनने वालों को अहसास कराया है। वह किस राजनीतिक पार्टी से अपनी राजनीतिक यात्रा प्रारम्भ करेंगी यह तो जाहिर नही किया है, लेकिन उनकी सक्रियता से सभी दलों में सनसनी फैलने का अहसास कराने में भी सफल हुई है और वह अपने परिवार में चल रही खींच तान पर विराम लगाते हुए कैसे और किस तरह से आगे बढ़ेंगी ये तो अभी वक्त के गर्भ में है लेकिन सभी धर्मों, वर्गों, संप्रदायों को साथ लेकर चलने की अपने वालिद की लाइन को आगे बढ़ाएगी इसके संकेत भी दिए है जिस तरह शाज़िया मसूद ने अपने बड़े भाई इमरान मसूद को लेकर बयान दिया है उससे उनकी राजनीतिक परिपक्वता को भी समझा जा सकता है। परिवार में शुरू हुआ विवाद जनता के बीच होता हुआ जिस तरह से सियासी अखाड़े में आन खड़ा हुआ है और वो क्या शक्ल इख्तियार करेगा, ये तो अभी वक्त के गर्भ में है लेकिन शाज़िया मसूद की सियासी दस्तक सहारनपुर में मरहूम महबूब नेता काज़ी रशीद मसूद की कमी को भरने में कितनी सफल होती है या उनसे भी आला मुकाम हासिल करने में सफल होती है, इस पर सियासी पंडितों की नज़रे लग गयी हैं।