डॉ. मोनिका शर्मा
देश में बुजुर्गों की सेहत जुड़ी चिंतनीय स्थितियाँ सामने आई हैं | स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से करवाए गए दुनिया के सबसे बड़े सर्वे ‘लॉन्गिट्यूडनल एजिंग स्टडी इन इंडिया’ में हुए खुलासे हमारे यहाँ आज और आने वाले कल में वृद्धजनों के स्वास्थ्य को लेकर डरावने हालात बयान कर रहे हैं | सर्वे के मुताबिक़ भारत में 7.5 करोड़ बुजुर्ग या 60 साल से अधिक उम्र के प्रत्येक दो में एक व्यक्ति किसी लम्बी और पुरानी बीमारी से पीड़ित है। इनमें से सबसे ज्यादा बुजुर्गों में शारीरिक अक्षमता की परेशानी है। सर्वे में सामने आया है कि 40 फीसदी बुजुर्ग विकलांगता की परेशानी से जूझ रहे हैं | देश के करीब 4.5 करोड़ बुजुर्ग हृदय रोग और उच्च रक्तचाप के शिकार हैं तो 2 करोड़ बुजुर्गों को मधुमेह की शिकायत है। 24 प्रतिशत बुजुर्गों को चलने, खाने और शौचालय जाने जैसे दैनिक कार्य करने में भी परेशानी होती है। इतना ही नहीं 72 फीसदी बुजुर्गों का फेफड़ों के रोगों और 75 फीसदी का कैंसर जैसी व्याधियों का इलाज चल रहा है। चिंतनीय यह भी है कि बात सिर्फ शारीरिक समस्याओं की नहीं है | 20 फीसदी से ज्यादा बुजुर्ग मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारी से जूझ रहे हैं | साथ ही 27 प्रतिशत वरिष्ठ जन कई अन्य तरह की बीमारियों से घिरे हुए हैं। जिनकी कुल संख्या करीब 3.5 करोड़ है | ग़ौरतलब है कि हमारे यहाँ 10.3 करोड़ वरिष्ठजनों के बुढ़ापे और बीमारियों हालात जानने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने चार साल पहले एक सर्वे शुरू करवाया था। 2016 में शुरू हुए इस सर्वे के नतीजे वृद्धजनों के स्वास्थ्य को लेकर लगभग हर पहलू पर फिक्र की बात लिए है |
ऐसे में यह विचारणीय है कि आने वाले वर्षों में ना केवल देश की बुजुर्ग आबादी का आंकड़ा बढ़ेगा बल्कि स्वास्थ्य समस्याओं का दायरा भी विस्तार ही पायेगा | बदलते पर्यावरण और जीवनशैली के चलते एक ओर बीमारियों की दस्तक बढ़ रही है तो दूसरी ओर स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच और जागरूकता ने जीवन प्रत्याशा भी बढ़ाई है | गौर करने वाली बात है कि भारत ही नहीं दुनिया के हर हिस्से के नागरिकों की जीवन प्रत्याशा बढ़ी है और बढ़ रही है | 60 साल की उम्र के लोगों के जीवित रहने की वैश्विक हिस्सेदारी साल 1990 में 9.2 प्रतिशत थी, जो 2013 में बढ़कर 11.7 प्रतिशत हो गई । साल 2050 में यह आंकड़ा 21.1 प्रतिशत पर पहुंचने की उम्मीद है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2050 तक पुरुषों की औसत जीवन प्रत्याशा 74.5 वर्ष और महिलाओं की औसत जीवन प्रत्याशा 79.1 वर्ष तक हो सकती है। यही वजह है की संयुक्त राष्ट्र ने पहले भी भी इस विषय पर कई बार कहा है कि समय के साथ दुनियाभर में बुज़र्गों का अनुपात बढ़ता जायेगा। इसीलिए सरकारों को जीवन यापन, काम और परस्पर देखभाल मोर्चे पर में नए विकल्पों और उपायों पर गौर करना होगा।
