सुलतानपुर। नवरात्र आया और देवी भक्त दौड़ पड़े मां के दरबार उनका दर्शन करने, उनसे मुंह मांगी मुरादें पूरी करने और उनके आशीर्वाद से अपनी किस्मत बदलने। जिले में देवी मां का ऐसा चमत्कारिक मंदिर शायद कहीं हो। जी हां ! हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से 4 किमी दूर लखनऊ-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित लोहरामऊ के दुर्गा मंदिर की। यहां हर नवरात्र उनके हजारों भक्त व्रत का पालन करते हुए उनका दर्शन कर अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। कहा जाता है कि जो भी भक्त यहां आया खाली हाथ नहीं लौटा।
जनश्रुतियों के अनुसार प्राचीनकाल में लोहरामऊ के आसपास घने जंगल थे। यहां स्थित एक नीम के पेड़ के पास एक चरवाहे ने पिंडी रूप में देवी मां को देखा। बताया तो यह भी जाता है कि देवी मइया के आशीर्वाद से भदैंया के राजा व लोहरामऊवासियों की आपातकाल में रक्षा हुई। तभी से देवी मइया के मंदिर को सिद्ध स्थल के रूप में पूजा जाने लगा।
करीब तीन दशक पहले मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। 1988 में देवी मंदिर का नवनिर्माण कर प्रतिमा की स्थापना हुई। सावन के महीने में तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता है। जिसमें आसपास के जिलों से भी श्रद्धालु आते हैं। जिला मुख्यालय से 4 किमी पूरब लखनऊ-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर लोहरामऊ बाजार स्थित है। यहां पहुंचने के लिए रोडवेज बस के साथ आटो रिक्शा से भी पहुंचा जा सकता है।
शहर के राहुल चैराहे से आवागमन के कई साधन मिलते हैं। लोहरामऊ देवी मंदिर का पट नवरात्र में सुबह चार बजे खुल जाता है। सुबह छह बजे व शाम आठ बजे देवी मइया की आरती होती है। नवरात्र के बाद दिन में बारह से शाम चार बजे तक कपाट बंद रहता है। रात्रि दस बजे तक माता के दर्शन किए जा सकते हैं। सुरक्षा के लिए कोतवाली देहात के पुलिस कर्मी व महिला सिपाहियों की मुस्तैदी रहती है।
लोहरामऊ स्थित दुर्गामाता का मंदिर अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह प्राचीन मंदिर आज भी लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। मान्यता है कि यहां भक्तों पर मां भगवती की विशेष कृपा बरसती है। अमूमन शुक्रवार और सोमवार को यहां लगने वाली भक्तों की भीड़ नवरात्र में बढ़ जाती है। नवरात्र पर मेले जैसा नजारा रहता है। चैत्र नवरात्र को लेकर श्रद्धालुओं ने पूजन-अर्चन की तैयारियां शुरू कर दी हैं। लखनऊ-वाराणसी राजमार्ग पर शहर से पांच किमी दूर लोहरामऊ बाजार है।
बाजार से दक्षिण की तरफ करीब चार सौ मीटर दूरी पर लोहरामऊ धाम के नाम से जाना जाने वाला दुर्गा माता का प्राचीन मंदिर स्थापित है। मंदिर के निर्माण को लेकर लोग एक मत नहीं है। अंग्रेजों के जमाने के 1905 का एक दस्तावेज मिलता है, जिसमें मंदिर के लिए पांच बीघा जमीन का देने का उल्लेख किया गया है। हालांकि मौजूदा समय में मंदिर के पास उतनी भूमि नहीं है।
मंदिर की स्थापना को लेकर भी स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिलते। गांव के कुछ बुजुर्ग कहते हैं कि अंग्रेजों के जमाने में भदैंया की रानी ने यहां कुंआ और मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर को समय-समय पर नए स्वरूप में परिर्वतित किया गया। 1983 में गर्भगृह में स्थित मंदिर का जीर्णोद्धार तत्कालीन पुजारी पंडित सरजू प्रसाद मिश्र ने अपने सहयोगी लालता प्रसाद तिवारी के साथ मिलकर कराया था। इसके बाद 1992 में नए मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया।