अद्भुत योग : 149 साल बाद बना खास संयोग, आज सोमवती अमावस्या, वट सावित्री और शनि जयंती एक साथ

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महाभारत कालीन ऐतिहासिक तीर्थ पांडू पिंडारा में सोमवार को सोमवती अमावस्या के मौके पर हजारों श्रद्धालु पवित्र सरोवर में डुबकी लगाएंगे। श्रद्धालुओं की सुविधाओं को ध्यान में रख कर प्रबंध किए गए हैं। इसके बावजूद जींद-गोहना मार्ग पर जाम रहने की संभावना रहेगी, क्योंकि पिंडारा तीर्थ पर जाने वाले श्रद्धालु इसी मार्ग को उपयोग में लाते हैं। सोमवती अमावस्या के दिन यहां लगने वाले मेले में श्रद्धालुओं की सुविधाओं का ख्याल रखते हुए तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।

पिंडारा तीर्थ महाभारतकालीन तीर्थ है और यहां हर अमावस्या पर मेले का आयोजन किया जाता है। अबकी बार अमवास्या सोमवार को है, जिसके चलते सोमवती अमावस्या पर यहां स्नान कर पिंडदार करवाने का धार्मिक महत्व है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की परेशानी न हो, इसके लिए तैयारियों को सुनिश्चित किया गया है। मेले में हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपनी निजी तथा सरकारी वाहनों से आते हैं। वाहनों को व्यवस्थित तरीके से खड़ा करने के लिए पार्किंग स्थल बनाए गए हैं। पार्किंग स्थलों पर व्यवस्था बनाए रखने के लिए रेलवे रोड, सफीदों रोड व गोहाना रोड पर पार्किंग स्थल निर्धारित किए गए हैं। इन स्थानोंं पर वरिष्ठ अधिकारी व्यवस्था को देखेंगे। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को तीर्थ स्थल तक पहुंचने में किसी प्रकार की असुविधा नहीं हो, इसके लिए व्यापक प्रबंध सुनिश्चित किए गए हैं। भारी वाहनों को मेला स्थल तक ले जाने पर प्रतिबंध रहेगा।

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इस बार सोमवती अमावस्या, वट सावित्री, शनि जयंती का अद्भुत योग

रविवार को जयंती देवी मंदिर के पुजारी नवीन शास्त्री ने बताया कि हिंदू धर्म में सोमवती अमावस्या का दिन शुभ माना जाता है। इस दिन मौन व्रत और उपवास करने से कुंडली के दोष और अशुभ योग दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस सोमवार 3 जून को सोमवती अमावस्या के साथ वट सावित्री व्रत और शनि जयंती भी मनाई जाएगी। इस दिन पंच महायोग होने से दान पुण्य करने पर दोगुना लाभ मिलेगा। सोमवार को कई अनूठे योग बन रहे हैं।

इस साल सोमवती अमावस्या के साथ ही वट सावित्री व्रत, शनि जयंती और देव पितृ कार्य अमावस्या एक साथ मनाई जाएगी। सोमवती अमावस्या पर पंच महायोग होने से पूजा-अर्चना करने पर कई प्रकार के दोष और रोग दूर होंगे। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत योग और गज केसरी योग है। सोमवती अमावस्या के दिन यदि शुभ मुहूर्त में पूजा करें तो जातकों की कुंडली के कई दोष दूर हो सकते हैं। साथ ही शनि जयंती भी इसी दिन होने से भगवान शनि देव की आराधना कर अपनी राशि में शनि के प्रकोप से भी बच सकते हैं और हर मनोकामना पूरी करवा सकते हैं, इसलिए सोमवती अमावस्या पर व्रत रखने का अधिक महत्व है। सुबह उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण कर मां तुलसी की पूजा करें और इच्छानुसार दान पुण्य करें। गरीबों को भोजन का दान करने से ज्यादा पुण्य मिलेगा।

सोमवती अमावस्या का महत्त्व

1. किसी भी मास की अमावस्या यदि सोमवार को पड़ती है तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है।

2. सोमवती अमावस्या स्नान, दान के लिए शुभ और सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस पर्व पर किए गए तीर्थ स्नान और दान से बहुत पुण्य मिलता है।

3. सोमवार को अमावस्या का संयोग कम ही बनता है। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि पाण्डव पूरे जीवन तरसते रहे, परंतु उनके जीवन में सोमवती अमावस्या नहीं आई।

4. इस दिन गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों और मथुरा एवं अन्य तीर्थों में स्नान, गौदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, वस्त्र, स्वर्ण आदि दान का विशेष महत्त्व माना गया है।

5. निर्णय सिंधु ग्रंथ में बताया गया है कि इस दिन स्नान-दान और ब्राह्मण भोजन करवाने से हजारों गायों के दान का पुण्य फल प्राप्त होता है।

6. सोमवार चंद्रमा का दिन हैं। इस दिन (प्रत्येक अमावस्या को) सूर्य तथा चंद्र एक ही राशि में स्थित रहते हैं। इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देने वाला होता है।

