पुलिस की नाकामी और हीलाहवाली के चलते अदालतों में बढ रहा मुकदमों का बोझ

शहजाद अंसारी

लखनऊ। उत्तर प्रदेश पुलिस के नाकारापन और हीलाहवाली के कारण अदालतों में मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है अदालतों में लंबित मुकदमों के कारण अदालतों का कीमती समय तो नष्ट होता ही है साथ ही न्यायिक प्रक्रिया भी बाधित होती है वहीं न्याय की आस में फरियादियों को वर्षो इंसाफ के लिए घिसटना पड़ता है जो अन्याय से कम नहीं। जबकि न्यायालय के आदेश पर दर्ज मुकदमों में ज्यादातर पुलिस एफआर ही लगाती है और तिगनी ऊर्जा नष्ट करती है लेकिन पहली ही बार में थाने आने वाले फरियादियों की एफआईआर दर्ज करना तो दूर उनकी शिकायती पत्र की जांच तक समय से नहीं करती जिस कारण पीडित मायूस होकर न्यायालय का दरवाजा खटखटाता है। पुलिस के इस नाकारपन की वजह से अदालतों में मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है।

मुख्यमंत्री, डीजीपी और न्यायालय द्वारा दर्जनों बार आदेश करने के बावजूद उत्तर प्रदेश पुलिस सुधरने का नाम नही ले रही है। पुलिस की हीलाहवाली और नाकारापन के कारण न्यायालयों में मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है जिससे उच्चाधिकारियों को भी परेशानी होती है। पुलिस की यह नाकामी कभी कभी सरकार की फजीहत और बदनामी की वजह भी बन जाती है जब कोई घटना किसी व्यक्ति के साथ घटती है

तो वह इंसाफ पाने की आस में सबसे पहले थाने की ओर जाता है कि उसकी तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज कर आरोपियों के विरुद्ध कारवाही की जाएगी लेकिन होता उल्टा है थाने फरियादी को ही मुल्जिम की नजर से देखा जाता है और उस ऐसे ऐसे सवालों की बौछार की जाती है और पुलिस द्वारा ऐसा व्यवहार किया जाता है कि उसके पसीने छूट जाते हैं और यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि वह किस बुरी घड़ी में रिपोर्ट लिखवाने थाने आया, महिलाओ के साथ और भी बुरा व्यवहार किया जाता है और बहुत बार थाने से भगा ही दिया जाता है उसके बाद इंसान मायूस होकर न्यायालय का रुख करता है जहाँ पहले से न्यायालय में मुकदमों का बोझ होता है संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार देश भर की अदालतों में साढ़े तीन करोड़ केस लम्बित हैं जिनको निबटाने के लिए 2373 अतिरिक्त जजों की जरूरत है कुल मामलों में 87.5 प्रतिशत मामले जिला व निचली अदालतों में लंबित हैं इनमे में सबसे खराब हालात उत्तर प्रदेश के हैं।

लोगों को इंसाफ न मिलने में सबसे उत्तर पुलिस की बहुत बड़ी भूमिका है जिससे न्यायालयों पर मुकदमों का बोझ बढ़ता है वर्षों तक मामले लटके रहते हैं इतना ही नहीं जब न्यायालय की शरण मे गए व्यक्ति के पक्ष में न्यायालय पुलिस को रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश कर देती है तो वही फरियादी को थाने से भगाने वाली पुलिस रिपोर्ट भी दर्ज करती है और तिगनी मेहनत करते हुए कई मामले में एफआर भी लगाती है कामचोर पुलिसकर्मियों के नाकारापन का फायदा कुछ शातिर लोग भी उठा लेते हैं और अदालतों से आदेश करा कर समाज के प्रतिष्ठित लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है। यदि पुलिस थाना स्तर पर ही मामलों का निस्तारण कर दे तो उच्चाधिकारियों के साथ साथ न्यायालयों में लंबित मामलों का बोझ भी कम हो सकता है लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस सन 1861 की मानसिकता से अभी तक उबर नहीं पाई है जिसके तहत तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने भारतीयों का शोषण व उत्पीड़न करने के लिए पुलिस बल का उस दौर में गठन किया था।

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