-डॉ. अशोक कुमार गदिया– एफ सी ए
अभी हाल ही में भारत की संसद ने जो विधेयक पास किया है उससे लगता है कि भारत सरकार में बैठे कुछ उच्च अधिकारियों को भारत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान की कार्य पद्धति एवं निष्पक्षता पर संदेह हुआ है, जो इस विधेयक के माध्यम से प्रदर्शित हुआ है। वैसे इस विधेयक से संस्था की रोजमर्रा की कार्य प्रणाली पर कोई विशेष असर नहीं पड़ेगा परन्तु इस विधेयक से संस्थान की स्वायत्तता को गहरी चोट लगी है। भारत का चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान पिछले 70 वर्षाें से बड़ी प्रमाणिकता के साथ वित्तीय लेन-देन, लेखा-जोखा एवं अंकेक्षण के क्षेत्र में उच्च मापदण्ड को स्थापित करने के साथ ही उनके नियमन का कार्य बड़े ही प्रभावी ढ़ंग से कर रहा है। संस्थान की प्रमाणिकता की साख भारत मंे ही नहीं पूरे विश्व में फैली हुई है। संस्थान द्वारा तैयार किये गये चार्टर्ड एकाउंटेंट्स विश्व के आर्थिक जगत में अपने कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। विश्व एवं भारत में आज ऐसी कोई कम्पनी नहीं है, जहाँ पर भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स अपनी महत्वपूर्ण सेवाएँ न दे रहा हो। उद्योगों, व्यापार, व्यवसाय, सेवा क्षेत्र, चाहे छोटा हो या बड़ा चार्टर्ड एकाउंटेंट के बिना सहयोग के नहीं चल रहा है।
संस्थान द्वारा चार्टर्ड एकाउंटेट बनाने की बड़ी ही कठिन प्रक्रिया है, जिसमें विद्यार्थी को सघन ज्ञान, उच्च कार्यक्षमता एवं व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त होने के बाद ही चार्टर्ड एकाउंटेट का प्रमाण-पत्र प्राप्त होता है। इस प्रक्रिया में हर वर्ष लाखों विद्यार्थी परीक्षा देते हैं। उनमें कुछ हजार ही पास होते हैं, जिनके पास होने का प्रतिशत ही 10 से 15 प्रतिशत मात्र होता है। सी.ए. विद्यार्थी घनघोर परिश्रम एवं बामुश्किल ट्रेनिंग करने के बाद ही सी.ए. संस्थान की सदस्यता प्राप्त कर पाता है। हाल ही के दिनांे में कुछ सी.ए. संस्थान एवं सी.ए. की साख पर प्रश्नचिह्न खड़ा हुआ है परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि 70 वर्षों से ईमानदारी और पूरी प्रमाणिकता के साथ रात-दिन मेहनत करने वाले सी.ए. की साख पर प्रश्नचिह्न लगाया जाए एवं उनके संस्थान की स्वायत्तता पर चोट की जाए। वर्तमान में देश एवं विदेश में भारतीय चार्टर्ड एकाउन्टेंट्स की संख्या 3,27,081 है। सरकार में बैठे अधिकारियों को यह बात ध्यान देनी चाहिए कि सी.ए.संस्थान से पास होकर जो सी.ए. निकले हैं उनमंे से 80 प्रतिशत से ज्यादा तो औद्योगिक एवं व्यवसायिक संस्थानों में नौकरी कर रहे हैं और वे अपना दायित्व रात-दिन मेहनत करते हुए पूरी ईमानदारी के साथ निभा रहे हैं। सभी अपने-अपने औद्योगिक एवं व्यवसायिक संस्थानों में आर्थिक अनुशासन बनाए हुए हैं। सरकार के सारे नियमों का उचित पालन कर रहे हैं। उनको हम कैसे बदनाम कर सकते हैं। जो भी आरोप है वह सिर्फ उन सी.ए. पर है, जो सी.ए. की प्रैक्टिस कर रहे हैं। उसमें भी अपने दायित्व को निभाते हुए हुई मानवीय चूक, लापरवाही, गलतफहमी एवं उद्देश्यपूर्ण गलती में अन्तर करना चाहिए। सी.ए. के अंकेक्षण को या उसके अन्य कार्यों को सी.बी.