
आर्थिक संकट से उबरने के लिए श्रीलंका की रानिल विक्रमसिंघे सरकार ने सरकारी एयरलाइन बेचने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री की तरफ से इसका प्रस्ताव रखा गया है। इसके साथ ही सरकार ने नई करेंसी छापने का भी फैसला लिया है। फिलहाल, सरकार के पास कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिए पैसा नहीं हैं।
आर्थिक और सियासी मोर्चे पर जूझ रहे श्रीलंका ने दो साल पहले राष्ट्रपति को सत्ता की सारी शक्तियां सौंपकर बहुत भारी गलती की थी। राजपक्षे परिवार ने उसे इतिहास के सबसे बुरे दौर में पहुंचा दिया। अब इस गलती को सुधारने की कोशिश हो रही है, लेकिन बहुत सोच-समझकर कदम उठाए जा रहे हैं। अब संविधान में एक बेहद अहम संशोधन किया जा रहा है। इसका सीधा मकसद सत्ता और शक्तियों का सही बंटवारा है, ताकि कोई हुक्मरान मनमर्जी या तानाशाही न कर सके।
श्रीलंका संकट से जुड़ी जानकारी
राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव मंगलवार को संसद में नाकाम साबित हुआ।
9 मई को हुई हिंसा के मामले में पोदुजना पार्टी के दो सांसदों को मंगलवार को गिरफ्तार किया गया।
श्रीलंका में पेट्रोल पंपों पर पेट्रोल खत्म हो गया है। इस वजह से देश में अफरातफरी का माहौल है।
कुछ महीने पहले देश में आर्थिक संकट शुरू हुआ
कुछ महीने पहले देश में आर्थिक संकट शुरू हुआ। अब दिवालिया होने का खतरा है। धीरे-धीरे यह साफ होता चला गया कि राजपक्षे परिवार ने अपने सियासी रसूख का बेहद गलत इस्तेमाल किया। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे। कैबिनेट मिनिस्टर्स में भी घोर भाई-भतीजावाद। देश दिन-ब-दिन गर्त में जाता रहा और राजपक्षे परिवार ऐश-ओ-आराम की जिंदगी जीता रहा।
पानी जब गले तक आ गया तो राष्ट्रपति गोटबाया ने भाई महिंदा को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की अगुआई में नई यूनिटी सरकार बनी। इसका विस्तार बाकी है।
संविधान संशोधन
इसको समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा। 2015 में श्रीलंका के संविधान में 19वां संशोधन किया गया। इसके तहत राष्ट्रपति से प्रधानमंत्री को हटाने का अधिकार छीन लिया गया। कुछ और भी बदलाव हुए। ये कैबिनेट मिनिस्टर्स को हटाने, प्रधानमंत्री के इस्तीफा देने, संसद से बजट पारित न होने और अविश्वास प्रस्ताव पारित होने जैसे मामलों से जुड़े थे। ज्यादातर मामलों में राष्ट्रपति की शक्तियां छीन ली गईं।
नई कहानी शुरू हुई नवंबर 2019 में। महिंदा राजपक्षे के बड़े भाई गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति बन गए। अगस्त 2020 में जनरल इलेक्शन हुए। राजपक्षे की पार्टी ने जबरदस्त जीत हासिल की। छोटे भाई गोटबाया ने बड़े भाई महिंदा को प्रधानमंत्री बना दिया।
पूर्ण बहुमत की सरकार का फायदा उठाते हुए राजपक्षे परिवार की किचन कैबिनेट ने 20वां संविधान किया। इसके तहत 19वें संशोधन में जो पॉवर्स प्रेसिडेंट से छीने गए थे, उन्हें फिर राष्ट्रपति के हवाले कर दिया गया। ये शक्तियां पहले से कहीं ज्यादा थीं।
देश में राजपक्षे परिवार के खिलाफ बेहद गुस्सा
देश में राजपक्षे परिवार के खिलाफ बेहद गुस्सा या नफरत है। आम श्रीलंकाई ये मान रहा है कि राजपक्षे परिवार ही श्रीलंका की मुसीबतों की जड़ है। लिहाजा, नए प्रधानमंत्री रानिल ने अब देश को 20वें संविधान संशोधन से छुटकारा दिलाने का बीड़ा उठाया है। श्रीलंका की यूनिटी गवर्नमेंट 21वां संशोधन करने जा रही है। अगले हफ्ते इसका ड्राफ्ट कैबिनेट के सामने रखा जाएगा।
माना ये जा रहा है कि 21वें संशोधन के जरिए 19वें संशोधन की बातों को ही बहाल किया जाएगा। आसान शब्दों में कहें तो अब राष्ट्रपति की बजाए संसद, कैबिनेट और प्रधानमंत्री 2015 की तरह ताकतवर हो जाएंगे। राष्ट्रपति की मनमानी पूरी तरह खत्म हो जाएगी।
जानिए ये…
श्रीलंकाई संसद बहुत जल्द 21वें संविधान संशोधन पर विचार करेगी। इसके पहले ड्राफ्ट कैबिनेट के सामने पेश किया जाएगा। महिंदा तो इस्तीफा दे चुके हैं, लेकिन राष्ट्रपति गोटबाया अब भी कुर्सी पर हैं। जाहिर है, वो इसका विरोध करेंगे। देश का मूड देखते हुए ये कहा जा सकता है कि गोटबाया का विरोध बड़ी आसानी से खारिज कर दिया जाएगा। नई सरकार भी इस बात को बखूबी समझ रही है और इसीलिए उसने माकूल वक्त देखते हुए राष्ट्रपति की शक्तियां कम करने का फैसला कर लिया है।
21वां संशोधन होते ही राष्ट्रपति महज ‘सेरेमोनियल हेड ऑफ द स्टेट’, यानी प्रतीकात्मक राष्ट्र प्रमुख रह जाएगा। उसकी तमाम शक्तियां संसद, कैबिनेट और प्रधानमंत्री के पास चली जाएंगी। वो न तो प्रधानमंत्री को मर्जी से हटा सकेगा और न मिनिस्टर्स को। उनको सीधे अपॉइंट भी नहीं कर सकेगा। वो संसद या सरकार की लिखित सलाह या सिफारिश पर ही कोई फैसला ले सकेगा। तीनों सेनाओं के अध्यक्षों की नियुक्तियां भी कैबिनेट और संसद की मंजूरी के बाद ही की जा सकेंगी।