वैश्विक स्तर पर ही नहीं आज युवाओं के मामले में दुनिया के सबसे समृद्ध देश माने जाने वाले भारत में भी आने वाले वर्षों में वृद्धजनों की आबादी का आंकड़ा बढ़ेगा | हमारे यहाँ 45 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों की जनसंख्या का हिस्सा बढ़कर 2050 तक देश की कुल आबादी के 40 फीसदी तक पहुंच सकता है। ग़ौरतलब है कि हमारे देश में 2011 में 60 साल से ज्यादा की आबादी 9 प्रतिशत थी, जो 2050 में यह 20 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी। यानी करीब 30 साल बाद भारत में 60 वर्ष से अधिक की आबादी 31.9 करोड़ बुजुर्ग जनसंख्या होने का अनुमान है। ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं कि देश के वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य की संभाल ही नहीं स्नेह, साथ और संवाद के मोर्चे पर भी बहुत कुछ किया जाना जरूरी होगा | फिलहाल हमारे यहाँ 90 प्रतिशत बड़ों की घरों में ही देखभाल होती है और 10 प्रतिशत बुजुर्गों को पेशेवर मदद की जरूरत है | लेकिन बिखरते पारिवारिक ढांचे और सामाजिक परिवेश में भविष्य की स्थितियों को देखते हुए बुजुर्गों की सहायता और संभाल के लिए ऐसे सेवा क्षेत्र को और विस्तार की दरकार होगी |
भारत जैसे परंपरागत पारिवारिक ढांचे वाले देश में भी अब बुजुर्गों की देखभाल के लिए विशेष कार्य योजना बनाने की जरूरत साफ़ समझी जा सकती है | नई पीढ़ी के सदस्य अब नौकरी या व्यवसाय के लिए विदेशों या देश के ही दूसरे शहरों में बसे हैं | अकेले रहने वाले वरिष्ठजनों को ना केवल शारीरिक व्याधियां घेर रही हैं बल्कि बुजुर्ग आबादी अकेलेपन, अवसाद और तनाव का दंश भी झेल रही है | पहले संयुक्त परिवारों में बड़ी उम्र के सदस्यों का समय काटना और सहयोग-सुविधा पाना दोनों आसान था पर अब अकेलापन तो है ही उम्र के इस पड़ाव पर मानसिक-शारीरिक बीमारियों की दस्तक उनकी कठिनाइयाँ और बढ़ा देती है | कई बार तो इस उम्र में परेशानियां झेल रहे जीवन साथी चाहकर भी एक दूसरे की मदद नहीं कर पाते | इस सर्वे में 45 वर्ष और इससे ज्यादा उम्र के 72,250 जिन लोगों के नमूने एकत्र किए गए हैं, उनमें पति-पत्नी दोनों शामिल हैं । जिसका सीधा सा अर्थ है बीमारियाँ सभी को अपने जद में ले रही हैं | इतना ही नहीं हमारे यहाँ गाँवों-कस्बों में बुनियादी सुविधाओं की कमी भी वृद्धजनों की समस्या बढ़ाने वाली ही है | इस सर्वे के लिए लिए जाने के दौरान यानी कि वर्ष 2017-18 में देश के 38 फीसदी ग्रामीण घरों और शहरों में 5 प्रतिशत घरों में खुले में शौच किया जाता था। यह बुजुर्गों के लिए एक बड़ी समस्या है | चलने-फिरने में असमर्थ ज्यादातर बुजुर्गों को शौच के लिए दूर जाने में काफी परेशानी उठानी पड़ती है | साथ ही दूर-दराज़ के क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच के मामले में भी हम बहुत पीछे हैं | इसके चलते उन्हें समय पर सलाह और उपचार मिलने भी दिक्कत आती है |