ज्येष्ठ मास की सोमवती अमावस्या पर क्या करें और क्या नहीं

1. सूर्योदय से पहले उठें और तीर्थ स्थान या पवित्र नदी में स्नान करें।

2. पूरे घर में झाडू-पौछा लगाने के बाद गंगाजल या गौमूत्र का छिड़काव करें।

3. पूरे दिन व्रत या उपवास करें।

4. सुबह जल्दी पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं

5. तामसिक भोजन यानी लहसुन-प्याज और मांसाहार से दूर रहें

6. शराब न पिएं और पति-पत्नी एक बिस्तर पर न सोएं

7. पीपल और वट वृक्ष की 108 परिक्रमा करें इससे दरिद्रता मिटती है।

8. इसके बाद श्रद्धा के अनुसार दान दें। माना जाता है कि सोमवती अमावस्या के दिन मौन रहने के साथ ही स्नान और दान करने से  हजार गायों के दान करने के समान फल मिलता है।

वट वृक्ष का महत्व:  

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का बहुत ही महत्व माना जाता है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व होते हैं। शास्त्रों के अनुसार वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास होता है। बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा सुनने से मनोवांछित फल की प्राप्ती होती है. वट वृक्ष अपनी लंबी आयु के लिए भी जाना जाता है. इसलिए यह वृक्ष अक्षयवट के नाम से भी मशहूर है।

वट सावित्री व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त:  

ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावास्या को वट सावित्री अमावास्या कहा जाता है. अमावास्या तिथि 02 जून 2019 को शाम 04 बजकर 39 मिनट से शुरू होगी और 03 जून 2019 को दोपहर 03 बजकर 31 मिनट तक

वट सावित्री व्रत के लिए पूजन सामग्री और पूजन विधि:  

वट सावित्री पूजन के लिए सत्यवान-सावित्री की मूर्ती, बांस का बना हुआ एक पंखा, लाल धागा, धूप, मिट्टी का दीपक, घी, 5 तरह के फल फूल. 1.25 कपड़ा, दो सिंदूर जल से भरा हुआ पात्र और रोली इकट्ठा कर लें।

वट सावित्री व्रत का महत्व

इस व्रत में बरगद पेड़ के चारों ओर घूमकर रक्षा सूत्र बांधा और आशीर्वाद मांगा। इस अवसर पर सुहागिनों एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। इसके अलावा पुजारी से सत्यवान और सावित्री की कथा सुनती हैं। नवविवाहिता सुहागिनों में पहली बार वट सावित्री पूजा का अलग ही उत्साह रहता है।

वट सावित्री के व्रत के दिनबरगद पेड़ के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा सुनने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत में महिलाएं सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं। वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पतिव्रत से पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। दूसरी कथा के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि को भगवान शिव के वरदान से वट वृक्ष के पत्ते में पैर का अंगूठा चूसते हुए बाल मुकुंद के दर्शन हुए थे, तभी से वट वृक्ष की पूजा की जाती है। वट वृक्ष की पूजा से घर में सुख-शांति, धनलक्ष्मी का भी वास होता है। वट वृक्ष रोग नाशक भी है। वट का दूध कई बीमारियों से हमारी रक्षा करता है।

ऐसे करें पूजा

वट सावित्री और वट पूर्णिमा की पूजा वट वृक्ष के नीचे होती है। एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे जाते हैं जिसे कपड़े के दो टुकड़ों से ढक दिया जाता है। एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है। वट वृक्ष पर महिलायें जल चढ़ा कर कुमकुम, अक्षत चढ़ाती हैं। फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके सात चक्‍कर लगाये जो हैं। सभी महिलायें वट सावित्री की कथा सुनती हैं और चने गुड् का प्रसाद बांटा जाता है।

वट सावित्री व्रत की कथा:  

भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान नहीं थी. उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए कई वर्षों तक तपस्या कि जिससे प्रसन्न होकर देवी सावित्री ने प्रकट होकर पुत्री का वरदान दे दिया. फलस्वरूप राजा को कन्या हुई और इसी वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया. कन्या काफी सुंदर और गुणवान थी. सवित्री के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था जिसके लिए राजा दुखी थे. इस कारण राजा कि पुत्री खुद ही वर तलाशने तपोवन में भटकने लगी।वहां सावित्री ने राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को देखा और उन्हें पति के रूप में मानकर उनका वरण किया. सत्यवान अल्पआयु और वे वेद ज्ञाता भी थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह करने के लिए समझाया. लेकिन सावित्री ने नारद मुनि की बात नहीं सुनी और सत्यवान से ही शादी कर ली. जब सत्यवान की मृत्यु में जब कुछ ही दिन बचे थे तब सावित्री ने घोर तपस्या की जिसके बाद यमराज ने सावित्री के तप से प्रसन्न हो गए और उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा. वरदान में सावित्री ने अपने पति के प्राण मांग लिए।

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