हर्रैया /बस्ती ।
विधानसभा क्षेत्र 307 हर्रैया कई मायने में अपना विशेष स्थान रखता है ,यह विधानसभा क्षेत्र अपने आंचल में न सिर्फ एतिहासिक बल्कि पौराणिक मान्यताओं को भी अपने आंचल में समेटे हुए है। यह विधानसभा सीट दो दशक से भी अधिक समय तक सुकरौली गांव निवासी स्वर्गीय सुखपाल पाण्डेय और पट्टी दारी मे रिश्ते मे उनके चाचा लगने वाले जगदीश स्टेट से ताल्लुक रखने वाले सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री रहे पंडित कमला पति त्रिपाठी के दामाद सुरेंद्र प्रताप नारायण पाण्डेय के कब्जे मे रही ।फर्क सिर्फ इतना था कि जहां चाचा ने कांग्रेस का दामन थामा तो जीवन की अंतिम यात्रा भी तिरंगे मे ही किया वहीं भतीजा हर बार दलबदल कर चुनावी समर मे बाजी मारी।
आज भी लोगों की जुबान पर एक जुमला काफी लोक प्रिय है जब बेलभरिया रामगुलाम निवासी रामचरित्र पाण्डेय कांग्रेस से चुनाव लड़े थे और उस जमाने के जानेमाने उद्योग पति नारंग देशराज नारंग भी चुनाव लड़े थे। एक तरफ धनपति दो दूसरी तरफ एक धनहीन जमीन से जुड़ा नेता ।क्षेत्रीय बुजुर्ग बताते है की लाख प्रयास और चुनाव मे पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी देशराज नारंग चुनाव हार गए। बताते है उस समय जनता ने नारा दिया था कि खाएंगे पिएंगे नारंग का लेकिन वोट रामचरित्र पाण्डेय को ,तब से यह जुमला आज भी प्रसिद्ध है। इस सीट पर 1969 से और 90 तक चाचा और भतीजे ने बारी-बारी अपना परचम फहराया 1969 में एक सामान्य परिवार मे जन्मे जमीन से जुड़े नेता सुखपाल पाण्डेय अपनी लगन और संघर्ष के बल पर राजनीतिक मे ऐसा मुकाम बनाया कि कांग्रेसी उम्मीदवार विन्देश्वरी लाल श्रीवास्तव को शोसलिस्ट पार्टी के बैनर तले उन्हें पटनी दे दिया।लेकिन 19 74 में हुए आम चुनाव मे कांग्रेस उम्मीदवार सुरेंद्र प्रताप नारायण पाण्डेय उर्फ कोट साहब से चुनाव हार गए।लेकिन आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में इस बार सुखपाल पांडे ने जनता पार्टी का दामन थामा और 33238 मत पाकर और 1974 के हार का बदला ले लिया उन्होंने भारी मतों के अंतर से हराकर ले लिया ।सुरेन्द्र प्रताप नारायण पाण्डेय को महज 18782 मत मिला।लेकिन अन्तरकलह के चलते केन्द्र के साथ यूपी मे भी जनता पार्टी सरकार का पतन हो गया और 1980के चुनाव में इस बार सुखपाल पांडे जनता पार्टी जे पी के बैनर तले चुनाव लड़े उन्हें 14610मत मिला कांग्रेसी उम्मीदवार सुरेंद्र प्रताप नारायण पांडे को 21061 मत मिला इस बार सुखपाल पाण्डेय चुनाव हार गए।1985 मे हुए विधानसभा चुनाव में फिर चाचा भतीजा आमने सामने आ गए फर्क इतना था कि चाचा अपने पुराने दल कांग्रेस से उम्मीदवार थे तो भतीजा ने इस बार फिर पाला बदलते हुए चौधरी चरण सिंह की पार्टी दलित मजदूर किसान पार्टी का दामन थाम लिया। और इस बार उन्हें 33781 मत मिला कोट साहब को 26786 मतो से ही संतोष करना पड़ा सुखपाल पाण्डेय चुनावी समर में चाचा को पटखनी दे दिया ।लेकिन 89 के आम चुनाव में इस बार भतीजे ने चाचा के लिए मैदान खाली कर दिया और स्वयं जाकर कप्तानगंज विधानसभा से अपनी किस्मत आजमाएं।
जहां उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा लेकिन चाचा जनता पार्टी उम्मीदवार अनिल सिंह को भारी मतों के अंतर से शिकस्त देकर हरैया सीट पर पुनः अपना कब्जा जमा लिया। इस बार कोट साहब को 32035 तथा जनता दल के अनिल सिह को महज 17454 मत मिला।तत्पश्चात राम लहर में चुनाव हारने के साथ चाचा भतीजे का राजनीतिक सफरनामा खत्म हो गया।हलांकि बाद मे भतीजे ने अपनी किस्मत बसपा से अजमाया और इस बार न सिर्फ चुनाव जीत गए बल्कि पाला बदलकर बसपा से अलग होकर अन्य विधायकों के साथ स्वर्गीय कल्याण सिंह तथा राजनाथ सिंह के नेतृत्व में बनी सरकार के जंबो मंत्रिमंडल मे शामिल हो गए।