आई. की या पुलिस की या सी.ए.जी. की जाँच से तुलना नहीं करनी चाहिए। सामाजिक मूल्यों एवं नैतिकता में गिरावट हर क्षेत्र में आयी है, चाहे वह राजनीति हो, नौकरशाही हो, न्याय व्यवस्था हो या अन्य सामाजिक कार्य जब सम्पूर्ण समाज ही नैतिक पतन के दौर से गुजर रहा हो तो कुछ सी.ए. का पथभ्रष्ट होना कोई बड़ी बात नहीं है। उनको सजा दिलाने के लिए हमारी न्याय व्यवस्था में पर्याप्त कानून है। इसलिए वर्तमान विधेयक सी.ए. संस्थान एवं सी.ए. को लक्ष्य करते हुए संसद में पास किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। जो कानून पास किया गया है उसमें कई बातें हैं परन्तु सबसे विचारणीय बात यह है कि किसी सी.ए. के विरुद्ध यदि कोई शिकायत होती है तो उसकी जाँच करने के लिए जो समिति बनेगी उसका अध्यक्ष एवं अधिकतर सदस्य वे होंगे जो सी.ए. नहीं हैं। सी.ए. अपने वैधानिक दायित्वों का निर्वाह जटिल प्रक्रिया को पूरा करते हुए सभी स्थापित नियमों, कानूनों, मापदण्डों को ध्यान में रखते हुए करता है, इसमें हुई लापरवाही या उद्देश्यपूर्ण की गई गलतियांे की जाँच एक व्यक्ति जोकि सी.ए. नहीं है, प्रारम्भिक स्तर पर कभी नहीं कर सकता। सी.ए. समुदाय से अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करे, धन अर्जन करने की अंधी दौड़ में शामिल न होकर अपने संवैधानिक एवं नैतिक दायित्वों का उचित पालन करे और आपसी संगठन पर जोर दे। साथ ही सी.ए. संस्थान के निर्वाचित सी.ए. सदस्यों को भी चाहिए कि वे अपने संस्थान को और भी जिम्मेदारी से चलाएँ। सरकार को अपने अच्छे कार्यों के लेखा-जोखा से समय-समय पर ठीक से अवगत करवायें। इन निर्वाचित सदस्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने व्यक्तिगत हितों को तिलांजलि देकर सी.ए. समुदाय के हित में काम करें और कार्य वितरण की विशाल असमानता को सरकार के साथ मिलकर दूर करें। साथ ही सी.ए. के दायित्व निर्वाह में स्वतंत्रता को सुनिश्चित करें। सरकार में बैठे अधिकारियांे को सी.ए. पेशे का समुचित अध्ययन कर उनके नियमों का निर्णय करना चाहिए। उन्हें इस बात का ध्यान रहना चाहिए कि सी.ए. पेशे के कार्य के वितरण में बड़ी असमानताएँ हैं। देश का सी.ए. पेशे का 90 प्रतिशत कार्य 10 प्रतिशत सी.ए. फर्माें के पास है, बाकी का 10 प्रतिशत कार्य 90 प्रतिशत सी.ए. फर्मों के पास है। यह बात भी सरकार में बैठे उच्च अधिकारियों को ध्यान होनी चाहिए कि जिस व्यापारिक संस्थान का लेखा-जोखा जाँचकर उसे निष्पक्ष रिपोर्ट देनी है, उसका नियोक्ता भी वही है। इस परिस्थिति में नियोक्ता के विरुद्ध लिखना कितना दुर्गम कार्य होता है। सी.ए. को अपने कार्य करने की स्वतंत्रता बिल्कुल भी नहीं है। उसकी क्षमता का 10 प्रतिशत भी उपयोग नहीं हो पा रहा है। सरकार को चाहिए कि उसकी क्षमता का पूर्ण उपयोग हो और उसे सम्मानजनक पारिश्रमिक मिले। यदि ऐसा होता है तो ये जो छोटी-मोटी लापरवाहियाँ सी.ए. द्वारा हो जाती हैं या चन्द लोग उद्देश्यपूर्ण अनियमितताओं में लिप्त हो जाते हैं वे स्वतः रुकेंगी। इस सम्बन्ध में सी.ए. संस्थान एवं सी.ए. पेशे में कार्यरत वरिष्ठ लोगों के साथ बैठकर उनके सुझाव एवं सहयोग लेते हुए सी.ए. संस्थान के नियमन की पुनः रचना करना उचित होगा। !!जय हिन्द!!