
गाजीपुर जनपद के मुहम्मदाबाद तहसील क्षेत्र के बगेन्द में आयोजित सरस संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के मंच से अयोध्या वासी भागवत्वेत्ता.मानस मर्मज्ञ श्री श्री 1008 महामण्डलेश्वर श्री शिव राम दास जी फलाहारी बाबा ने ज्ञान एवं वैराग्य की कथा रूपी अमृत श्रीमद्भागवत कथा का रसपान कराते हुवे कहा की गीता योग प्रधान ग्रंथ है रामायण प्रयोग प्रधान ग्रंथ है तथा भागवत वियोग प्रधान ग्रंथ है। भागवत में तीन प्रकार की स्थिति का वर्णन है। पृथ्वी लोक उर्ध्व लोक और अधो लोक । पृथ्वी लोक में मानव अजामिल तथा उर्ध्व लोक में देवेंद्र और अधो लोक में दानव वृतासुर तीनों को भगवान ने अपनाया। श्रीमद्भागवत में तीन रस है।
सख्य रस वात्सल्य रस और माधुर्य रस। सख्य रस मे गाय चराना वात्सल्य रस में दूध पीना ओखल से बंधना और माधुर्य रस में हृदय प्राण और नेत्र में भगवान का निवास होना। भगवान कृष्ण के जीवन में तीन प्रकार की स्त्रियां आई है गुनातीत जसोदा और राधा सात्विक यज्ञ पत्नियां और गोपियां राजसिक कोलभिलनिया।फलाहारी महाराज ने कहा की कथा और सत्संग से नवीन मार्ग प्रशस्त होता है। मनुष्य योनि एक जंक्शन है। ऊर्ध्व लोक के ट्रेन पर बैठो या अधो लोक के ट्रेन पर यह आपके ऊपर निर्भर करता है।जिसकी आत्मा प्रकाशवान हो गई है वहीं आत्मदेव है। अधिकतर बुद्धि के द्वारा आत्मा छली जाती है।बुद्धि में विवेक का जब प्रवेश होता है तो सद्बुद्धि हो जाती है और विवेक सत्संग से प्राप्त होता है। भगवान गीता में कहे हैं कि ज्ञान वही है जो मुक्ति दिला दे। संसार के साथ-साथ शास्त्र का भी ज्ञान होना अति आवश्यक है। सत्संग एक ऐसा सूत्र है जिस पर जीवन रूपी मैथ हल हो जाता है। किंकर्तव्यविमूढ़ होने पर सत्संग की बातें सत् पथ प्रदर्शक का काम करती है