सीतापुर : कालीपीठ मंदिर में नवरात्रि में होंगे विशेष धार्मिक अनुष्ठान

सीतापुर । नैमिषारण्य तीर्थ स्थित प्रसिद्ध दक्षिण मुखी कालीपीठ मंदिर में इस बार वासंतीय नवरात्रि के अवसर पर विशेष पूजन एवं अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है, नवरात्रि के दौरान मां काली की विशेष आराधना, कलश स्थापना के साथ ही रामचरित मानस पाठ व दुर्गाशप्तसती के पाठ का भव्य आयोजन किया जा रहा है। कालीपीठाधीश और ललिता देवी मंदिर सिद्धपीठ के प्रधान पुजारी गोपाल शास्त्री ने बताया कि कालीपीठ संस्थान द्वारा पूरे वर्ष धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ एवं भागवत कथाओं का आयोजन किया जाता है लेकिन माता रानी के आराधना के सर्वात्तम अवसर होता है।

नवरात्रि पूरे 9 दिनों तक कालीपीठ में महामायी के भक्त यहां दर्शन पूजन व भजन सुना कर मातारानी की आराधना करते हैं। उन्होनें बताया कि इस बार प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री महन्त योगी आदित्यनाथ की मंशा के अनुरूप मंदिर में रामचरित मानस का विशेष पाठ भी किया जायेगा वैसे प्रत्येक नवरात्रि में यहां मानस पाठ समेत विभिन्न देवी अनुष्ठान आयोजित किये जाते हैं, संस्थान द्वारा कन्या भोज, संत भोज व ब्राह्मणों को फलाहार वितरण भी किया जायेगा।

इस बार 25 मार्च को होंगे माता धूमावती के दर्शन

कालीपीठ मंदिर के संचालक और महन्त पुजारी भाष्कर शास्त्री ने बताया कि कालीपीठ मे स्थित माता धूमावती के दर्शन नवरात्रि के अवसर पर इस बार भक्तों को एक बार ही होंगे चूंकि इस बार वासंतीय नवरात्रि में एक ही शनिवार पड रहा है अतः भक्तों को माता के दर्शन का लाभ 25 मार्च को ही माता के दर्शन हो सकेंगे। उन्होंने बताया कि कालीपीठ मंदिर के संस्थापक ब्रह्मलीन पं0 जगदंबा प्रसाद जी के द्वारा माता धूमावती की स्थापना की गयी थी, वे सिद्धपीठ दतिया से दीक्षा प्राप्त थे। उन्होने बताया कि नवरात्रि में पड़ने वाले शनिवार के अलावा अन्य दिनों में माता धूमावती के दर्शन सम्भव नहीं हैं। दस महाविद्याओं में उग्र देवी धूमावती का स्वरूप विधवा का है। कौवा इनका वाहन है। वह श्वेत वस्त्र धारण किये हुये हैं। खुले केस उनका रूप और विकराल बनाते हैं।

पुजारी जी ने बताया कि माँ का स्वरूप कितना ही उग्र क्यों न हो संतान के लिये वह हमेंशा कल्याण कारी होता है। छह माह में नवरात्रि के अवसर पर ही उनके दर्शन किये जाते हैं। दनके दर्शन कर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। शनिवार को काले कपडे़ में काले तिल मां के चरणों में भेंट किये जाते हैं। मान्यता है कि सुहागिने माता के दर्शन नहीं करती हैं। ऐसा देवी के वैधव्य रूप के कारण है। वस्तुतः उनके इस रूप का कारण अलग है। मां धूमावती अपनी क्षुधा शांत करने के लिये भगवान शंकर के पास गयीं उस समय वह समाधि में लीन थे माता के बार-बार निवेदन पर भी उनका ध्यान उस ओर नहीं गया फलस्वरूप देवी ने उग्र होकर भगवान शिव को निगल लिया। भगवान शंकर के गले में विश होने के कारण माँ के शरीर से धुआ निकलने लगा। इसी कारण उनका नाम धूमावती पड़ा।

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