सासाराम का यह यूनिवर्सिटी बिहार में बदल रहा है शिक्षा का परिदृश्य, विश्वस्तरीय शिक्षा के साथ पलायन रोकना लक्ष्य

बिहार में गुणवत्ता वाली शिक्षा का उपलब्ध होना पुराना सपना रहा है। यहां करीब 50 फीसदी आबादी के सामने पलायन का जोखिम है। राज्य के विद्यार्थी न सिर्फ उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों का रुख करते हैं, बल्कि उनके अपने होमटाउन में करियर संबंधी अवसरों का अभाव भी उनकी राह में रोड़े का काम करता है।

सासाराम में स्थित गोपाल नारायण सिंह यूनिवर्सिटी (GNSU) बिहार के विद्यार्थियों को विश्वस्तरीय शोध आधारित शिक्षा, प्रशिक्षण और उद्यमी कौशल मुहैया करा अब इन मुख्य चुनौतियों को दूर कर रहा है। यह यूनिवर्सिटी बिहार में तेजी से शिक्षा का परिदृश्य बदल रहा है। 2018 में स्थापित यह यूनिवर्सिटी देव मंगल मेमोरियल ट्रस्ट की एक इकाई है। आज इस यूनिवर्सिटी से 12 कॉलेज संबद्ध हैं, जहां 400 से अधिक शिक्षकों की फैकल्टी 4000 से अधिक विद्यार्थियों को 60 से अधिक पाठ्यक्रम पढ़ा रही है।

गोपाल नारायण सिंह यूनिवर्सिटी के प्रबंध निदेशक त्रिविक्रम नारायण सिंह कहते हैं, ‘‘बिहार के विद्यार्थी अभी तक विश्व स्तरीय शिक्षा से वंचित रहे हैं, जो मेट्रो शहरों में आसानी से उपलब्ध है। पलायन भी एक दुर्भाग्यपूर्ण संकट है, जिससे यहां के विद्यार्थियों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा और करियर के अवसरों के कारण दो-चार होना पड़ता है। इसी कारण यहां हमारा लक्ष्य न सिर्फ इन पुरानी समस्याओं का हल प्रदान करना है, बल्कि हम विद्यार्थियों, शिक्षकों व शोधार्थियों के संपूर्ण विकास के लिए किफायती एवं मूल्य आधारित शिक्षा प्रदान कर समाज की सेवा करना चाहते हैं, ताकि सर्वांगीण वृद्धि सुनिश्चित हो सके।’’

यह यूनिवर्सिटी बिहार में अवसरों के नए द्वार खोल रहा है। यहां बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थी उत्कृष्ट प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। यूनिवर्सिटी उन्हें विभिन्न विषयों में भविष्य के अनुसार तैयार होने के लिए भी पोषित कर रहा है। वे मेडिकल, पैरा-मेडिकल, नर्सिंग, फार्मेसी, कृषि विज्ञान, लॉ, पत्रकारिता एवं जन संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, कॉमर्स (वाणिज्य), पुस्तकालय विज्ञान और प्रबंधन (मैनेजमेंट) के क्षेत्र में विभिन्न पाठ्यक्रमों को चुन सकते हैं।

यहां के विद्यार्थियों को अकादमिक, अनुसंधान, उद्यमी प्रशिक्षण और इंटरडिसिप्लिनरी प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। ये प्रक्रियाएं विद्वानों और पेशेवरों को भावनात्मक बुद्धिमत्ता (इमोशनल इंटेलीजेंस), पारस्परिक कौशल (इंटरपर्सनल स्किल्स), महत्वपूर्ण सोच (क्रिटिकल थिंकिंग) और समस्या को सुलझाने के कौशल (प्रॉब्लम सोल्विंग स्किल्स) के साथ स्ट्रांग लीडर बनाती हैं। बिहार जैसे राज्य में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।

इस राह की चुनौतियों के बारे में श्री सिंह ने कहा, ‘‘चुनौतियां बहुत बड़ी थीं। शुरुआत में, हमारे लिए उन लोगों की मानसिकता को बदलना बेहद जरूरी था, जो मानते थे कि ऐसी जगहों पर कुछ भी नहीं किया जा सकता है। बुनियादी ढांचे को खड़ा करना था। कानून और व्यवस्था से जुड़ी समस्याएं भी थीं। हालांकि, हम सभी क्षेत्रों की प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए यहां एक किफायती और विश्वस्तरीय शिक्षा प्रदान करने के अपने दृष्टिकोण को लेकर बेहद स्पष्ट थे। हमने चुनौतियों पर काम करना शुरू किया और समर्पण व कड़ी मेहनत के साथ हम धीरे-धीरे सफल हुए।’’

विद्यार्थियों के समग्र विकास के लिए अकादमिक कार्यक्रम विकसित करने और निष्पादित करने में यूनिवर्सिटी ने अपनी आधारभूत और संबद्ध सुविधाओं का विस्तार किया। यह विस्तार सीखने के प्रभावी अनुभवों के लिए ऑफलाइन, ऑनलाइन और मिश्रित शिक्षा के माध्यम से स्नातक (ग्रेजुएट), स्नातकोत्तर (पोस्ट ग्रेजुएट) और शोध शिक्षा की संभावनाएं मुहैया कराने के उद्देश्य से किया गया।

यूनिवर्सिटी सफलतापूर्वक शिक्षा, अनुसंधान, प्रशिक्षण और सामाजिक पहुंच के माध्यम से चिकित्सक, शोधकर्ता, अधिकारी, एथिकल लीडर और जिम्मेदार नागरिक तैयार कर रहा है। यूनिवर्सिटी ने शिक्षा व विकास के अवसरों की पेशकश करते हुए सूचना, शिक्षण और सीखने के अनुभवों के बेहतर आदान-प्रदान के लिए कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ साझेदारी की है।

श्री त्रिविक्रम नारायण सिंह ने कहा, ‘‘हमारा उद्देश्य केवल डिग्री देना नहीं है, बल्कि डिग्री से अधिक ज्ञान को प्राथमिकता देना है। हमारा ध्यान केवल नौकरी चाहने वालों के बजाय अधिक से अधिक उद्यमियों को विकसित करने पर है। हम चाहते हैं कि यह यूनिवर्सिटी परिवर्तनकारी तरीके से समाज को स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर प्रभावित करे। यह प्रभाव शिक्षा, अनुसंधान और उद्यमी प्रशिक्षण के इनोवेटिव एंड इंक्लूजिव तरीके से पड़े, ताकि समाज के सभी वर्गों के लिए स्थायी सीख सुनिश्चित हो सके।’’

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