भारत में तम्बाकू नियंत्रण 3.0: विज्ञान, टेक्नोलॉजी और सहयोग है जरूरी

लखनऊ 30 जुलाई 2024 : वैकल्पिक उत्पादों का मूल्यांकन करके लोगों को सूचित विकल्प चुनने में समर्थ बनाया जा सकता है। तम्बाकू के खिलाफ लड़ाई में समग्र और सहयोगपूर्ण दृष्टिकोण आवश्यक है। साथ ही, टेक्नोलॉजी इन प्रयासों का विस्तार कर उन्हें आगे बढ़ाने में मदद कर सकती है।

भारत सहित कई देश विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल (एफसीटीसी) का अनुसरण कर रहे हैं। हालाँकि, वो अपनी-अपनी परिस्थितियों के अनुरूप समयसीमा के मामले में अपने निर्णय के अनुसार काम करने के लिए स्वतंत्र हैं। साथ ही डब्लूएचओ के पूर्व डब्लूएचओ अधिकारियों, प्रोफेसर रॉबर्ट बीगलहोल और प्रोफेसर रुथ बोनिता ने हाल ही में अपने एक लेख में कहा है कि तम्बाकू नियंत्रण की मौजूदा रणनीतियाँ काम नहीं कर रही हैं, और उन्होंने नुकसान को कम करने की रणनीति के अभाव एवं टेक्नोलॉजी द्वारा उपलब्ध कराए गए विकल्पों को उजागर किया है।

तम्बाकू नियंत्रण के मानव-केंद्रित दृष्टिकोण’ रिपोर्ट के अनुमान से साल 2030 तक तम्बाकू से होने वाली 80 प्रतिशत से ज्यादा मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) में होने का अनुमान है। तम्बाकू के उपयोग के कारण होने वाली एक तिहाई मौतें सीवीडी के कारण होंगी। इसलिए भारत में तम्बाकू के कारण होने वाली मौतों से लोगों को बचाने के लिए एक नए दृष्टिकोण पर विचार किए जाने की जरूरत है।

इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत में 27 प्रतिशत व्यस्क तम्बाकू का सेवन करते हैं, और तम्बाकू के सेवन में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर आता है। साथ ही भारत में 38 प्रतिशत व्यस्क पुरुष तम्बाकू का सेवन करते हैं, जबकि तम्बाकू सेवन करने वाली व्यस्क महिलाओं की संख्या 9 प्रतिशत है। तम्बाकू सेवन से होने वाली बीमारियों और मौतों की वजह से देश को हर साल 1 प्रतिशत जीडीपी का नुकसान होता है, और स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले कुल खर्च का 5 प्रतिशत तम्बाकू से होने वाली बीमारियों के इलाज में खर्च हो जाता है।

जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का विचार है कि तम्बाकू से होने वाली मौतों को कम करने का सबसे तेज रास्ता इसका त्याग करना है। इसके लिए एफसीटीसी ने टैक्स में वृद्धि, धूम्रपानरहित स्थानों, विज्ञापनों पर प्रतिबंध और शैक्षिक कार्यक्रमों जैसी नीतियों पर बल दिया है।

तम्बाकू सेवन को कम करने की सार्वजनिक नीति में क्लिनिकल और मेडिकेटेड समाधानों को पूरी तरह से शामिल नहीं किया गया है। विभिन्न वैकल्पिक उत्पाद और रोकथाम की नीतियाँ लोगों द्वारा तम्बाकू सेवन का त्याग करने में काफी कारगर साबित हुए हैं। इन उत्पादों के उपयोग में कमी लाने के लिए कई रणनीतियाँ बनाई गई हैं, जिनमें सरकारी प्रोत्साहन, जागरुकता अभियान, और स्वास्थ्यकर्मियों का सहयोग शामिल है।

तम्बाकू से होने वाली मौतों और बीमारियों में और ज्यादा कमी लाने के लिए व्यस्कों द्वारा तम्बाकू सेवन का त्याग करने में तेजी लाने और त्याग करने में असफल हो रहे लोगों को वैकल्पिक समाधान प्रदान किए जाने के लिए नई नीतियों पर विचार किए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए भारत सरकार ने पिछले कुछ सालों में जन स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च बढ़ा दिया है।

तम्बाकू के मौजूदा उपयोग में कमी लाने और ग्राहकों को होने वाला नुकसान कम करने की योजना बनाया जाना बहुत आवश्यक है क्योंकि तम्बाकू से जनस्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर काफी बड़ा प्रभाव पड़ता है। इसलिए जो लोग तम्बाकू सेवन रोकने में समर्थ नहीं हैं, उनके लिए कम नुकसान वाले विकल्प उपलब्ध कराया जाना और सुरक्षित अभ्यासों को प्रोत्साहित किया जाना एक व्यवहारिक प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए, जो आबादी पर तम्बाकू के व्यापक प्रभाव में कमी लाने पर केंद्रित हो।
जो लोग तम्बाकू सेवन रोकने में समर्थ नहीं हैं,

