
नैमिषारण्य-सीतापुर। श्रीमद् भागवत कथा भारतीय संस्कृति की वृहद व्याख्या है। जिसके अनुसार मनुष्य ही उत्तानपाद है, जीव की दो वृतियां ही उसकी दो पत्नियां सुरूचि एवं सुनीति हैं। सुरूचि के अनुसार पुत्र उत्तम तो होता है लेकिन माता-पिता का कल्याण करेगा इसमें संदेह है। जबकि सुनीति के अनुसार यदि जीवन जिया जाय तो बालक ध्रुव की तरह निश्चय ही कल्याणकारी होता है यह प्रवचन नैमिषारण्य स्थित विष्णु धाम गौशाला पर संत रमता राम के पावन सानिध्य में आयोजित भागवत कथा के तीसरे दिन राम सनेही संप्रदाय के अंतर्राष्ट्रीय कथा व्यास संत दिग्विजय राम जी ने कही। उन्होंने कहा कि भगवान के भक्तों को मृत्यु नहीं मारती बल्कि वह मृत्यु के मस्तक पर पैर रखकर भगवान के धाम की यात्रा करते हैं इसीलिए भक्तध्रुव सीधे भगवान के धाम में गए।
कथा व्यास दिग्विजय राम ने कहा कि सतयुग के पावन तीर्थ नैमिषारण्य धाम के कण कण में ऋषियों , पुण्यात्माओं का तपोबल निहित है इसलिए इस पुण्य तीर्थ में आकर तीर्थ व देवों के दर्शन ,सत्संग , संकीर्तन व दान धर्म करना चाहिए यहाँ समय को व्यर्थ न करके भगवान का ही ध्यान करना फलदायी है। समुद्र मंथन की कथा सुनाते हुए कहा उन्होंने कहा कि मानव हृदय ही संसार सागर है। मनुष्य के अच्छे और बुरे विचार ही देवता और दानव के द्वारा किया जाने वाला मंथन है। जिसके अंदर के दानव जीत गया उसका जीवन दुरूखी, परेशान और कष्ट कठिनाइयों से भरा होगा और जिसके अंदर के देवता जीत गया उसका जीवन सुखी, संतुष्ट और भगवत प्रेम से भरा हुआ होगा । कथा के तीसरे दिन की पूर्णता पर कथा यजमानों द्वारा भागवत भगवान की आरती उतारी गई। इस अवसर पर विजय बाबा शाहाबादी, संतोष शाहाबादी, आदित्य द्विवेदी सहित राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना सहित विभिन्न राज्यों के श्रद्धालुओं ने भागवत कथा सुनी।