सीतापुर : त्रेतायुग से पूर्व प्रथम बार सीताराम की छवि के हुए है दर्शन

सीतापुर। धीरे-धीरे 22 जनवरी की तारीख नजदीक आ रही है। करीब 550 वर्षों के इंतजार के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर का सपना साकार होने जा रहा है। वैसे तो अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि कही जाती है पर अवध क्षेत्र में ही स्थित माता सीता के नाम पर बसे सीतापुर जनपद के नैमिषारण्य तीर्थ का भगवान राम की जन्म भूमि अयोध्या से सतयुग का संबंध है। सामान्यतः नैमिषारण्य तीर्थ का नाम सुनते ही मन में ऋषियों की तपोभूमि, माँ ललिता देवी शक्तिपीठ व अन्य पौराणिक देवस्थलों का चित्र अनायास सामने आने लगता है।

अयोध्या में भव्य राम मंदिर उद्घाटन के शुभ अवसर पर आपका दैनिक भास्कर विशेष सीरीज ‘तीरथवर के राम’ के माध्यम से अपने पाठकों को भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या और सतयुग के प्रमुख धर्मस्थल नैमिषारण्य तीर्थ के अनकहे सनातन सम्बन्ध के बारे में परिचित कराएगा। रामचरितमानस के बालकांड में है वर्णन

महर्षि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के बालकांड में नैमिषारण्य तीर्थ को तीरथवर की उपमा से अलंकृत किया है। महर्षि तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं कि सृष्टि के प्रथम दम्पत्ति राजा मनु और रानी शतरूपा अपना सब राजपाट अपने पुत्रों को सौंपकर नैमिषारण्य तीर्थ में आए हैं। यहां उन्होंने गोमती नदी के तट पर 23,000 वर्ष तपस्या की हैं इस अवधि में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने बार-बार मनु सतरूपा से वरदान मांगने का को कहा है।

परन्तु मनु शतरूपा ने भगवान का जो दिव्य स्वरूप मन में विचार रखा था अंत में भगवान उसी स्वरूप में नैमिषारण्य तीर्थ में अवतरित हुए हैं। नैमिषारण्य तीर्थ को भगवान राम के जन्म की कारण भूमि भी कहा जाता है। यही के वरदान के फलस्वरूप राजा मनु और रानी शतरूपा अगले जन्म में राजा दशरथ और रानी कौशल्या हुए हैं और उन्हें प्रभु श्री राम के माता पिता होने का पुण्य प्राप्त हुआ है, रामचरितमानस के बालकांड में वर्णन आता है।
इनसेट
यही पर मनु-सतरूपा ने 23000 वर्ष किया है तप

रामचरितमानस में वर्णन आता है कि सृष्टि के पहले दम्पत्ति स्वायम्भु मनु और शतरूपा ने गोमती के निकट ष् ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ष् का जाप करते हुए कठिन तपस्या की थी। मान्यता है कि इसकी स्थान पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव राजा मनु को वरदान देने बार-बार आए हैं परंतु मनु ने इसे वरदान नहीं मांगा इसके बाद प्रभु श्री हरि अपने दिव्य रूप में प्रकट हुए हैं। रामचरितमानस में वर्णन है कि भगवान श्री हरि ने पहले मनु से वरदान मांगने को कहा है तब मनु ने भगवान को पुत्र रूप में प्राप्त करने का वर मांगा है फिर श्रीहरि ने सतरूपा जी से वर मांगने को कहा है तो सतरूपा ने भी मनु द्वारा मांगें गए वर को ही देने की विनती की है।

वर देने के बाद ये रहा घटनाक्रम

पुत्र प्राप्ति का वर देने के बाद श्रीहरि ने मनु को देवराज इन्द्र की राजधानी अमरावती में निवास का आदेश दिया और कहा कि त्रेतायुग में तुम अवध के राजा होंगे तब मैं मनुष्य रूप में आपके घर में प्रकट होऊँगा और मानव शरीर धारण करके भक्तों को सुख देने वाली लीला करूँगा। जिसको बड़े भाग्यशाली मनुष्य आदरसहित सुनकर, ममता और मद त्यागकर, भवसागर से तर जाएँगे। इस दौरान भगवान ने कहा कि त्रेतायुग में देवी लक्ष्मी भी सीता के रुप में अवतरित होंगी , ऐसा कहकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गए

प्रथम बार यही पर हुए है सीताराम युगल के दर्शन
मान्यता है कि भगवान ने वरदान देते समय प्रथम बार यहीं मनु-सतरूपा को प्रभु सीताराम की छवि के दर्शन कराए थे और कहा था कि त्रेतायुग में श्रीहरि और देवी लक्ष्मी इसी स्वरूप में आपके यहां पुत्र और पुत्रवधू के रूप में अवतरित होंगे और आपके सूर्यवंशी कुल को कृतार्थ करेंगे।

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