अमित शुक्ला
बांगरमऊ, उन्नाव। क्षेत्र के ग्राम मुंडेरा स्थित फूलमती मंदिर प्रांगण में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस मैनपुरी की विख्यात भागवताचार्य संगीता शास्त्री ने सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कथा का विस्तृत वर्णन किया। प्रसंग के अंतर्गत हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश की सर्पदंश से मृत्यु पर मां तारा का विलाप सुनकर श्रोता भक्तों के अश्रु की धारा बह निकली।
कथावाचिका विदुषी संगीता शास्त्री ने कहा कि राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी थे। दान की प्रतिज्ञा पूर्ण करने के लिए राजा को स्वयं और अपनी पत्नी तारा तथा पुत्र रोहिताश को भी बेच देना पड़ा। राजा ने डोम के घर चाकरी की और मरघट पर शव से कर तक लेना पड़ा।फिर भी राजा ने सत्य का साथ नहीं छोड़ा ।
उन्होंने कहा कि सत्य का संग ही सत्संग है। जीवन और मृत्यु सत्य व अटल हैं और आत्मा की आवाज भी सत्य है जबकि मन की आवाज मिथ्या है। कथा वाचिका द्वारा आधुनिक वाद्य यंत्रों की सुरीली धुन पर प्रस्तुत कीर्तन सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए। उन्होंने कीर्तन के माध्यम से उपदेश दिया कि किसी अन्य व्यक्ति की बुराई करना स्वयं को बुरा बनाना है।शब्द गतिमान है।
मुंह से निकला शब्द कभी वापस नहीं आता बल्कि वह स्वयं को ही प्रभावित करता है। इसलिए किसी को भी अपशब्द न कहें। उन्होंने उपदेश दिया की परोपकार के समान कोई धर्म ही नहीं है। कथा के अंत में परीक्षित की भूमिका निभा रहे रामआसरे मास्टर ने श्रीमद् भागवत महापुराण की आरती कर प्रसाद वितरित किया।