सीतापुर : तापमान गिरावट से फसलों पर पड़ने लगा विपरीत असर

सीतापुर। उप कृषि निदेशक एसके सिंह ने बताया कि जनपद में लगातार तापमान में गिरावट देखी जा रही है, मौसम विभाग द्वारा आशंका व्यक्त की गयी है कि आगामी कुछ समय तक शीत लहर का प्रकोप बना रहेगा ऐसे मौसम में किसान भाइयों को स्वयं का ठण्ड से बचाव करते हुए स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए, साथ ही अत्यधिक ठण्ड से फसलों को होने वाले नुकसान से बचाया जाना चाहिए ।

जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने फसलों को रोगों से बचाव के बताए उपाय

तापमान में लगातार गिरावट से पाले के प्रति अति संवेदनशील फसलें जैसे अरहर, चना, मटर, मसूर, मिर्च, सरसो, धनिया टमाटर, बैगन,आलू तथा अन्य सागभाजी आदि ज्यादा प्रभावित होती है। दिसंबर माह के मध्य से फरवरी माह में पाला पड़ने की अधिक सम्भावना होती है । रात में फसलों के पेड़ व पत्तियों में जो ओस की बूंदे रात में पड़ती हैं तापमान ज्यादा गिरने से यहीं ओस की बूंदे बर्फ में बदल जाती है, जिससे पौधों एवं पत्तियों के छिद्र (स्टोमेरा) बंद हो जाते है। पौधे और पत्तियां सांस लेना बंद कर देते हैं तथा धीरेदृधीरे सूखने लगती है। इसी प्रक्रिया को पाला कहते है।

आलू में पछेती झुलसा

यह फफूंद से लगने वाली भयानक बीमारी है, इस बीमारी का प्रकोप, आलू की पत्ती, तने तथा कन्दों सभी भागों पर होता है। पछेती झुलसा के नियंत्रण हेतु किसानों को सलाह दी जाती है कि आलू की हल्की सिंचाई करें। साथ ही कापरआक्सीक्लोराइड 50 प्रति0 डब्लू0पी0, मात्रा 2.0 कि0ग्रा0 अथवा मैंकोजेब 75 प्रति0 डब्लू0 पी0, मात्रा 02 कि0ग्रा0 को 750 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से 08-10 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करें।

गेहूँ में गेरूई रोग

गेरूई काली, भूरी एवं पीले रंग की होती है। यह फफूंदजनित रोग है। फफंूद के प्रकोप से पत्तियों पर फफोले पड जाते हैं, जो बाद में बिखर कर अन्य पत्तियों को प्रभावित करती है। काली गेरूई तना तथा पत्तियों दोनों को प्रभावित करती है। प्रोपीकोनाजोल 25 प्रति0 ईसी0 मात्रा 500 मि0ली0 प्रति हेक्टेयर को 750 लीटर पाली में घोल बनाकर छिडकाव करें।

इसी प्रकार ’गेंहू’ में सकरी एवं चैडी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण हेतु सल्फोसल्फ्यूरान 75प्रति0 मेटसल्फ्यूरान 5 प्रति0 डब्लू.डी.जी. मात्रा 40 ग्राम को 350-400 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के 20 से 25 दिनों के अन्दर छिडकाव करें। यदि गेंहू की बुवाई 35 से 40 दिनों की हो गई हो तो, सकरी एवं चैडी पत्ती वाले खरपतवार के ’नियंत्रण’ हेतु क्लोडिनाफाप 15 प्रति0 मेटसल्फ्यूरान 01 प्रति0 डब्लू.पी. की 400 ग्र्राम मात्रा को 375 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।

मटर’ ’की’ ’फसल’ में बुकनी रोग यचवूकमतल उपसकमूद्ध

इस रोग में पत्तियो, तनों एवं फलियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देते हैं, जिससे बाद में पत्तियॉ सूखकर गिर जाती हैं। बुकनी रोग के नियंत्रण हेतु घुलनशील गंधक (सल्फर) 80 प्रति0 डब्लू0डी0जी0, मात्रा 02 किग्रा0 अथवा ट्राइडेमेफान 25 प्रति0 डब्लू0पी0, मात्रा 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर को लगभग 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।

’राई’ ’सरसों’ ’की’ ’फसल’ में सफेद गेरूई रोग

इस रोग में पत्तियों की निचली सतह पर सफेद फफोले बनते हैं, जिससे पत्तियॉ पीली होकर सूखने लगती हैं, फूल आने की अवस्था में पुष्पक्रम विकृत हो जाता है, जिससे कोई भी फली नहीं बनती है। इस रोग के नियंत्रण हेतु मैंकोजेब 75 प्रति0 डब्लू0पी0 मात्रा 02 किग्रा0 या जिनेब 75 प्रति0 डब्लू0पी0, मात्रा 02 किग्रा0 अथवा कापारआक्सीक्लोराइड 50 प्रति0 डब्लू0पी0, मात्रा 03 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से 600-750 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।

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