भारत में पटाखों का उपयोग सदियों से उत्सव और खुशी के प्रतीक के रूप में होता आ रहा है। विशेषकर दिवाली, शादी-विवाह, और अन्य पारंपरिक त्योहारों में ये रंग-बिरंगे पटाखे हमारी संस्कृति का हिस्सा बन चुके हैं। उनकी चमकती रोशनी और गूंजती आवाज़ें उत्सव के माहौल को ऊर्जावान बनाती हैं, लेकिन इसके साथ ही यह एक गंभीर चुनौती भी बन गई है। क्या यह उल्लास अब हमें और हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहा है? आज के आधुनिक युग में, पटाखों का अत्यधिक और असुरक्षित उपयोग स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा बनता जा रहा है। आइये जानते हैं पटाखों की रासायनिक संरचना, उनके भयानक दुष्प्रभावों के विषय में, साथ ही इस के जिम्मेदार उपयोग की आवश्यकता पर भी विचार करेंगे।
पटाखों की रासायनिक संरचना:—
पटाखों में कई रासायनिक तत्वों का मिश्रण होता है, जो उन्हें विस्फोटक और रंगीन बनाते हैं। इन रसायनों का उद्देश्य अधिक ध्वनि उत्पन्न करना, विविध रंगों की रोशनी फैलाना और अधिक समय तक जलना होता है। पटाखों के प्रमुख रासायनिक तत्वों में निम्नलिखित शामिल हैं:
1- पोटेशियम नाइट्रेट (KNO3): यह एक प्रमुख ऑक्सीडाइज़र है, जो विस्फोट को तीव्रता प्रदान करता है। यह उच्च तापमान पर ऑक्सीजन छोड़ता है, जिससे विस्फोट की प्रक्रिया तेजी से होती है।
- सोडियम बाइकार्बोनेट (NaHCO3): यह धुएँ को कम करने के लिए उपयोग होता है और कुछ विशेष प्रकार के पटाखों में शामिल होता है।
- अल्यूमिनियम पाउडर: अल्यूमिनियम जलने पर तेज़ प्रकाश उत्पन्न करता है और इसे पटाखों में चमक बढ़ाने के लिए मिलाया जाता है।
- स्ट्रोंशियम कार्बोनेट (SrCO3): यह लाल रंग के प्रभाव के लिए जिम्मेदार होता है। आतिशबाजी में इसका उपयोग लाल रंग की रोशनी पैदा करने के लिए किया जाता है।
- बैरियम नाइट्रेट (Ba(NO3)2): यह हरे रंग का प्रभाव उत्पन्न करता है। यह रसायन जलने पर विषैले गैसों का उत्सर्जन करता है, जो हवा में फैलकर वायु प्रदूषण को बढ़ाता है।
- कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3): यह ध्वनि की तीव्रता को बढ़ाने में मदद करता है। जब यह जलता है, तो पटाखों से अधिक ध्वनि उत्पन्न होती है।
- फॉस्फोरस और सल्फर: ये तत्व पटाखों को जलने में मदद करते हैं और ध्वनि को बढ़ाते हैं। ये तेज़ और तीव्र विस्फोट उत्पन्न करते हैं, जो ध्वनि प्रदूषण का प्रमुख कारण होते हैं। इन रसायनों का संयोजन पटाखों को विस्फोटक बनाता है, लेकिन इनके जलने से निकले प्रदूषक वायु की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
स्वास्थ्य पर प्रभाव :—
पटाखों से निकलने वाले धुएँ और तेज आवाजें स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे उत्पन्न करती हैं। इनके प्रमुख दुष्प्रभाव इस प्रकार हैं।
1- श्वसन समस्याएँ: पटाखों से निकलने वाले धुएँ में कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और छोटे कण (PM2.5 और PM10) होते हैं। ये रसायन वायु को जहरीला बनाते हैं, जिससे श्वसन तंत्र प्रभावित होता है। खासकर अस्थमा के मरीज, बच्चे और बुजुर्ग इस प्रदूषित वायु के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं, जिससे उन्हें सांस लेने में कठिनाई होती है।
- एलर्जी और त्वचा समस्याएँ: पटाखों से निकलने वाले रसायन कई लोगों में एलर्जी उत्पन्न कर सकते हैं। त्वचा पर खुजली, रैशेज और लालिमा जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त, आँखों में जलन और सूजन की समस्याएँ भी बढ़ जाती हैं।
- मानसिक तनाव: पटाखों की तेज आवाजें मानसिक तनाव और चिंता का कारण बन सकती हैं। ये शोर विशेषकर बच्चों और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों को प्रभावित कर सकता है। ध्वनि का यह स्तर रात की नींद को बाधित करता है, जिससे नींद की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ता है।
- ध्वनि प्रदूषण: पटाखों की आवाजें सामान्य ध्वनि स्तर से कहीं अधिक होती हैं, जो कानों की सुनने की क्षमता पर बुरा असर डाल सकती हैं। लंबे समय तक तेज़ आवाज़ के संपर्क में रहने से टिनिटस (कानों में बजने की आवाज) और सुनने में कमी की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
- दृष्टि समस्याएँ: पटाखों से उत्पन्न तेज़ चमक और धुआँ आँखों की जलन, खुजली और अस्थायी दृष्टि दोष का कारण बन सकते हैं। विशेष रूप से छोटे बच्चों के लिए यह अधिक खतरनाक होता है, जो पटाखों के करीब खेलने का प्रयास करते हैं।
- प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन: पटाखों के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया को तेज करता है। इससे ग्लोबल वार्मिंग और मौसम की अनिश्चितताएँ बढ़ती हैं, जो दीर्घकालिक रूप से मानव जीवन के लिए खतरा हैं।
पर्यावरणीय प्रभाव :—
पटाखों का दुष्प्रभाव केवल मानव स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका व्यापक असर पर्यावरण पर भी पड़ता है। इसके प्रमुख पर्यावरणीय प्रभाव निम्नलिखित हैं:
