
- भास्कर करकेरा
भारत का मध्यम वर्ग अब पहले से कहीं अधिक महत्वाकांक्षी होता जा रहा है — इसकी वजह है बढ़ती आमदनी, आत्मविश्वास में इज़ाफा और डिजिटल पहुंच की सहूलियत। इस बदलाव को और तेज़ी दे रहा है क्रेडिट की आसान उपलब्धता, जो अब महज विकल्प नहीं, बल्कि इच्छाओं को हकीकत में बदलने का एक अहम ज़रिया बन चुकी है — खासकर पर्सनल मोबिलिटी के क्षेत्र में।
रिटेल लोन श्रेणियों में ऑटो लोन अब तीसरे सबसे बड़े सेगमेंट के रूप में उभरा है, जो एमएसएमई और होम लोन के बाद आता है। हाल ही में आई क्रिसिल रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 के अंत तक भारत में ऑटो लोन पोर्टफोलियो ₹13.4 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है। इसमें यात्री कार, कमर्शियल वाहन, दोपहिया और तिपहिया वाहनों से संबंधित सभी तरह के लोन शामिल हैं।
लेकिन यह विकास सिर्फ शहरी भारत में सीमित नहीं है। दरअसल, ऑटो लोन की अगली बड़ी लहर टियर-2 और टियर-3 शहरों से उठ रही है। इन क्षेत्रों में वेल्थ क्रिएशन, बुनियादी ढांचे में सुधार और डिजिटल सेवाओं की पहुंच ने मेट्रो बनाम नॉन-मेट्रो की पारंपरिक रेखाएं मिटा दी हैं। आर्थिक विकास का गुणात्मक प्रभाव इन बाजारों तक तेज़ी से पहुंचा है और निजी वाहन रखने की आकांक्षा — जो आत्मनिर्भरता और सामाजिक प्रगति का प्रतीक मानी जाती है — अब यहां तेजी से फैल रही है।
उद्योग की सोच में बदलाव: महानगरों से भारत की ओर
वाहन निर्माता कंपनियां इस बदलते रुझान को पहचान चुकी हैं। देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुज़ुकी ने हाल ही में घोषणा की है कि वह छोटे शहरों में सैटेलाइट शोरूम का विस्तार करेगी — खासकर हैचबैक और एंट्री-लेवल गाड़ियों की बढ़ती मांग को देखते हुए।
महिंद्रा एंड महिंद्रा ने भी टियर-2 और टियर-3 बाजारों में अपने प्रीमियम इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए अप्रत्याशित मांग देखी है — जो खपत की मानसिकता और क्रयशक्ति में बदलाव का स्पष्ट संकेत है। यहां तक कि कुछ लग्ज़री ब्रांड्स ने भी स्वीकार किया है कि अब मांग केवल महानगरों तक सीमित नहीं रही — राजकोट, जयपुर, वडोदरा जैसे शहरों से भी रुझान बढ़ रहा है, जो अब खुद करोड़पति और अरबपतियों की एक नई श्रेणी को जन्म दे रहे हैं।
वहीं, दोपहिया वाहन अभी भी छोटे शहरों में छाए हुए हैं — ये न केवल आवागमन का व्यावहारिक समाधान हैं, बल्कि ग्राहकों को औपचारिक क्रेडिट व्यवस्था में लाने का एक प्रवेश द्वार भी।
क्रेडिट की बदलती तस्वीर
जहां कभी छोटे शहरों में क्रेडिट मिलना मुश्किल था, अब वहां एक नाटकीय बदलाव देखने को मिल रहा है। विभिन्न ग्राहक प्रोफाइल के अनुसार तैयार किए गए विविध प्रोडक्ट ऑफरिंग्स की मदद से अब पहली बार वाहन खरीदने वालों को भी आकर्षक फाइनेंसिंग विकल्प मिल रहे हैं। नतीजा: एक व्यापक और समावेशी बाज़ार, जहां सीमित बचत वाले लोग भी अब बड़े सपने देखने की हिम्मत कर पा रहे हैं।
यह बदलाव डिजिटल बैंकिंग के विस्तार और वित्तीय सेवाओं की बढ़ती पहुंच के साथ मेल खाता है, जिससे अब दूरदराज़ के इलाकों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा रहा है। पारंपरिक और आधुनिक बैंकिंग संस्थान, फिजिटल मॉडल, साझेदारियों और एम्बेडेड फाइनेंस इकोसिस्टम के माध्यम से सक्रिय रूप से ग्राहकों तक पहुंच रहे हैं।
सीआरआईएफ हाई मार्क के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 की तीसरी तिमाही में छोटे शहरों ने क्रेडिट डिमांड में बढ़त दिखाई। बीटी100 (टॉप 100 से परे के शहरों) ने दोपहिया लोन में 52.6% और कुल ऑटो लोन वैल्यू में 35.8% हिस्सेदारी दर्ज की। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि संरचनात्मक बदलाव है।
आगे हैं अपार संभावनाएं
बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के लिए यह सिर्फ एक व्यापारिक अवसर नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण में दीर्घकालिक भूमिका निभाने का अवसर है। वाहन स्वामित्व को सुलभ बनाकर, ये संस्थाएं शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार तक पहुंच को बेहतर बना रही हैं — खासतौर पर अर्ध-शहरी और ग्रामीण इलाकों में। गतिशीलता ही सशक्तिकरण है। और जब सशक्तिकरण को क्रेडिट का सहयोग मिलता है, तो वह समावेशी विकास की दिशा में एक मजबूत प्रेरक बन जाता है।
अब चुनौती यह है कि इस विकास को ज़िम्मेदारी के साथ आगे बढ़ाया जाए। जैसे-जैसे इन क्षेत्रों में ऑटो लोन बाजार गहराता जा रहा है, लेंडर्स को क्रेडिट स्टैंडर्ड्स, ग्राहक शिक्षा और एसेट क्वालिटी पर सतर्क रहना होगा — साथ ही स्थानीय रणनीतियों और डिजिटल मॉडल्स के साथ नवाचार भी जारी रखना होगा।
विकसित भारत की ओर बढ़ते पहिए
भारत की क्रेडिट क्रांति की कहानी अब महानगरों से नहीं, बल्कि छोटे शहरों से लिखी जा रही है। जो शहर कभी मुख्य धारा की आर्थिक गतिविधियों के लिए हाशिए पर थे, वे अब देश की खपत और क्रेडिट ग्रोथ के केंद्र बनते जा रहे हैं। ऑटो लोन सेक्टर, जिसमें गहरे सामाजिक और आर्थिक संबंध निहित हैं, इस परिवर्तन का सबसे मजबूत प्रतीक बनकर उभरा है।
वित्तीय व्यवस्था के लिए, “विकसित भारत” की ओर बढ़ने की राह सिर्फ डिजिटल सिस्टम और एल्गोरिद्म से नहीं, बल्कि पहियों से भी बन रही है — सपनों से प्रेरित, उद्देश्यपूर्ण फाइनेंस से समर्थित, और भविष्य की ओर लगातार आगे बढ़ती हुई।
(लेखक एयू स्मॉल फाइनेंस बैंक में हेड ऑफ रिटेल एसेट्स हैं)