अमेरिकी राष्ट्रपति ने इजराइल-हमास जंग की बताई बड़ी वजह, कहा- PM मोदी ने की थी…

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि इजराइल-हमास के बीच जंग की एक वजह भारत-मिडिल ईस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर भी हो सकता है। ऑल इंडिया रेडियो के मुताबिक बाइडेन ने यह बात ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज के साथ मीटिंग के बाद कही। उन्होंने कहा- यह सिर्फ मेरा अनुमान है, इसे साबित करने के लिए मेरे पास कोई प्रूफ नहीं है।

एक ही हफ्ते में यह दूसरी बार है जब बाइडेन ने हमास के हमले के पीछे इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप के इकोनॉमिक कॉरिडोर को एक अहम वजह बताया है। इस कॉरिडोर की घोषणा भारत में G20 समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। इजराइल ने इस कॉरिडोर को एशिया के लिए काफी अहम बताया था, हालांकि वह इसमें एक्टिव मेंबर के तौर पर शामिल नहीं है।

जंग भारत-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर के लिए बड़ी चुनौती

विदेश मामलों के जानकार माइकल कुगेलमैन के मुताबिक यह जंग भारत-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर के लिए बड़ी चुनौती लेकर आई है। यह जंग साबित करती है कि दुनिया को जोड़ने के लिए कॉरिडोर बनाना कितना मुश्किल काम है। इस प्रोजेक्ट की घोषणा के दौरान यह माना जा रहा था कि इससे मिडिल-ईस्ट में सऊदी अरब और इजराइल के बीच संबंध बेहतर होंगे। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के मनोज जोशी के मुताबिक भारत-मिडिल ईस्ट और यूरोप कॉरिडोर की शुरुआत इलाके में शांति लाने के लिए की गई थी। अब यही झगड़े की वजह बन गया है।

जानिए यह कॉरिडोर आखिर है क्या?

मुंबई से शुरू होने वाला यह नया कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का विकल्प होगा। यह कॉरिडोर 6 हजार किलोमीटर लंबा होगा। इसमें 3500 किलोमीटर समुद्री मार्ग शामिल है।

कॉरिडोर के बनने के बाद भारत से यूरोप तक सामान पहुंचाने में करीब 40% समय बचेगा। अभी भारत से किसी भी कार्गो शिप को जर्मनी पहुंचने में 36 दिन लगते हैं। इस रूट से 14 दिन की बचत होगी। यूरोप तक सीधी पहुंच से भारत के लिए एक्सपोर्ट-इंपोर्ट आसान और सस्ता होगा।

सात वजहों से भारत इस प्रोजेक्ट से जुड़ा

सबसे पहले भारत और अमेरिका इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में काम कर रहे थे, लेकिन पहली बार दोनों मिडिल ईस्ट में साझेदार बने हैं।
भारत की मध्य एशिया से जमीनी कनेक्टिविटी की सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान का तोड़ मिल गया है। वह 1991 से इस प्रयास को रोकने की कोशिश कर रहा था।
भारत के ईरान के साथ संबंध सुधरे हैं, लेकिन अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण ईरान से यूरेशिया तक के रूस-ईरान कॉरिडोर की योजना प्रभावित होती दिख रही है।
अरब देशों के साथ भारत की भागीदारी बढ़ी है। UAE और सऊदी सरकार भी भारत के साथ स्थायी कनेक्टिविटी बनाने के लिए प्रयास कर रही हैं।
अमेरिका को उम्मीद है कि इस मेगा कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट से अरब प्रायद्वीप में राजनीतिक स्थिरता आएगी और संबंध सामान्य हो सकेंगे।
यूरोपीय यूनियन ने 2021-27 के दौरान बुनियादी ढांचे के खर्च के लिए 300 मिलियन यूरो (करीब 2633 करोड़ रुपए) निर्धारित किए थे। भारत भी इसका भागीदार बना।
नया कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प है। कई देशों को चीन के कर्ज जाल से मुक्ति मिलेगी। G20 में अफ्रीकी यूनियन के भागीदार बनने से चीन और रूस की अफ्रीकी देशों में बढ़ती दादागीरी को रोकने में भी मदद मिलेगी।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें