
भदोही । हौंसले बुलंद हों तो हिमालय का कद भी बौना पड़ जाता है। जिंदगी में उलझनों से टूटकर बिखरने के बजाय अगर चुनौतियों का सामना किया जाय तो संघर्ष की मिठास से जिंदगी नए सपने बुनती है। हमारे गांव-गिरांव और आसपास महिलाओं और बेटियों के साहस की ऐसी कहानियां बिखरी पड़ी हैं, जो समाज की आम बेटियों और महिलाओं के लिए उदाहरण हैं। इसी फेहरिश्त में एक नाम सुमार है भदोही की नेहा का। 08 मार्च को पूरी दुनिया महिला दिवस मनाएगी। ऐसे में नेहा के जीवन संघर्षों को जानना बेहद जरूरी है।
भदोही जिले के सुरियावां विकासखंड के जमुनीपुर अठगवां गांव की दलित बस्ती की नेहा हमारे समाज के लिए मिसाल है। कहते हैं हौसले में उड़ने वालों के पंख नहीं होते। सात साल पूर्व नेहा के माँ की मौत हो गई। इस घटना के बाद उसका जीवन संघर्ष शुरु हो गया। महज 16 वर्ष की उम्र में नेत्रहीन पिता के साथ भाइयों व बहन के लिए मां- बाप की जिम्मेदारी उठानी पड़ी। मां की मौत के बाद हौसला नहीँ खोया। परिवार के पालन के लिए खुद मज़दूरी किया औ भाई-बहन के सपनों में रंग भरा।
नेहा मजदूरी के जरिए न सिर्फ उनकी परवरिश करने में जुट गई बल्कि खुद भी बीएससी करने के बाद बीटीसी कर रही है। भाई-बहन को पढ़ा-लिखा कर आगे बढ़ाने में जुटी है। नेहा मुश्किल भरे हालात में खुद राह निकालती आई है। दोनों आंखों से नेत्रहीन पिता सुरेंद्र व छोटे भाई अंकित व बहन शिल्पा की परवरिश और सेवा का पूरा जिम्मा नेहा के कोमल कंधे उठा रहे हैं। नेहा की जिंदगी बेहद चुनौतीपूर्ण है। पैसे के नाम पर उसके पास कुछ नहीँ है। खेतों में काम कर वह अपने परिवार की आज़ भी परवरिश करती है।
नेहा के परिवार तक सरकारी रोशनी अभी तक नहीं पहुँच पाई है। टिनशेड निर्मित छोटे से कमरे का सहारा है। उसका दावा है कि कई बार प्रधानमंत्री आवास के लिए चक्कर काट चुकी नेहा को अभी तक आवास नहीं मिला। हालांकि इस मुश्किल हालात में भी उसने जरा भी हौसला नहीं खोया है।
उसने बताया कि वह पढ़ लिख कर खुद कुछ बनना चाहती है। भाई-बहन को भी ऊंचे मुकाम पर देखना चाहती है। वह कहती है कि प्रधानमंत्री मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी बेटियों के लिए नीत नई योजनाएं लाते हैं। फ़िर क्या हमारे जैसे गरीब परिवार के लिए एक छत और हैंडपम जैसी सुविधा नहीं है। नेहा यह बात कहते भावना में नेहा की आँखों से आंसू छलक पड़ते हैं।