महाकुंभ : अर्द्धत्र्यंबक शाक्तसम्प्रदाय के अर्द्धत्र्यंबक मठ के आचार्य राजेश बेंजवाल श्रीविद्या उपासक, तंत्र के ज्ञाता एवं वैदिक आचार्य हैं। वह धर्म व अध्यात्म से जुड़े विषयों के अलावा बीसीए नेटवर्किंग के भी जानकार हैं। यूएन में भी सेवाएं दे चुके हैं। तंत्र-मंत्र विद्या को वर्तमान पीढ़ी से अवगत कराने के लिए प्रयासरत हैं। तंत्र विद्या के साधक आचार्य राजेश ने तंत्र-मंत्र व धर्म व अध्यात्म से जुड़े कई विषयों पर बातचीत की।
तंत्र-मंत्र क्या है? साधना से इसका क्या तात्पर्य?
तंत्र मंत्र एक विद्या है। इसके जरिए दुनिया के रहस्यों और शक्तियों को नियंत्रित किया जा सकता है। तंत्र मंत्र यंत्र का मतलब मारण मोहन वशीकरण उच्चाटन ही नहीं होता। उसका तात्पर्य मोक्ष प्राप्त से है। तंत्र के माध्यम से देवताओं के पूजन आदि से जप तप आदि से आत्मशुद्धि करते हैं हित शुद्ध करते हैं। हित शुद्धि जब होती है तब मोक्ष का मार्ग खुलता है यही उसका लक्ष्य होता है। कलियुग में आगम शास्त्र के बिना पूजा नहीं होती। मंदिर आदि जाते हैं मंदिर का निर्माण यह सब आगम का विषय है। पूजा प्रसाद चढ़ाते हैं। यह सब तंत्र ही है।
अर्द्धत्र्यंबक शाक्तसम्प्रदाय में सिद्धि प्राप्ति करने के कौन से उपाय हैं?
हमारे सम्प्रदाय में मुख्य रूप से महाविद्याओं का ही पूजन आदि होता है। आद्या विदया, ताराख् छिन्मस्त्रिका, त्रिपुर सुंदरी आदि विद्याओं का यहां पूजन होता है। इन्हीं के माध्यम से सिद्धि प्राप्त करके मोक्ष सिद्धि होती है। तंत्र मंत्र के बारे में जो धारणा है वह बहुत छोटी चीज है। ऊर्जा का उपयोग आप निर्माण में भी कर सकते हैं और विनाश में भी कर सकते हैं। वैसे मुख्य रूप से जप पर ही जोर है। जप करने से सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है। इसमें एक श्रृंखला होती है। गुरू मंत्र दिया जाता है। एक विद्या दी जाती हैं जब गुरू को लगता है कि यह ऊर्जा को साध लेता है। ऊर्जा निर्माण कर ली है। इसके बाद कई प्रकार के अभिषेक होते हैं।
लोग कहते हैं सनातन धर्म पूर्णतया वैज्ञानिक है। इससे आप कहां तक सहमत हैं?
यह सनातन धर्म को छोटा करने वाली बात है। यह महत्ता बढ़ा नहीं रही है। विज्ञान बहुत छोटी चीज है। अध्यात्म के सामने विज्ञान ठहरता नहीं है। विज्ञान प्रमेय पर कार्य करता है। जिस पर आप प्रयोग आदि कर सकते हो। आप अध्यात्म को विज्ञान की कसौटी पर कस रहे हैं तो उसे छोटा कर रहे हैं। जो धर्म के माध्यम से जाना जा सकता है वह विज्ञान के माध्यम से नहीं जाना जा सकता है। विज्ञान को स्वर्ग नरक का पता नहीं चला। आत्मा का पता नहीं चला है।
जानकारी मिली है कि आप कोई पंचांग भी बना रहे हैं?
हम जो पंचांग बना रहे हैं उसमें अभी दो हजार साल पीछे से और आगे के आठ हजार साल का डेटा निकाल सकते हैं। इससे आगे की तिथियां कौन पर्व कब पड़ेगा इसकी गणनाएं सटीक निकलेंगी। चार हजार वर्षों की गणना हमने प्रारम्भ कर दी है। उसकी शुद्धता पर काम चल रहा है। अभी कार्य पूर्ण नहीं है। यह नित्य सूर्योदय पर अद्यतन होगा। अभी इस पर हमारा कार्य जारी है।
युवाओं के लिए आपका क्या संदेश है?
युवा पीढ़ी को अपनी जड़ें नहीं भूलनी चाहिए। पाश्चात्य सभ्यता का आकर्षण बहुत है। भौतिकता का युग है। इसके बावजूद भी हमारा सनातन धर्म हमारी परम्परा जो अनादिकाल से चली आ रही है उसे भी संरक्षित सुरक्षित संवर्धित करने का कार्य वह हम लोगों का है। सनातनधीमी अगर उसे सुरक्षति संवर्धित नहीं करेंगे तो कौन करेगा। जो पीढ़ी बड़ी हो चुकी है वह बच्चों को पाश्चत्य सभ्यता की ओर धकेल रही है। वह संस्कार बच्चों को दे नहीं पा रहे हैं।
प्रयागराज महाकुम्भ के बारे में आप क्या कहेंगे?
प्रयाग पुण्यक्षेत्र है। यहां किये गये पाप पुण्य अमोघ होते हैं। पुण्य करोगे तो कई गुना मिलेगा। पाप करोगे तो उसकी काट नहीं मिलेगी। पुण्य क्षेत्रों में जब आओ धर्म को दृष्टिगत रखते हुए आओ पिकनिक मनाने नहीं। यहां पर पाप पुण्य कई गुना बढ़ जाता है। स्नान आदि करो दान पुण्य करो उसका फल है। यहां पर आध्यात्मक दृष्टि ही रहनी चाहिए।
आपकी तंत्रकुल की योजना व परिकल्पना क्या है?
युवाओं लिए हम तंत्रकुल हम बना रहे हैं। विन्ध्याचल के अष्टभुजी से प्रारम्भ करने का विचार है। कई विद्याएं तंत्र मंत्र से संबंधित हैं। वेद से संबंधित हैं पौराणिक भी हैं। उनको उन विद्याओं का ज्ञान कराया जायेगा वहीं रहकर सीख सकते हैं। वहीं रहकर गुरू के मार्गदर्शन में सिद्ध भी कर सकते हैं। तंत्र विद्याएं संरक्षित व संवर्धित हों और आगे बढ़े इसके लिए शोध होगा। कुछ विद्याएं विज्ञान के लिए कौतूहल का विषय हैं। आज की पीढ़ी उन विद्याओं को ग्रहण नहीं कर पा रही है। पाश्चात्य सभ्यता की ओर ज्यादा दौड़ रही है।