UP Nikay Chunav: यूपी में निकाय चुनाव का रास्ता साफ, बिना OBC आरक्षण के होगा इलेक्शन

यूपी नगर निकाय चुनाव में OBC आरक्षण पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना फैसला सुना दिया है। हाईकोर्ट ने OBC आरक्षण के बिना ही निकाय चुनाव कराने का आदेश दे दिया है। कोर्ट के इस आदेश के बाद OBC के लिए आरक्षित सीट जनरल मानी जाएगी।

इस फैसले को सरकार के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। इस मामले में 24 दिसंबर को बहस पूरी हो गई थी। कोर्ट ने निकाय चुनावों से संबंधित सभी 93 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद 27 दिसंबर तक फैसला सुरक्षित कर लिया था।

हाईकोर्ट ने 5 दिसंबर को जारी ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को भी खारिज कर दिया है। बेंच ने कहा कि अगर आरक्षण तय करना है, तो ट्रिपल टेस्ट के बिना कोई आरक्षण तय नहीं होगा। सरकार को चुनाव जल्दी कराने चाहिए। ये आदेश जज देवेंद्र कुमार उपाध्याय और सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने दिया। जनहित याचिका रायबरेली के सामाजिक कार्यकर्ता वैभव पांडेय ने लगाई थी।

सरकार कर सकती है कमीशन गठित

कोर्ट के इस फैसले के बाद अगर सरकार को OBC आरक्षण लागू करना है, तो कमीशन गठित करना होगा। ये कमीशन पिछड़ा वर्ग की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट देगा। इसके आधार पर आरक्षण लागू होगा। आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट यानी 3 स्तर पर मानक रखे जाते हैं। इसे ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला कहा गया है।

अब इस टेस्ट में देखना होगा कि राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग की आर्थिक-शैक्षणिक स्थिति कैसी है? उनको आरक्षण देने की जरूरत है या नहीं? उनको आरक्षण दिया जा सकता है या नहीं?

कोर्ट में कहा गया कि ये एक राजनीतिक आरक्षण
UP सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही और मुख्य स्थाई अधिवक्ता अभिनव नारायन त्रिवेदी ने सरकार का पक्ष रखा था। दलील दी गई कि निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है।

पहले मामले की सुनवाई के समय राज्य सरकार का कहना था कि मांगे गए सारे जवाब प्रति शपथपत्र में दाखिल कर दिए गए हैं। इस पर याचियों के वकीलों ने आपत्ति करते हुए सरकार से विस्तृत जवाब की गुजारिश की‚ जिसे कोर्ट ने नहीं माना।

राज्य सरकार ने दाखिल किए गए अपने हलफनामे में कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए। सरकार ने कहा कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। यह भी कहा कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।

ट्रिपल टेस्ट के साथ कुल आरक्षण 50% से ज्यादा ना हो
याचिकाकर्ता के वकील शरद पाठक ने बताया,”अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग के अलग-अलग स्थितियां हैं। इसमें राज्य सरकार को तय करना होगा कि वह अपने राज्य में ओबीसी को कितना आरक्षण देना चाहते हैं, लेकिन महाराष्ट्र के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट का एक फॉर्मूला दिया।

ट्रिपल टेस्ट में साथ ही कुल आरक्षण 50% से अधिक ना हो। इसे ट्रिपल टेस्ट का नाम दिया गया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्देश में कहा कि अगर अन्य पिछड़ा वर्ग को ट्रिपल टेस्ट के तहत आरक्षण नहीं दिया तो अन्य पिछड़ा वर्ग की सीटों को अनारक्षित माना जाएगा।

याचिकाकर्ताओं की 65 आपत्तियां

हाईकोर्ट में निकाय चुनाव में आरक्षण पर 65 आपत्तियां दाखिल की गईं। हाईकोर्ट ने सभी मामलों को सुनवाई पूरी कर ली है। याचिकाकर्ताओं के द्वारा ओबीसी आरक्षण से लेकर जनरल आरक्षण पर आपत्तियां दर्ज कराई गई थी।

सरकार के वकील की तरफ से 2017 के फार्मूले पर आरक्षण लागू किए जाने का दावा किया गया। जिस पर हाईकोर्ट ने सख्त सवाल करते हुए पूछा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में ओबीसी आरक्षण को लेकर नई गाइडलाइन जारी की गई है तो उसका पालन क्यों नहीं किया गया?

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