दरअसल, बड़ी बीमारियों के अलावा बुजुर्गों में आँखों की रोशनी घटने, मोटापा, कुपोषण और सांस संबंधी गंभीर व्याधियां भी घेरे हुए हैं | सर्वे में सामने आया है कि आधा से ज्यादा 58 फीसदी बजुर्गों के पक्षाघात की बीमारी, 56 प्रतिशत हड्डियों या जोड़ों से जुड़ी तकलीफ़ और 41 फीसदी के मानसिक बीमारियों का इलाज किया गया। निस्संदेह ऐसे उपचार की प्रक्रिया से गुजर चुके बुजुर्गों को काफी सावधानियां रखनी पड़ती हैं | उनकी शारीरिक गतिविधियाँ सीमित हो जाती हैं | मानसिक तनाव झेलने की शक्ति नहीं रहती | ऐसे में अकेले रहने वाले वृद्धजनों की समस्यायें तो काफी बढ़ जाती हैं | जबकि हालिया बरसों में संबंधों की दायित्व बोध से जुड़ी सोच में आये बदलाव ने बुजुर्गों के लिए घर के भीतर भी दुखद परिस्थितियां पैदा कर दी हैं । शारीरिक-मानसिक व्याधियों के अलावा उम्र दराज़ लोगों का एक बड़ा प्रतिशत स्वयं को समाज से कटा हुआ और मानसिक रूप से दमित भी महसूस करता है। आर्थिक समस्याएं भी बहुत हैं | कुछ समय पहले ह्यूमन राइट्स ऑफ़ एल्डरली इन इंडिया- अ क्रिटिकल रिफ्लेक्शन ऑन सोशल डवलपमेंट की एक रिपोर्ट में देशभर के 5000 बुज़ुर्गों ने बताया था की अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए परिवार से आर्थिक मदद मांगने पर करीब 90 फ़ीसदी बुज़ुर्गों से दुर्व्यवहार किया जाता है | इस ताज़ा सर्वे के अनुसार 2017-18 में कुल बुजुर्गों में 7 फीसदी किसी संगठित क्षेत्र से सेवानिवृत्त हुए हैं जबकि पेंशन योजना का लाभ सिर्फ केवल 6 फीसदी ही ले रहे हैं | ऐसे में करीब 94 प्रतिशत बुजुर्ग परिवार के लोगों की आय पर ही निर्भर रहते हैं। आर्थिक निर्भरता के कारण परिवार के लिए अपना पूरा जीवन लगा देने वाले बुजुर्गों की परेशानियां हर मोर्चे पर बढ़ा देती है | अपनों की ही उपेक्षा और अपमान भी झेलना उनकी मजबूरी बन जाता है |
व्यापक रूप से देखा जाय तो यह सर्वे देश में बुजुर्गों के लिए भावी योजनाएं बनाने और बदलते सामाजिक परिवेश में एक पेशेवर सेवा क्षेत्र तैयार करने में मदद कर सकता है | दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा लॉन्गिट्यूडनल डेटाबेस उन सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों की रूपरेखा तय कर सकता है, जो वरिष्ठजनों को संबोधित हों | एक ओर हमारा आर्थिक ढाँचा विकसित देशों के समान सबल नहीं है तो दूसरी ओर परंपरागत रूप से संभाल देखभाल की सोच में बड़ा बदलाव आया है | ऐसे में जरूरी है कि इस सर्वे के नतीजे बड़ी पीढ़ी की समस्याओं को नए सिरे से चिन्हित करने कार्य योजनाओं को दिशा देने में कम में लिए जाएँ | बुजुर्गों की शारीरिक, भावनात्मक, आर्थिक और स्वास्थ्य गत ज़रूरतों को समझते हुए एक सहायक परिवेश बनाया जाय | ऐसे सेवा क्षेत्र खड़े किये जाएँ जिनमें युवाओं को रोजगार मिले और बुजुर्गों को संभाल और स्नेह |