सच कहना एवं स्वीकार करना एक साहसिक कदम

 

राजेन्द्र सिंह

सद्गुण को अपनाइएसद्गुण सुख की खान।

सद्गुण से साहस मिलेनीचा हो अभिमान।

बुरे विचारों को तजेबने आचरण शील।

सद्गुण से सिंचित करे, विनय-विवेक-सुशील।

जी हां, सद्गुणों से ही कॉन्फिडेंस बढ़ता है और संस्कार, आचार और व्यवहार में एक अतुलनीय परिवर्तन सद्गुणों के कारण ही दिखता है। राजीव कुमार एक ऐसे ही सद्गुणों की खान हैं, जो कांटोंभरे रास्तों को भी अपने सद्गुणों से बड़ी खूबसूरती से आसान बना देते हैं। शायद इसीलिए कहते हैं कि सद्गुण जीवन में रहे, तो इंसान अपने कर्मरूपी पथ से कभी नहीं भटकते। 

सबसे पहले आपको इसी संदर्भ में एक छोटी सी कहानी सुनाता हूं। गुरुकुल में क्लास में बच्चे पढ़ रहे थे कि अच्छे संस्कार और शिष्टाचार का जीवन में क्या महत्व है? उदाहरण के लिए गुरु ने एक शीशे का जार लिया और उसमें कुछ गेंद डाले, तो धीरे धीरे जार पूरा भर गया। उसके बाद उन्होंने कुछ कंकड़ मंगाए और उन्हें भी जार में डालना शुरू कर दिया। जार में जहाँ थोड़ी जगह बाकी थी, वहाँ सब कंकड़ भी भर गये।

इसके बाद उन्हांेने जार में रेत डालना शुरू किया, तो रेत भी जार में समा गई। अब धीरे धीरे जार पूरा भर गया। फिर अध्यापक ने पानी मँगाया और जार में पानी डालने लगे, तो देखा कि पानी भी जार में रेत और कंकड़ों के बीच समाने लगा।

दरअसल, बच्चे ये सब बहुत ध्यान से देख रहे थे, लेकिन उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। तब गुरु ने अपने शिष्यों को समझाया कि इंसान भी इसी जार की तरह है। इसमें काफी चीजें आ सकती हैं अब ये तुम पे निर्भर है कि तुम क्या लेना चाहते हो? जी हां, इसे ही कहते हैं गुणों की खान। गुणों की खान में जितना डालते जाओगे, उतना गुणी बनते जाओगे। शायद राजीव कुमार ने उसी गुरुकुल से शिक्षा ली होगी, जहां इस तरह से बच्चों को सिखाया और पढ़ाया जाता है। हम यहां ये बातें इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि अरसे बाद एक चुनाव आयुक्त दिखा, जो अपने पद की गरिमा के बारे में न केवल बेहद गंभीर हैं, बल्कि राजीव कुमार का पश्चिम बंगाल चुनाव से संबंधित हलफनामा, जिसे चुनाव आयोग ने अस्वीकार कर दिया था, इन दिनों चर्चा में है। दरअसल, यह हलफनामा चुनाव आयोग को मद्रास हाईकोर्ट द्वारा कोरोना महामारी के मध्य राज्यों में चुनाव कराने के फैसले पर सख्त टिप्पणी के जवाब में तैयार किया गया था। यह हलफनामा चुनाव आयोग के उन दस्तावेजों का हिस्सा नहीं बने, जिसे चुनाव आयोग ने पहले मद्रास हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया था। दरअसल, यह हम सब पत्रकार भली भांति जानते हैं कि सरकारों के गुप्त दस्तावेज भी मीडिया को हासिल हो जाते हैं। इसलिए राजीव कुमार का हलफनामा मीडिया में कैसे आ गया, इस पर ज्यादा बहस न करें, तो बेहतर होगा, क्योंकि पत्रकारों को यह सब उनके विश्वसनीय सूत्रों द्वारा मुहैय्या करायी जाती हैं। और यह सूत्र अमूमन वे ही होते हैं, जिनको इन दस्तावेजों के लीक होने से फायदा होने की उम्मीद होती है या फिर जो कोई अपने किसी सहकर्मी की मिट्टी पलीद करना चाहता है, लेकिन राजीव कुमार के हलफनामे के लीक होने में ये दोनों बातें लागू नहीं होती हैं। वैसे बता दें कि पत्रकार कोई जासूस या चोर नहीं होते कि इन दस्तावेजों की प्रतियां उनके हाथ लग जाती हैं। देश को इस प्रकरण के बारे में जानकारी है। इसलिए अब हमें यह नहीं जानना है कि इस हलफनामे में क्या लिखा था, हम तो आपको यह बताने के लिए इस लेख को लिख रहे हैं कि राजीव कुमार का वजूद क्या है। ऐसे में यदि यह कहें कि एक सख्त प्रशासक हैं राजीव कुमार, तो यह गलत नहीं होगा।

