कोरोना वैक्सीन कब आएगी, कहां मिलेगी, कैसे काम करेगी, जानिए इन सवालों से जवाब

कोरोना वायरस (coronavirus in india) की वैक्सीन (coronavirus vaccine) को लेकर भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. के विजय राघवन ने कई बातें बताईं हैं। उन्होंने वायरस के लिए वैक्सीन बनाने से जुड़ी हर कड़ी को लोगों के सामने लाने की कोशिश की, ताकि लोग उसे अच्छे से समझ सकें। आइए जानते हैं राघवन ने लोगों के मन में उठ रहे किन सवालों के जवाब दिए हैं।

1- कोरोना के खिलाफ जंग में क्या करना जरूरी है?

कोविड-19 के खिलाफ जंग में हमें 5 तरह के काम करने चाहिए। पहला हाइजीन मेंटेन करें, दूसरा हर चीज की सतह यानी सर्फेस को साफ करते रहे, तीसरा फिजिकल डिस्टेंसिंग करें। बाकी के दो सरकार के लेवल की चीजे हैं जो ट्रैकिंग और टेस्टिंग हैं। वैक्सीन और ड्रग्स के इंतजार में हमें ये सब करना जरूरी है।

2- कैसे काम करती है वैक्सीन?
राघवन ने बताया कि वैक्सीन के जरिए हमारे शरीर में कुछ वायरस जैसा ही प्रोटीन लगाया जाता है, जिससे इम्यून सिस्टम वायरस के लिए तैयार हो सके। ऐसे में जब वायरस हमारे शरीर पर अटैक करता है तो इम्यून सिस्टम उससे लड़ता है।

3- वैक्सीन बनने में कितना समय और पैसा लगता है?
कोई भी वैक्सीन बनने में करीब 10-15 साल लग जाते हैं, क्योंकि वैक्सीन बनाते वक्त ये भी ध्यान रखा होता है कि वैक्सीन की क्वालिटी और सेफ्टी का भी ख्याल रखा जाए। राघवन के अनुसार वैक्सीन बनाने में अमूमन 200-300 मिलियन डॉलर तक खर्च हो जाते हैं। अब वैक्सीन को साल भर में बनाने की कोशिश है तो इसमें 2-3 अरब डॉलर तक का खर्च आ सकता है।

4- कोरोना से लड़ने के लिए कैसे बन रही है वैक्सीन?
राघवन ने बताया कि वैक्सीन बनाने की जो प्रक्रिया 10-15 साल में पूरी होती है, उसे करीब साल भर के अंदर करने की कोशिश हो रही है। ऐसे में एक-एक वैक्सीन पर काम करने के बजाय दुनिया मिलकर एक साथ करीब 100 वैक्सीन पर काम कर रही है। वैक्सीन बनाने में इसकी मैन्युफैक्चरिंग और डिस्ट्रिब्यूशन के बारे में सोचना होता है। भारत अभी वैक्सीन बनाने में टॉप पर है। एक बच्चे को जो 3 स्टैंडर्ड वैक्सीन लगती हैं, उनमें से दो भारत में बनती हैं।

5- भारत में कितनी वैक्सीन पर हो रहा है काम?
इस समय भारत में करीब 30 ग्रुप वैक्सीन डेवलपमेंट पर काम चल रहा है, जिनमें से 20 वैक्सीन काफी अहम हैं। हमारे देश की वैक्सीन कंपनियां सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग नहीं कर रही हैं, बल्कि रिसर्च और डेवलपमेंट में भी लगी हुई हैं।

