
सीतापुर। करीब एक दर्जन जिले में पैदा होने वाली देशी मसूर की तरफ से अन्नदाताओं का मांेह भंग होता जा रहा है। जिस देशी मसूर की खुशबू से पाकिस्तान, ढाका, बंग्लादेश समेत विभिन्न मुस्लिम देश लवरेज रहते थे आज वह मसूर सिर्फ देश के अंदर ही सिमट कर रह गई है। कारण कुछ और नहीं बल्कि कांग्रेस शासनकाल से बंद इस मसूर का निर्यात है। इस निर्यात को शुरू कराने के व्यापारियों ने अनेकों बार गुहार लगाई लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा।
बताते चलंे कि उत्तर प्रदेश के बरेली, पीलीभीत, लखीमपुर, सीतापुर, गोंडा, बहराइच आदि एक दर्जन जिलों में देशी मसूर की कभी बंपर पैदावार हुआ करती थी। यह अपने विशेष जायके के लिए जानी जाती थी। इसके बेहतरीन जायके तथा खुशबूदार होने के कारण इसे देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोग चाव से खाते थे लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसके विदेशी निर्यात पर रोक दी। जिससे बंपर पैदा होने वाली इस मसूर पर किसानों को कम लाभ मिलने लगा और उनका मोह भंग होता चला गया। आज आलम यह है कि जिन जिलों में हजारों कुंटल मसूर पैदा होती थी आज वहां पर यह लगभग नदारद होने लगी है। विदेशों तक निर्यात करने वाले दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय बंसल बताते हैं कि कांग्रेस की गलत नीतियों से निर्यात पर रोक लगी। कई बार मांग उठाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने इसे खुलवाया लेकिन उसमें कई ऐसे नियम लागू कर दिए गए कि उन्हें पूरा कर पाना मुश्किल था जिससे नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। उन्होंने बताया कि किसान अब मसूर की जगह लाही पैदा करने में अधिक रूचि ले रहा है। उन्होंने कहा कि अगर आज भी सरकार इस तरफ फिर से ध्यान दे तो मसूर की पैदावार बढ़ सकती है।