महावीर जयंती-पर विशेष ;भगवान महावीर ने मुक्ति की सरल और सच्ची राह दिखाई  

-डॉ. अलका अग्रवाल

भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवंे तीर्थंकर थे। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले वैशाली गणराज्य के कुन्डग्राम में अयोध्या इक्ष्वाकुंशी क्षत्रिय परिवार में हुआ। मात्र तीस वर्ष की आयु में भगवान महावीर को वैराग्य हुआ और उन्होंने राजवैभव त्यागकर संन्यास धारण किया और आत्मकल्याण के पथ पर अग्रसर हो गये। भगवान महावीर एक चक्रवर्ती सम्राट थे लेकिन उन्हें अनायास ही संसार से विरक्ति हो गई और वे सब कुछ छोड़कर जंगल में चले गये। 12 वर्षों की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 32 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। जैन समाज द्वारा महावीर भगवान के जन्म को महावीर जयन्ती के रूप में और निर्वाण दिवस को दीपावली के रूप में मनाया जाता है।  

जैन ग्रन्थ के अनुसार समय-समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिये तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते हैं। जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए, उनमें पहले ऋषभनाथ जी थे और अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर थे। भगवान महावीर ने दुनिया को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया। भगवान महावीर ने अहिंसा को सर्वोच्च नैतिक गुण बताया। उन्होंने जैन धर्म के पंचशील सिद्धान्त बताये हैं, जिनमें सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, आचार्य और ब्रह्मचर्य है। भगवान महावीर का यह विचार था कि दुनिया की सभी आत्माएँ एक सी हैं। अतः सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिये। इसलिये उन्होंने ‘जीयो और जीने दो’ का सिद्धान्त दिया। किसी का वध करना तो हिंसा है ही लेकिन भगवान महावीर के संदेश के अनुसार किसी को दुखी करना या किसी के प्रति मन में बुरा विचार लाना भी हिंसा ही है।   जैन धर्म के अनुसार अनावश्यक संचय करना या ज़रूरत से ज़्यादा संचित करना ही अपरिग्रह है। अतः उतना ही अपने पास रखें, जितने की आपको आवश्यकता है। इसी सिद्धान्त द्वारा आर्थिक असमानता को दूर किया जा सकता है। अचौर्य के अनुसार किसी भी प्रकार का चोरी या लूटपाट का भय मन में नहीं होगा तो मानसिक अशांति दूर होगी और शान्ति स्थापित रहेगी। इतने वर्षों के बाद भी भगवान महावीर का नाम उसी श्रद्धा और भक्ति के साथ लिया जाता है। इसका मूल कारण यही है कि भगवान महावीर ने इस जगत को न केवल भक्ति का संदेश दिया अपितु मुक्ति की सरल और सच्ची राह बताई। उनके संदेश आज भी प्रासंगिक हैं।

लेखिका
मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस
ग़ाज़ियाबाद की निदेशिका

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