सीमा से परे का ख़तरा -कैसे क्रिप्टो नेटवर्क भारत के ख़िलाफ़ सीमा-पार आतंकवाद को फंडिंग कर रहे हैं: डॉ. मोनिका बी. सूद अध्यक्ष नेशनल यूनिटी एंड सिक्योरिटी काउंसिल

भास्कर समाचार सेवा

आज जब दुनिया डिजिटल क्रांति की दहलीज़ पर खड़ी है, क्रिप्टोकरेंसी एक नया वित्तीय औजार बनकर उभरी है—बिना सीमा, बिना सरकार, और लगभग पूरी तरह गोपनीय। पर इस उभरती क्रांति की आड़ में एक अंधकारमय सच्चाई छिपी है: ये क्रिप्टो नेटवर्क भारत के खिलाफ सीमा-पार आतंकवाद को खामोशी से फंड कर रहे हैं। यह संकट अब तक उतनी गंभीरता से नहीं लिया गया है जितना लिया जाना चाहिए।

पारंपरिक आतंकवादी वित्त पोषण—जैसे हवाला, नकली करेंसी, या फर्जी एनजीओ के जरिए धन पहुंचाना—सरकारी निगरानी में आ सकते थे। लेकिन क्रिप्टो ने आतंकवादियों को एक नया गुप्त रास्ता दे दिया है, जो बैंकिंग प्रणाली को पूरी तरह बाइपास करता है।

आतंकवाद की नई आर्थिक रेखा: क्रिप्टो

Bitcoin, Tether, Monero जैसे डिजिटल टोकन अब आतंकवादियों के लिए वैसा ही हैं जैसा पहले हवाला था। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्की या यूरोप में बैठे आतंकी भारत में सक्रिय स्लीपर सेल्स को सीधे डिजिटल वॉलेट्स के जरिए धन भेज रहे हैं, बिना किसी नाम, पहचान या सरकारी हस्तक्षेप के।

2023 में भारतीय खुफिया एजेंसियों ने आठ ऐसे मामले पकड़े जहाँ क्रिप्टो के ज़रिए भारत में आतंकी गतिविधियों को धन मिला। Monero जैसी प्राइवेसी टोकन का इस्तेमाल कर, धन पहले पूर्वी यूरोप से भेजा गया, फिर बेलीज़ के सर्वर से गुज़रा और अंततः भारत के P2P एक्सचेंजों से रुपये में बदल दिया गया।

क्यों क्रिप्टो आतंकवाद का सबसे बड़ा हथियार बन चुका है?

  1. गोपनीयता (Anonymity): अधिकतर वॉलेट बिना किसी केवाईसी के बनाए जाते हैं। एक पाकिस्तानी आतंकी महज़ 30 सेकंड में इस्तांबुल से पैसा प्राप्त कर सकता है।
  2. बॉर्डरलेस ट्रांसफर: क्रिप्टो किसी सीमा, मुद्रा या बैंकिंग नियंत्रण को नहीं मानता।
  3. विकेंद्रीकरण (Decentralisation): न कोई केंद्रीय नियंत्रण, न RBI, न कोई वैश्विक वित्तीय संस्था।
  4. पी2पी कैश कन्वर्ज़न: दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में क्रिप्टो टोकन स्थानीय स्तर पर कैश में बदले जाते हैं—कोई टैक्स नहीं, कोई रिकॉर्ड नहीं।
  5. डार्क वेब इकोसिस्टम: आतंकी डार्क वेब से हथियार, ड्रोन, फर्जी दस्तावेज़ खरीदते हैं और भुगतान क्रिप्टो में ही करते हैं।

भारत की विशिष्ट कमज़ोरी

भारत आज डिजिटल अर्थव्यवस्था में विश्व नेतृत्व की ओर अग्रसर है, परंतु यही प्रगति सुरक्षा में नई चुनौतियाँ ला रही है। भारत में 2 करोड़ से ज़्यादा अनरेगुलेटेड क्रिप्टो वॉलेट्स हैं। कोई केंद्रीकृत क्रिप्टो निगरानी तंत्र नहीं है। पुलिस और जांच एजेंसियों को इस नए तंत्र की ज़्यादा जानकारी नहीं है। अंतरराष्ट्रीय सहयोग अब भी सीमित है।

आतंकी संगठन जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और ISIS-K अब क्रिप्टो के ज़रिए भारत में कट्टरपंथी युवाओं को फंड कर रहे हैं। फंडिंग को ‘स्कॉलरशिप’ या ‘चैरिटी’ की शक्ल में भेजा जा रहा है।

चौंकाने वाली मिसालें

2022 में दिल्ली पुलिस ने एक युवा को गिरफ्तार किया जो गणतंत्र दिवस पर हमला करने की योजना बना रहा था। उसे ₹3.2 लाख Monero में मिले थे, जिसे केरल के एक P2P प्लेटफ़ॉर्म पर नकद में बदला गया।

तमिलनाडु में एक और मामला सामने आया जहाँ क्रिप्टो का उपयोग कर ड्रोन पार्ट्स खरीदे गए थे, जिन्हें पूर्वोत्तर भारत में आतंकी गतिविधियों के लिए भेजा जा रहा था।

भारत के लिए 7 समाधान

  1. ब्लॉकचेन इंटेलिजेंस यूनिट (BIU): FBI की तर्ज पर एक केंद्रीय निगरानी इकाई, जो Chainalysis जैसे टूल्स से ब्लॉकचेन ट्रैकिंग करे।
  2. क्रिप्टो-वॉलेट KYC अनिवार्य: PAN या आधार से हर वॉलेट लिंक हो और विदेशी स्रोत से आए हर ट्रांज़ैक्शन की स्वतः जांच हो।
  3. गोपनीय टोकनों पर प्रतिबंध: Monero, Zcash जैसे सिक्कों पर पूर्ण प्रतिबंध, क्योंकि इन्हें ट्रेस नहीं किया जा सकता।
  4. हर मेट्रो में डार्क वेब निगरानी सेल: बड़ी महानगरों में डार्क वेब, P2P और ब्लॉकचेन पैटर्न की निगरानी हेतु विशेष इकाइयाँ बनाई जाएं।
  5. अंतरराष्ट्रीय सहयोग: UAE, सिंगापुर, और पूर्वी यूरोप से साइबर फाइनेंस ट्रीटी कर, सर्वर और वॉलेट डेटा की साझेदारी सुनिश्चित की जाए।
  6. पुलिस व एजेंसियों की ट्रेनिंग: IPS, NIA, CBI में क्रिप्टो और डार्क वेब प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाए।
  7. व्हिसलब्लोअर स्कीम: क्रिप्टो एक्सपर्ट्स को संदिग्ध लेन-देन की जानकारी देने पर पुरस्कार और सुरक्षा दी जाए।

नवाचार से ही सुरक्षा संभव

आज की जंग सीमाओं पर नहीं, वॉलेट्स में लड़ी जा रही है। अगर तकनीक का दुरुपयोग हो रहा है, तो उसी तकनीक से उसका मुकाबला भी होना चाहिए। क्रिप्टो-आतंक कोई तकनीकी भूल नहीं, एक भूराजनीतिक खतरा है।

जैसे 26/11 ने समुद्री सुरक्षा की कमज़ोरियों को उजागर किया, वैसे ही यह संकट हमारी डिजिटल सीमाओं की परख कर रहा है। भारत को अब सिर्फ रिएक्ट नहीं, बल्कि प्रोएक्टिव होना होगा। कोड से कोड को हराना होगा, और इच्छाशक्ति से युद्ध जीतना होगा।

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