6- कितने तरह से तैयार होती हैं वैक्सीन
वैक्सीन कुल चार तरह से तैयार होती हैं और इस समय कोरोना से जंग में इन चार तरह की वैक्सीन पर काम चल रहा है।
– पहली एमआरएनए वैक्सीन, जिसमें वायरस का जेनेटिक मटीरियल का एक कंपोनेंट लेकर उसे इंजेक्ट कर देते हैं, जिससे इम्यून तैयार हो जाता है, जो वायरस से लड़ता है।
– दूसरी स्टैंडर्ड वैक्सीन, जिसके तहत किसी वायरस का वीक वर्जन लेते हैं और उसे लोगों में इंजेक्ट कर के इम्यून तैयार कराया जाता है। ये बहुत ही कमजोर होता है, जो लोगों को बीमार नहीं कर पाता, लेकिन इम्यून तैयार करने में काम आ जाता है।
– तीसरी तरह की वैक्सीन में किसी और वायरस के बैकबोन में इस वायरस की कुछ कोडिंग को लगाकर वैक्सीन बनाते हैं।
– चौथी तरह की वैक्सीन में वायरस का प्रोटीन लैब में बनाकर उसे दूसरे स्टिमुलस के साथ लगाया जाता है।

7- कितने तरह से बनाई जा रही हैं वैक्सीन?

राघवन ने बताया कि वैक्सीन बनाने की कोशिश तीन तरह से हो रही है। एक तो हम खुद कोशिश कर रहे हैं। दूसरा बाहर की कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और तीसरा हम लीड कर रहे हैं और बाहर के लोग हमारे साथ काम कर रहे हैं।

8- कब तक आएगी पहली वैक्सीन

राघवन ने कहा कि कुछ कंपनियां इस पर काम कर रही हैं, जो अक्टूबर तक ही क्लीनिकल ट्रायल पूरा कर सकती हैं। वहीं कुछ से उम्मीद है कि वह फरवरी 2021 तक वैक्सीन बनाकर तैयार कर सकती हैं। वैक्सीन बनाने में कुछ स्टार्टअप, अकैडमिक्स और विदेशी कंपनियां भी लगी हुई हैं। हालांकि, उन्होंने एक बात साफ की कि कोरोना की वैक्सीन में पहली-दूसरी कहना कोई खास मायने नहीं रखना। वह बोली की पहली वैक्सीन हो सकती है, या कुछ डोज हो सकती हैं। इसके बाद बेहतर वैक्सीन बनाई जाएंगी और ये लगातार जारी रहेगा। रिसर्च रुकेगी नहीं।

9- ड्रग्स के साथ कितनी चुनौतियां हैं?
वैक्सीन के बारे में बताने के दौरान राघवन ने बताया कि एक ड्रग के साथ कई चुनौतियां होती हैं। पहली चुनौती तो यही है कि ऐसा ड्रग बनाया जाए जो सिर्फ वायरस पर अटैक करे। एक दूसरी चुनौती ये भी है कि ड्रग शुरुआती स्टेज में ही अटैक करे, क्योंकि बाद में जब वायरस बहुत अधिक बढ़ जाएंगे तो फिर उस पर अटैक करना मुश्किल हो जाएगा। वहीं पहले से किसी दूसरी बीमारी के लिए बने हुए ड्रग्स को भी इस्तेमाल करने की सीमाएं होती हैं और ड्रग बनाने में कई बार असफलता हाथ लगती है।

10- हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन पर क्या बोले डॉक्टर पॉल?
इस दवा को मलेरिया में इस्तेमा किया जाता है। पिछले दिन कोरोना में भी इसका इस्तेमाल होने की बात सामने आई। इसी बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस पर सवाल उठाए। डॉक्टर पॉल ने बताया कि ये कोशिका में जाकर पीएच लेवल बढ़ाता है और वायरस की एंट्री को रोकता है। ये सभी जानते हैं। ये सभी को नहीं दिया जा रहा, सिर्फ फ्रंटलाइन वर्कर्स को दिया जा रहा है और कुछ गाइडलाइन्स को ध्यान में रखा जा रहा है। बहुत से देश इसे इस्तेमाल कर रहे हैं, डॉक्टर और नर्स भी इसे इस्तेमाल कर रहे हैं। अभी के हिसाब से ये दवा बिल्कुल सही है।

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