
05 जुलाई को गुरुपूर्णिमा का महापर्व है। यह दिन अध्यात्म जगत की सबसे बड़ी घटना के रूप में जाना जाता है। इस दिन गुरु और शिष्य दोनों की आत्माओं का मिलन, समर्पण तथा विसर्जन-विलय होता है। इस दिन गुरु का महाप्राण शिष्य के प्राण में घुलता है और अपने गुरु के महाप्राण में शिष्य के प्राण विलीन हो जाता है। यह महापर्व जानने समझने का कम, अनुभूति के महासागर में डूब जाने का अधिक है। यह पर्व अकथ-कथा है, अबोल-बोल है तथा अमूर्त-मूर्त है, क्योंकि गुरु शिष्य की आत्मा में जीता है। वह होता ही है सदैव शिष्य में। शिष्य का अपना चोला भर होता है, भीतर तो गुरु की महाचेतना ही लहराती रहती है।
सद्गुरु सामान्य नहीं होते, वे महाचेतना के शक्तिपुंज होते हैं, परमात्मा के प्रखर प्रतिनिधि होते हैं। स्वयं परमात्मा इनकी नियुक्ति करता है और उनकी भावी कार्य योजना बनाता है। सद्गुरु भगवत योजना को लेकर धरती पर अवतरित होते हैं, और कार्य को पूर्णता देकर पुनः वहीं भगवत धाम में वापस लौट जाते हैं। उनकी कार्य-योजना में अपने शिष्य को खोजना, उसे गढ़ना और फिर उसे ढालना प्रमुख होता है। उन्हें सब कुछ योजना के अनुसार करना पड़ता है। उन्हें ही पता होता है कि वे क्या करते हैं और क्या करना है? उनके कार्य बड़े अजब-अनूठे व निराले होते हैं। सामान्य ढंग से न तो उसे समझा जा सकता है और न ही उसका अंदाज ही लगाया जा सकता है।
गुरु का हर कार्य अनोखा और अद्भुत होता है। उसकी चाहत व प्रेम असाधारण होते हैं। उसकी चाहत शिष्य की अनंत गहराई तक पहुंचती है और यह चाहत बीच में आने वाली सभी बाधाओं को रोंधते हुए चलती है तथा पहुंचती वहीं है, जहां उसे जाना होता है। जहां उसे स्थिर होना होता है। यही गुरु का प्रेम होता है। उनका प्रेम शिष्य का परिष्कार कर उसे प्रेम के लायक बनाता है। शिष्य धुले और उसकी नस-नाड़ियों में प्रेम का रस बहे। बस, यही तो गुरु चाहते हैं।
समर्थ गुरु की चाहत को पूरा करने का साहस समर्पित शिष्य को जुटाना पड़ता है। उसे इस कार्य में अपने समस्त अस्तित्व के साथ गुरु की शरण में जाना होता है। उसे हर परिस्थिति में, मान-अपमान, लाच्छन-तिरस्कार में, यहां तक कि मृत्यु तुल्य कष्ट को झेलने के लिए सहर्ष तैयार एवं तत्पर रहना पड़ता है। यदि वह अपने मृत्यु के प्रमााण पत्र में अपने प्राण से हस्ताक्षर करता है, तभी वह अपने इष्ट की चाहत व प्रेम का सच्चा अधिकारी बन सकने की प्रथम शर्त पूर्ण करता है। इसके पश्चात् गुरु का प्रेम जब शिष्य पर बरसता है, कृपा अवतरित होती है, तो शिष्य का जीवन एक नए जन्म की ओर अग्रसर होता है।
गुरु की कृपा पाप को काटने के लिए महाकष्ट के रूप में उतरती है, परन्तु उसकी दया से सांसारिक जीवन सुख-सुविधाओं से भर जाता है। जब वह दया करते हैं, तो मान-सम्मान, प्रतिष्ठा व भौतिक वैभव में बाढ़ सी आ जाती है पर उनकी महाकृपा से जीवन जीने के लिए भी तरस जाता है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं कि जब जीवन में सद्गुरु की कृपा बरसती है, तो कठिनाइयां ट्रेन के डिब्बे के समान धड़धड़ाते हुए चलती चली आती है। एक गई नहीं कि दूसरी आ जाती है। गुरु उन पर दया करते हैं जिनका मन और शरीर आध्यात्मिक शक्तियों को धारण और ग्रहण करने लायक नहीं होता और उन्हें उनके सांसारिक वैभव प्रदान करते हैं, परंतु जिनकी स्थिति इस लायक होती है, वे उन शिष्यों के चित्त में जमे सभी संस्कारों को धूल के समान झाड़ देते है। सत्पात्र शिष्यों पर गुरु-कृपा बरसती है।
गुरु पूर्णिमा: समय और मुहूर्त
गुरु पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 4 जुलाई से प्रात: 11:33 बजे होगा और गुरु पूर्णिमा तिथि समापन 5 जुलाई को प्रात: 10:13 बजे होगा.
चंद्र ग्रहण भी इस दिन लग रहा है
गुरु पूर्णिमा के दिन यानि 5 जुलाई को चंद्र ग्रहण भी लग रहा है. इस दिन शुभ मुहूर्त में ही पूजा आदि का कार्य पूर्ण करें.