सुल्तानपुर। जहरीली शराब माफिया, मदिरा अधिकारी और पुलिस के इस बेमेल गठबंधन से जिले के कोने-कोने में जहरीली देशी शराब की तस्करी का जाल फैला हुआ है और जहरीली शराब की बिक्री होती है। जहां प्रदेश भर के कई जिलों में जहरीली शराब से हुई मौतों के बाद योगी सरकार द्वारा नए आबकारी एक्ट में सजा-ए-मौत का प्राविधान करने के बाद भी जिला आबकारी अधिकारी हितेन्द्र शेखर और उनके मातहत इलाकाई निरीक्षकों पुलिस और जहरीली शराब कारोबारियों की तिकड़ी जहरीली शराब सप्लाई में सक्रिय हैं।
गांव-गांव में धधक रही जहरीली देशी शराब की भट्ठियां
बताया जा रहा है कि जिले भर में जहरीली शराब के फैले कारोबार में शामिल माफिया यूं ही एक दो दिन या महीने भर में शराब तस्करी के सरगना नहीं बन गए। इसके लिए जहरीली शराब के कारोबारी माफिया पिछले कई महीनों से आबकारी अधिकारी और उनके इलाकाई मातहतों तक आबकारी सिस्टम में सेंध लगाई और पुलिस महकमे में पकड़ बनाई, तब जाकर ये मौत के कारोबारी जहरीली शराब के जरिए मौत बेचने वाले सरगना बने।
बताया तो यहां तक जा रहा है कि इन मौत के सौदागरों द्वारा कुछ सरकारी ठेकों पर भी देशी जहरीली शराब की सप्लाई कराई जाती है। सूत्र बताते हैं कि जिन सरकारी शराब के ठेकों पर देशी जहरीली शराब की सप्लाई की जाती है, उन सरकारी ठेकों पर आफ रिकार्ड कोई चेकिंग नहीं होती और न ही स्टाक रजिस्टर ही मेनटेन होता है।
हालांकि विभागीय दफ्तर में सब आल इज वेल लिखा होता है। इसका नमूना भी आबकारी विभाग लाकडाउन के दौरान दे चुका है। जब कोरोनो वायरस के कारण शराब के सारे ठेकों पर ताला लटक रहा था, तब भी आबकारी महकमा सरकारी ठेका संचालकों से स्टाक मिलान कराने का हौव्वा खड़ाकर वसूली में मशगूल था और शराब के ठेकों के संचालकों ने आबकारी विभाग को हमवार कर चोर दरवाजे से सारे स्टाक की बिक्री कर दी थी।
शराब माफियाओं के जिले के कोने-कोने तक फैले नेटवर्क के बारे में संक्षेप में कहा जाय तो आबकारी विभाग की मदद से ही जहीरीली शराब के कोरोबारी गांव-गांव में मौत बेचने का गोरखधन्धा कर रहे हैं। हां, इतना जरूर है कि प्रदेश में जब भी कोई घटना घटित होती है, आबकारी विभाग अपना फर्ज अदायगी निभाने और सक्रियता दिखाने के लिए एक-दो जगहों पर लहन नष्ट कराकर फोटो छपवाकर खामोश बैठ जाता है और अप्रिय घटना घटने का इंतजार करता है।
इन धधकते सवालों का जबाब नहीं
जिले में जहरीली शराब का कारोबार अपने पूरे शबाब पर है। कच्ची जहरीली देशी शराब के कारोबार संचालन को लेकर आबकारी महकमा भले ही लाख बहाने बनाए और जिले में यदा-कदा कच्ची शराब बनाने वालों के खिलाफ छापेमारी कर अपनी पीठ खुद थपथपाए, लेकिन कच्ची शराब के बेखौफ कारोबार के सम्बन्ध में कई सवाल अनुत्तरित हैं। जैसे गांवों में जहरीली शराब आती कहां से है ? क्या आबकारी और स्थानीय पुलिस की सहभागिता तथा मिलीभगत से मौत का यह धंधा फलफूल रहा है ?
क्या आबकारी और पुलिस को गांवों में चल रही कच्ची शराब की धधकती भट्ठियों के बारे में कोई जानकारी नहीं रहती है ? अगर जानकारी नहीं रहती तो चेकिंग अभियान के दौरान प्रवर्तन दल के अधिकारी वहां कैसे पहुंच जाते हैं जहां शराब की भट्ठियां धधक रही होती हैं। इन सवालों का जबाब न तो पुलिस के अधिकारी दे रहे हैं और न ही आबकारी विभाग के अधिकारी वहां कैसे पहुंच जाते।