
ईसानगर, खीरी, लखीमपुर । कहते हैं इंसानियत से बड़ी कोई सेवा नहीं होती, इसका जीता-जागता उदाहरण ईसानगर थाना क्षेत्र के ग्राम शिवपुर निवासी समाजसेवी अंबुज मिश्रा ने प्रस्तुत किया। दो माह पूर्व महाकुंभ मेले में अपने परिजनों से बिछड़ी 85 वर्षीय बुजुर्ग महिला चिंतामणि देवी, पत्नी मन्नीलाल, गांव चोपन, थाना चोपन, जिला सोनभद्र, भटकते-भटकते ईसानगर के अदलिशपुर गांव तक आ पहुंचीं। उम्र के इस पड़ाव पर जहां कदम डगमगाने लगते हैं, वहीँ अनजान रास्तों पर भूख-प्यास से बेहाल यह वृद्धा गांव की गलियों में भटक रही थीं।
11 अप्रैल को जब समाजसेवी अंबुज मिश्रा अदलिशपुर के रास्ते से गुजर रहे थे, उनकी नजर सड़क किनारे बैठी इस असहाय वृद्धा पर पड़ी। दया और मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत अंबुज मिश्रा तत्काल उनके पास पहुंचे और हालचाल पूछा। बातचीत में महिला ने अपनी दुखभरी दास्तां सुनाई, जिसे सुनकर मिश्रा भावुक हो उठे और उन्हें अपने गांव शिवपुर स्थित घर ले आए।
घर पर अंबुज मिश्रा और उनके परिजनों ने पूरी ममता और सेवा भाव से बुजुर्ग महिला की देखभाल की। महिला के आराम का पूरा ध्यान रखते हुए अंबुज ने महिला के गांव चोपन के प्रधान से संपर्क साधा। प्रधान ने बुजुर्ग महिला के परिजनों से बात करवाई। जैसे ही महिला ने वर्षों बाद परिजनों की आवाज़ सुनी, उसकी आंखों में खुशी के आंसू छलक उठे। फोन पर ही उन्होंने परिजनों से कहा, “मुझे रास्ते में एक बेटा मिला, जिसने मुझे अपनाया और आज मैं सुरक्षित हूं।”
परिजनों ने मिश्रा का आभार जताते हुए कहा, “आप जैसे लोग वास्तव में धरती पर भगवान के रूप में मिलते हैं। आपकी ये मदद हमारी जिंदगी में कभी भुलाई नहीं जा सकेगी।” आर्थिक तंगी के चलते परिजन तत्काल नहीं पहुंच सके, लेकिन मिश्रा लगातार उनके संपर्क में बने रहे और महिला की हर जानकारी साझा करते रहे।
आज, 16 अप्रैल का दिन उस बुजुर्ग महिला के लिए किसी त्यौहार से कम नहीं था। उनके बेटे रामू, बेटी गीता और पोता सनी, मिश्रा जी के गांव शिवपुर पहुंचे। वर्षों बाद अपनों से मिलने की खुशी महिला के चेहरे पर झलक रही थी। जैसे ही बुजुर्ग ने अपने बेटे, बेटी और पोते को देखा, उनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। पूरे गांव की आंखें भी उस भावुक मिलन दृश्य को देखकर नम हो गईं। परिजनों के साथ कुछ समय बिताने के बाद चिंतामणि देवी खुशी-खुशी अपने गांव के लिए रवाना हो गईं।
इस नेक कार्य पर अंबुज मिश्रा ने कहा –
“दादी के साथ बिताए ये पांच दिन मेरे जीवन के सबसे अद्भुत क्षणों में से हैं। दादी ने ढेरों दुआएं दीं, ऐसा महसूस हुआ मानो पूर्व जन्म का कोई रिश्ता हो।”
ईसानगर की इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि आज भी समाज में ऐसे लोग मौजूद हैं जो निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद कर, इंसानियत की मिसाल कायम कर रहे हैं।