इसमें किसी को कभी कोई शक नहीं था, क्योंकि जब वह केंद्र में वित्त सचिव थे, तो उन्होंने 3.38 लाख फर्जी कंपनियों का बैंक खाता फ्रीज करने का आदेश दिया था।

राजीव कुमार के तेवर और रुख को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत लम्बे अंतराल के बाद एक ऐसा चुनाव आयुक्त सामने आया है, जो अपने संवैधानिक पद की गरिमा का पालन करने के बारे में गंभीर हैं। मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा अगले वर्ष 14 मई को रिटायर हो जाएंगे और उसके बाद 2024 का आम चुनाव राजीव कुमार की देख रेख में ही होगा। भारत में जनतंत्र और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पूर्ण स्थापित करने के लिए इनसे बेहतर और कोई व्यक्ति शायद हो भी नहीं सकता है। इस शख्स की खूबी ये ही है कि वह किसी भी कार्य को करने के लिए योजना बनाने या किसी भी चीज को बदलने के लिए एक उंगली उठाने से बहुत पहले ही अपने मन की बातें सुन सकते हैं। दरअसल, इंट्रोवट्र्स व्यक्तियों में एक बहुत सक्रिय आंतरिक विचार प्रक्रिया काम करती है, क्योंकि यही उन्हें आत्म-प्रतिबिंब और अनुसंधान की ओर ले जाता है।

यह भी एक सच है कि हर मनुष्य विचारक नहीं हो सकता, पर वह एक विचार का अनुसरण कर के उसे जरूर आगे ले जा सकता है और ये ही खूबी राजीव कुमार में है। हम सब अपने अच्छे आचरण से ही जाने जाते हैं। यहाँ तक कि चरित्र और आचरण में से भी आचरण से ही हमारी और आपकी पहचान होती है। आज के भारत का ज्वलंत विषय भ्रष्टाचार का भी आचार से चोली दामन का साथ है। सच तो ये है कि मर्यादा पुरषोतम राम भी अपने आचरण की वजह से ही सुप्रसिद्ध हैं। विचारों का तांता तो लगा रहता है, पर जब तक उनको सुनियोजत एवं सुचारू रूप नहीं मिलता, तो विचार बेकार है, अर्थात विचार को क्रियान्वित करना अति आवश्यक है। ऐसे में यदि यह कहें कि विचारों को क्रियान्वित करने में राजीव कुमार का कोई जवाब नहीं, तो शायद गलत नहीं होगा, क्योंकि क्रांति लाने वाला भी केवल एक विचार ही होता है। विचारों से ही आपकी मानसिकता झलकती है। हर व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके विचारों पर निर्भर करता है, वहीं दूसरी अच्छे विचार व्यक्ति को विकास के पथ पर अग्रसर करते हैं और दरअसल, अच्छे विचारों के कारण ही आज राजीव कुमार देश के इस लोकतांत्रिक कुर्सी पर विराजमान हैं।

कुछ विचार ऐसे होते हैं, जिन्हें पढ़कर न सिर्फ व्यक्ति को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है, बल्कि अपने नकारात्मक व्यक्तित्व को भी सकारात्मक बनाने में मदद मिलती है। वहीं महान पुरुषों द्वारा कहे गए इस तरह के सुंदर एवं अच्छे विचारों को जो भी व्यक्ति अपनी जिंदगी में सच्चाई के साथ अनुसरण करता है, वो ही राजीव कुमार जैसी शख्सियत का मालिक बन जाता है। कहते हैं कि विधाता की अदालत में, वकालत बड़ी प्यारी है, खामोश रहिये …कर्म कीजिये, क्योंकि आपका मुकदमा जारी है कि आप अपना कर्म निष्ठापूर्वक कर रहे हैं या नहीं? यहां संत कबीरदास की दो लाइनें याद इसलिए आ रही हैं, क्योंकि राजीव कुमार किसी भी काम को कल पर नहीं टालते और इसी वजह से वह आज सक्सेस हैं।

इस दोहे के माध्यम से कबीर दास यह कहना चाहते हैं कि कोई भी कार्य को यथासमय कर लेना चाहिए। यदि उसे करना अनिवार्य है, तो कल पर ना छोड़ें आज ही कर डालें और यदि और अनिवार्य है तो आज भी न रुके अभी कर डाले। कौन जानता है कि किस पल में प्रलय या विनाश हो जाए!

काल करे सो आज करआज करे सो अब।

पल में प्रलय होएगीबहुरि करेगा कब।

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