सीतापुर। जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने किसानों को अवगत कराया है कि फसलों में प्रतिवर्ष कीट, रोग एवं खरपतवार से होने वाली क्षति एवं कृषि रक्षा रसायनों के अविवेकपूर्ण प्रयोग से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव के दृष्टिगत परम्परागत कृषि विधियों यथा मेड़ों की साफ-सफाई, ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई एवं फसल अवशेष प्रबन्धन के साथ-साथ भूमि शोधन एवं बीज शोधन को अपनाया जाना नितांत आवश्यक है।
इससे कीट, रोग एवं खरपतवार का प्रकोप कम होने के साथ-साथ उत्पादन में वृद्धि होती है तथा कृषकों की उत्पादन लागत कम होने से उनकी आय में वृद्धि होती है। इन विधियों को अपनाने से पर्यावरणीय प्रदूषण भी कम होता है। गीष्मकालीन कीट, रोग एवं खरपतवार प्रबन्धन हेतु विभिन्न सुझाव एंव संस्तुतियों सहित पांच एडवायजरी जारी की जाती है।
जरूर करें मेड़ों की साफ सफाई
मेड़ों पर उगने वाले खरपतवारों की सफाई से किनारों की प्रभावित फसलों के बीच खाद एवं उर्वरकों की प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है। खरपतवारों को आगामी बोयी जाने वाली फसल में फैलने से रोका जा सकता है। मेडों पर उगे हुये खरपतवारों को नष्ट करने से हानिकारक कीटों एवं सूक्ष्म जीवों के आश्रय नष्ट हो जाते है। जिससे अगली फसल में इनका प्रकोप कम हो जाता है। सिंचाई के जल को खेत में रोकने में सहायता मिलती है।
ग्रीष्मकालीन में करें गहरी जुताई
गीष्मकालीन जुताई करने से मृदा की संरचना में सुधार होता है, जिससे मृदा की जलधारण क्षमता बढती है, जो फसलों के बढ़वार के लिये उपयोगी होती है। खेत की कठोर परत को तोड़कर मृदा को जड़ों के विकास के लिये अनुकूल बनाने हेतु गीष्मकालीन जुताई अत्याधिक लाभकारी है। खेत में उगे हुये खरपतवार एवं फसल अवशेष मिटटी में दबकर सड़ जाते है।
जिससे मृदा में जीवांश की मात्रा बढ़ती है। मृदा के अन्दर छिपे हुए हानिकारक कीट जैसे दीमक, सफेद गिडार, कटुआ, बीटिल एवं मैगट के अण्डे लार्वा व प्यूपा नष्ट हो जाते है, जिससे अग्रिम फसल में कीटों का प्रकोप कम हो जाता है। गहरी जुताई के बाद खरपतवारों जैसे-पथर चटटा, जंगली चौलाई, दुध्धी, पान पत्ता, रसभरी सांवा, मकरा आदि के बीज सूर्य की तेज किरणों के सम्पर्क में आने से नष्ट हो जाते है। जमीन में वायु संचार बढ जाता है जो लाभकारी सूक्ष्म जीवों की वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है। मृदा में वायु संचार बढ़ने से खरपतवारनाशी एवं कीटनाशी रसायनों के विषाक्त अवशेष एवं पूर्व फसल की जड़ों द्वारा छोड़े गये हानिकारक रसायन सरलता से अपघटित हो जाते है।
कैसे हो फसल अवशेष प्रबन्धन
रबी फसलों की कटाई के उपरान्त फसल अवशेष भूमि के अन्दर उपलब्ध होते है। इनको लगभग 20 किग्रा0 यूरिया प्रति एकड की दर से अथवा डी-कम्पोजर मिटटी में मिला देने से 20-30 दिन के भीतर यह अवशेष सड़कर कार्बानिक पदार्थों में बदल जाते है, जिसके फलस्वरूप मृदा की उर्वरा शक्ति बढ जाती है।
ऐसे करें भूमि तथा बीज शोधन
जैविक फफॅूदनाशक ट्राइकोडर्मा हारजेनियम 2 प्रतिशत डब्लू0पी0 2.50 किग्रा0 को 65-75 किग्रा0 गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई के पूर्व अन्तिम जुताई पर भूमि में मिला देने से फफॅूद से फैलने वाले रोग जैसे-जड़ गलन, तना सड़न, उकठा एवं झुलसा का नियंत्रण हो जाता है।
ब्यूवेरिया बैसियाना 1 प्रतिशत डब्लू0पी0 बायोपेस्टीसाइडस की 2.5 किग्रा0 मात्रा प्रति हेक्टेयर 65-75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व अन्तिम जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक, सफेद गिडार, कटवर्म एवं सूत्रकृमिक नियंत्रण हो जाता है। बुवाई से पूर्व 2.5 ग्राम थीरम 75 प्रतिशत डी0एस0 अथवा कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू0पी0 2 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा 4-5 ग्राम प्रति किग्रा0 बीज की दर से शोधित करके बुवाई करने से बीज जनित रोग जैसे-बीज गलन, तना सड़न, झुलसा, उकठा का नियंत्रण हो जाता है।