मिट्टी के बर्तनों से भरण पोषण करने वाले कारोबारियों का व्यापार हुआ ठप्प

परम्परागत रूप से कारोबार करने वाले लोग आज भुखमरी के कगार पर

भास्कर समाचार सेवा
हाथरस। घंटा घर स्थित मुस्ताक भाई मिट्टी के बर्तनों के कारोबार को करते हैं। आज अपने परिवार का भरण पोषण करने में भी उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बाजार में आये कुछ दिखावे की प्लास्टिक के बर्तनों ने मिट्टी के बने हुए बर्तनों का कारोबार बिल्कुल खत्म कर दिया है। वहीं मिट्टी के बर्तन कारोबारी मुस्ताक का कहना है कि मैने तो शुरुआती रूप में मिट्टी के बर्तनों से स्वास्थ्य के संबंधित हर बीमारी खत्म हेतु चालू किया था लेकिन धीरे धीरे मिट्टी के बर्तनों का उपयोग खत्म होता दिख रहा है। उन्होंने ये भी कहा आज चाइना मार्का के बर्तनों ने बिल्कुल मिट्टी के बर्तनों का कारोबार खत्म कर दिया है। मिट्टी से बनाए गए बर्तन जिन्हें कम तापमान पर शुरू में गड्ढे की आग में या खुले अलाव में पकाया जाता था। वे हाथ से बने और अलंकृत थे। मिट्टी के बर्तनों को 600 डिग्री सेल्सियस तक कम किया जा सकता है। और सामान्य रूप से 1200 डिग्री सेल्सियस से नीचे निकाल दिया जाता है। हालांकि नवपाषाण काल से लेकर आज तक मिट्टी के बर्तनों का निरंतर इतिहास रहा है। इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी से बनाया जाता है जिसमें घटक खनिजों में लोहा होता है जिसके परिणामस्वरूप लाल-भूरा रंग होता है। लाल रंग की किस्मों को टेराकोटा कहा जाता है , खासकर मूर्तिकला के लिए इस्तेमाल किया जाता है। सिरेमिक शीशे का आवरण के विकास ने अभेद्य मिट्टी के बर्तनों को संभव बनाया और मिट्टी के बर्तनों की लोकप्रियता और व्यावहारिकता में सुधार किया। आधुनिकता की दौड में आज घरों में इन्फोसिस मिट्टी के वर्तनी की जगह चाइना मार्का फैंसी पप्लास्टिक आदि के वर्तनो ने ले ली है। जिससे इसका परम्परागत रूप से कारोबार करने वाले लोग आज भुखमरी के कगार पर आ गये हैं।

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