उन्हें कम नुकसान वाले विकल्पों के उपयोग की ओर प्रेरित किया जाना चाहिए ताकि उनके स्वास्थ्य को कम से कम जोखिम हो। इसके अलावा, निकोटीन रिडक्शन तकनीकों (एनआरटी) को सामान्य आबादी के लिए किफायती और आसानी से उपलब्ध बनाए जाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। ऐसी योजनाएं व नीतियाँ होनी चाहिए, जो तम्बाकू उत्पादों के सूचीबद्ध और गैरसूचीबद्ध निर्माताओं एवं रिटेलर्स पर नजर और उनका विस्तृत डेटाबेस रखें। अवैध सिगरेट और गुटखा के व्यापार पर नजर रखने के लिए ब्लॉकचेन का उपयोग किया जा सकता है।

इसके अलावा क्षेत्रीय मीडिया पर ध्यान केंद्रित करके पूरे देश में मास मीडिया अभियानों में निवेश बढ़ाए जाने की जरूरत है, ताकि धूम्रपान करने वालों के बीच जागरुकता बढ़ाई जा सके और तम्बाकू से जुड़ी मिथकों को दूर करके इसकी रोकथाम के लिए उनके सहयोग को प्रोत्साहित किया जा सके। इसकी प्रेरणा पल्स पोलियो अभियान से ली जा सकती है,

जो देश को पोलियो-मुक्त बनाने में सफल रहा। साथ ही शोध, डेटा कलेक्शन, और इंपैक्ट मॉनिटरिंग में सहयोग देने के लिए इनोवेशन फंड्स में निवेश बढ़ाया जाना चाहिए। आज तम्बाकू नियंत्रण के लिए विज्ञान आधारित समाधानों में सार्वजनिक निवेश और रैगुलेटरी फ्रेमवर्क को मजबूत बनाए जाने तथा ऐसे समाधानों व नीतियों के लिए सब्सिडी दिए जाने की जरूरत है, जो तम्बाकू के उपयोग में कमी ला सकें।

निर्माताओं को ऐसे उत्पादों के विकास के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, जो ग्राहकों को समान अनुभव प्रदान करते हुए तम्बाकू से निकलने वाले विषैले तत्वों से उनका संपर्क कम कर सकें। तम्बाकू के विकल्प विकसित करने वाले निर्माताओं को किफायती और नुकसान कम करने वाले विकल्पों के निर्माण और स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव के अध्ययन के लिए सब्सिडी दी जानी चाहिए। सरकार, जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों, रैगुलेटर्स, उपभोक्ताओं, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, एवं अन्य हिधारकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने का एक सिस्टम होना चाहिए, ताकि नुकसान कम करने के लिए इनोवेटिव और प्रभावशाली विधियों और विकल्पों का विकास हो सके।

भारत में तम्बाकू से होने वाले नुकसान में कमी लाने और इसकी रोकथाम के लिए एक व्यवहारिक रोडमैप का होना बहुत आवश्यक है, जो धूम्रपान और खतरनाक ओरल तम्बाकू उत्पादों के सेवन में कमी लाकर तम्बाकू की लत को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कम नुकसान वाले विकल्प पेश करना तम्बाकू से होने वाले नुकसान को कम करने के सरकार के उद्देश्य के अनुरूप है, जो इसकी रोकथाम को बढ़ावा देते हैं। धूम्रपान करने वालों को कम नुकसान वाले विकल्प देकर उन्हें तम्बाकू के जलने से उत्पन्न होने वाले विषैले तत्वों के नुकसान से बचाने का प्रभावशाली साधन प्रदान किया जा सकता है।

वैकल्पिक उत्पादों के मूल्यांकन से लोगों को तम्बाकू सेवन के बारे में सूचित निर्णय लेने और इससे होने वाले नुकसान को कम करने में समर्थ बनाया जा सकता है। जो लोग तम्बाकू का सेवन छोड़ने में समर्थ नहीं हैं, उन्हें उसकी बजाय कम नुकसान वाले निकोटीन उत्पादों का उपयोग करने के बड़े फायदे हैं। इसलिए उपभोक्ता, औद्योगिक दिग्गज और सरकार साथ मिलकर तम्बाकू से होने वाले नुकसान को कम करने वाली नीतियों की मदद से एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।

तम्बाकू सेवन के खिलाफ हमारी लड़ाई में आगे का मार्ग व्यवहारिक और सहयोगपूर्ण होना चाहिए। तम्बाकू सेवन के दीर्घकालिक और स्थायी नुकसानों को देखते हुए यह बहुत आवश्यक है कि नुकसान कम करने के लिए एक मानव-केंद्रित रणनीति बनाई जाए, जिसमें सभी हितधारक – निर्माता, उपभोक्ता, रैगुलेटरी एजेंसियाँ, जन स्वास्थ्यकर्मी और सपोर्ट समूह शामिल हों। तम्बाकू से होने वाली बहुआयामी चुनौतियों को निरंतर संबोधित करते हुए भारत में लोगों व समुदायों के लिए एक स्वस्थ धूम्रपानरहित भविष्य सुनिश्चित किया जा सकता है।

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