1- वायु गुणवत्ता में गिरावट: पटाखों से उत्पन्न धुआँ और कण हवा में मिलकर वायु गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। इसका असर विशेष रूप से शहरी इलाकों में देखा जाता है, जहाँ दिवाली जैसे त्योहारों के बाद वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) खतरनाक स्तर तक पहुँच जाता है।
- जल स्रोतों का प्रदूषण: पटाखों के जलने से उत्पन्न रसायन और धातुएँ वर्षा के पानी के साथ मिलकर जल स्रोतों में पहुँच सकते हैं। इससे नदियों, झीलों, और अन्य जल स्रोतों का प्रदूषण होता है, जो जलीय जीवों के लिए हानिकारक है।
- वन्य जीवन का विनाश: पटाखों की तेज़ आवाज़ और प्रदूषण से वन्य जीवों में भय और तनाव उत्पन्न होता है। ये आवाजें उनके प्रवास और प्रजनन के तरीके को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे उनका जीवन संकट में पड़ जाता है।
- जलवायु परिवर्तन: पटाखों से निकलने वाली गैसें ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाती हैं, जिससे धरती का तापमान बढ़ता है। यह मौसम में अस्थिरता, सूखे, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का कारण बनता है।
प्रतीकात्मकता और जिम्मेदारी :—
पटाखे खुशी का प्रतीक होते हैं, फिर चाहे त्योहारों में चलाए जाएँ या शादी-विवाह में। यह उनकी रंग-बिरंगी रोशनी और गूंजती आवाजों के जरिए उत्सव के माहौल को उजागर करते हैं। लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रतीक को प्रतीक रूप में ही प्रयोग करें, न कि इसे हानिकारक और जीवन के लिए जोखिमपूर्ण बना दें।
यदि हम पटाखों का उपयोग असावधानी से करते हैं, तो यह हमारे लिए साँस लेना मुश्किल बना सकता है। हमें जिम्मेदारी के साथ पटाखों का उपयोग करना चाहिए और उनके दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक होना चाहिए। खुशियों का इजहार केवल पटाखों की आवाजों से नहीं, बल्कि आपसी प्रेम, एकता, और मिलनसारिता से भी हो सकता है।
वैकल्पिक उपाय और समाधान :—
पटाखों के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए हमें विभिन्न विकल्पों पर विचार करना चाहिए। इनमें शामिल हैं :—
- बिना पटाखों के त्योहार मनाना, जैसे कि संगीत, रंगोली, और पारंपरिक नृत्य, ढोल नगाड़े आदि के साथ उत्सव मनाना, न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को भी बढ़ाते हैं
- सामूहिक उत्सव और सांस्कृतिक कार्यक्रम: पटाखों के बजाए स्थानीय समुदाय के लोग सामूहिक रूप से मिलकर सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे पौराणिक लीलाएँ और पारंपरिक खेल आयोजित कर सकते हैं। यह न केवल मनोरंजन का एक शानदार तरीका है बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का भी एक अवसर है।
- पटाखों के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए शैक्षिक संस्थानों, सामुदायिक संगठनों और सोशल मीडिया का सहारा लिया जा सकता है। इससे लोग स्वस्थ और सुरक्षित उत्सव मनाने की ओर प्रेरित हो सकते हैं।
- सरकार और स्थानीय प्रशासन को पटाखों के उपयोग पर सख्त नियम बनाने चाहिए और स्वच्छता व स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए। इसके साथ ही, सरकार को ऐसे पटाखों के उत्पादन और बिक्री पर नियंत्रण करना चाहिए, जिनसे अधिक प्रदूषण होता है।
- पर्यावरण के प्रति सजग रहने वाले लोग ग्रीन क्रैकर्स का उपयोग कर सकते हैं। ये पटाखे परंपरागत पटाखों की तुलना में कम प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। हालाँकि, इनका उपयोग भी संयमित रूप में होना चाहिए। निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि पटाखों का उपयोग उत्सव का प्रतीक है, लेकिन आज यह केवल खुशी का प्रतीक नहीं रह गया है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा भी बन गया है। पटाखों की रासायनिक संरचना और उनसे होने वाले दुष्प्रभावों को समझना अत्यंत आवश्यक है ताकि हम अपने आस-पास की हवा को साफ और सांस लेने योग्य बनाए रख सकें। हमें यह समझना होगा कि खुशियों का इजहार केवल पटाखों की आवाज़ से नहीं होता, बल्कि हमारे आपसी प्रेम, एकता, और सद्भावना से भी हो सकता है। पटाखों का उपयोग सोच-समझकर और संयमित रूप में किया जाना चाहिए, ताकि यह हमारी खुशी का कारण बने, न कि समस्याओं का। सामूहिक प्रयासों से हम पटाखों के दुष्प्रभावों को कम कर सकते हैं और एक सुरक्षित और आनंदमयी वातावरण की स्थापना कर सकते हैं। जब हम जागरूक होकर पटाखों का उपयोग करेंगे और वैकल्पिक विकल्पों पर ध्यान देंगे, तो हम न केवल अपने स्वास्थ्य की रक्षा करेंगे बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और सुंदर वातावरण की नींव भी रखेंगे। हमें एक जिम्मेदार समाज के रूप में मिलकर एक सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य की ओर बढ़ना होगा, जहाँ हमारी खुशियाँ हमारे पर्यावरण के साथ सामंजस्य बनाये रखने में सक्षम हों।
डॉ. अंजना सिंह सेंगर, नोएडा